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एमएसएस की अपील, प्रतिबंध हटने का जश्न मनाएं ताकि मजदूरों के अधिकारों पर बढ़ते हमले के खिलाफ आवाज बुलंद हो !

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एमएसएस की अपील, प्रतिबंध हटने का जश्न मनाएं ताकि मजदूरों के अधिकारों पर बढ़ते हमले के खिलाफ आवाज बुलंद हो !

मजदूर संगठन समिति (एमएसएस) पर भाजपा सरकार ने 22 दिसम्बर, 2017 को प्रतिबंधित कर दिया था. जब इस संगठन को प्रतिबंधित किया गया था तब राज्य सरकार और उसकी दलाल मीडिया ने जमकर जश्न मनाया था. इसके साथ ही पूंजीपति, कंपनी प्रबंधन, ठेकेदार व दलाल काफी खुश हुआ था. पुलिस ने भी आनन-फानन में इसके कार्यालयों को जप्त कर इसके नेताओं को गिरफ्तार करना शुरु कर दिया था. अब जब रांची हाई कोर्ट ने मजदूर संगठन समिति पर लगाये गये प्रतिबंध को रद्द कर दिया है, तब अब जश्न मनाने की बारी मजदूरों और इस संगठन के कार्यकर्ताओं और समर्थकों का है.

मजदूरों के बीच लोकप्रिय संगठन ने रांची में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए समिति के सचिव बच्चा सिंह ने राज्य भर में जश्न मनाने का तिथिवार घोषणा किया है. जिसमें बोकारो थर्मल – 5 मार्च, मधुबन – 10 मार्च, चंदनकियारी – 12 मार्च, गिरीडीह – 14 मार्च, बोकारो स्टील – 21 मार्च, ललपनिया – 22 मार्च, चन्द्रपुरा – 24 मार्च एवं रांची – 28 मार्च को निर्धारित किया है. इसके अतिरिक्त 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस और 23 मार्च को शहीद-ए-आजम भगत सिंह का शहादत दिवस मनाने का भी ऐलान किया है.

मेहनतकश मजदूरों के संगठन ‘मजदूर संगठन समिति (एमएसएस) पर 22 दिसंबर 2017 को झारखंड की तत्कालीन भाजपाई रघुवर दास सरकार द्वारा लगाये प्रतिबंध को वापस लेने का आदेश रांची उच्च न्यायालय ने दिया है. 11 फरवरी, 2022 को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश चंद्रशेखर ने अपने आदेश में कहा है कि ‘कोई भी ऐसा सबूत झारखंड सरकार के द्वारा पेश नहीं किया गया, जिसके हिसाब से मजदूर संगठन समिति को भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का अग्र संगठन माना जाए. न ही कभी कोई ऐसी शिकायत दर्ज हुई थी, जिससे ये पता चले कि मजदूर संगठन समिति किसी भी प्रकार की चरमपंथी गतिविधि या अराजकता में शामिल हो.’ न्यायालय ने साथ-साथ ये नाराजगी भी जताई कि सरकार ने इस मामले में पूरी तरह गैर-जिम्मेदाराना रवैया अख्तियार किया.

जैसा कि आप जानते हैं कि देश में जब उदारीकरण-निजीकरण-भूमंडलीकरण की नीतियां लाई जा रही थी, ठीक उसी समय तत्कालीन बिहार के एक कोने में क्रांतिकारी ट्रेड यूनियन की आधारशिला रखी जा रही थी. 1989 में वरिष्ठ अधिवक्ता सत्यनारायण भट्टाचार्य द्वारा बिहार श्रम विभाग में एक ट्रेड यूनियन पंजीकृत कराया गया था, जिसका नाम था ‘मजदूर संगठन समिति’ और इसका पंजीयन संख्या 3113/89 मिला.

प्रारंभ में इस यूनियन का कार्यक्षेत्र सिर्फ धनबाद जिला में ही था. धनबाद जिला के कतरास के आसपास में बीसीसीएल के मजदूरों के बीच इनकी धमक ने जल्द ही इसे लोकप्रिय बना दिया. इसका प्रभाव धनबाद के अगल-बगल के जिलों पर भी पड़ा और जल्द ही यह मजदूर यूनियन तेजी से फैलने लगा. 2000 ई. में बिहार से झारखंड अलग होने के बाद तो मजदूर संगठन समिति ‘दिन दूनी रात चौगुनी’ की रफ्तार से मजदूरों के बीच फैलने लगी.

कालांतर में मजदूर संगठन समिति ने गिरीडीह जिला के रोलिंग फैक्ट्री व स्पंज आयरन के मजदूरों के बीच अपनी पैठ बना ली, साथ में जैन धर्मावलम्बियों के विश्व प्रसिद्ध शिखर जी (मधुबन, गिरीडीह) में स्थापित जैन कोठियों में कार्यरत मजदूरों के अलावा वहां हजारों डोली व गोदी मजदूरों के बीच भी इनका कामकाज बड़ी तेजी से फैला. बोकारो जिला में बोकारो थर्मल पावर प्लांट, तेनुघाट पावर प्लांट, चन्द्रपुरा पावर प्लांट के मजदूरों खासकर ठेका मजदूरों के बीच इन्होंने अपनी एक मजबूत जगह बनाई.

साथ ही बोकारो स्टील प्लांट के कारण विस्थापन का दंश झेल रहे दर्जनों विस्थापित गांवों में भी विस्थापितों को गोलबंद करने में इस यूनियन ने सफलता पायी. रांची जिला के खलारी, हेन्देगीर, पिपरवार, रामगढ़ जिला के उरीमारी, बड़का सयाल एरिया सीसीएल व रामगढ़ के जिंदल कारखाना के मजदूरों के बीच काम प्रारंभ करने के बाद यहां पर दैनिक मजदूरों के बीच इनकी मजबूत पैठ बनी. राजधानी रांची के कुछ अधिवक्ता और विस्थापित नेता भी इस यूनियन से जुड़े.

तत्कालीन हजारीबाग जिला के गिद्दी व रजरप्पा सीसीएल में ठेका पर काम करानेवाली कंपनी डीएलएफ के बीच भी इन्होंने अपना पांव पसारा. कोडरमा में पीडब्लूडी के मजदूरों के बीच भी इस यूनियन का काम प्रारंभ हुआ, साथ ही बिहार के गया जिला के गुरारू चीनी मिल में भी इन्होंने अपनी मजबूत पैठ बनायी. पश्चिम बंगाल के पुरूलिया जिला के बागमुंडी और झालदा में बीड़ी मजदूरों के बीच भी इन्होंने काम प्रारंभ किया.

मजदूर संगठन समिति के मजदूरों के बीच बढ़ते प्रभाव व लगातार निर्णायक आंदोलन के कारण जल्द ही यह यूनियन सत्ता के निशाने पर आ गई और इसे भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित तत्कालीन माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया (एमसीसीआई) का फ्रंटल संगठन कहा जाने लगा. इनके नेताओं पर पुलिस दमन भी काफी बढ़ गया. अब जहां भी नये क्षेत्रों में यूनियन विस्तार के लिए जाती, पुलिस और दलाल ट्रेड यूनियन द्वारा इस यूनियन के नक्सल होने का प्रचार इतना अधिक हो जाता कि मजदूर में इस यूनियन को लेकर पुलिस दमन का डर पैदा हो जाता.

खैर, इन परिस्थितियों में भी सत्ता की चुनौतियों का सामना करते हुए मजदूर संगठन समिति तीन राज्यों (बिहार, झारखंड व पश्चिम बंगाल) में फैल गई थी, तब 2003 ई. में इसका पहला केन्द्रीय सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें वरिष्ठ अधिवक्ता कामरेड सत्यनारायण भट्टाचार्य केन्द्रीय अध्यक्ष व बोकारो थर्मल पावर प्लांट के ठेका मजदूर कामरेड बच्चा सिंह केन्द्रीय महासचिव निर्वाचित हुए. 2003 के बाद प्रत्येक दो साल पर मजदूर संगठन समिति का केन्द्रीय सम्मेलन आयोजित होना शुरू हुआ, जिससे यूनियन के कार्यक्रम व आयोजन के साथ-साथ संगठन विस्तार पर भी व्यापक सकारात्मक प्रभाव पड़ा.

मजदूर संगठन समिति का आखिरी 5 वां केन्द्रीय सम्मेलन 21-22 फरवरी 2015 को झारखंड के बोकारो में हुआ. मजदूर संगठन समिति के मधुबन (गिरीडीह) शाखा द्वारा मधुबन में 5 मई 2015 को ‘मजदूरों का, मजदूरों के लिए व मजदूरों के द्वारा’ बनाये गये ‘श्रमजीवी अस्पताल’ की स्थापना की गयी, जिसका उद्घाटन गिरीडीह के तत्कालीन सविल सर्जन सिद्धार्थ सन्याल ने किया था. इस अस्पताल में प्रत्येक दिन सैकडों मजदूरों का फ्री में इलाज होता था.

मजदूर संगठन समिति द्वारा स्थापित श्रमजीवी अस्पताल, मधुबन

वर्ष 2017 में मजदूर संगठन समिति की सदस्यता संख्या लाखों में थी, झारखंड के कई इलाकों में मजदूरों के बीच इनकी मजबूत पैठ थी. कुछ इलाके तो ऐसे थे, जहां मजदूर संगठन समिति के अलावा कोई ट्रेड यूनियन था ही नहीं. 2017 में महान नक्सलबाड़ी सशस्त्र किसान विद्रोह की 50 वीं वर्षगांठ थी और इसी वर्ष रूस में हुई बोल्शेविक क्रांति की सौंवी वर्षगांठ भी थी. इन दोनों वर्षगांठ को हमारे देश में कई राजनीतिक दलों, ट्रेड यूनियनों व जनसंगठनों द्वारा मनाया जा रहा था.

झारखंड में भी ‘महान नक्सलबाड़ी किसान विद्रोह की अर्द्ध-शताब्दी समारोह समिति’ का गठन हुआ था, जिसमें मजदूर संगठन समिति के अलावा दर्जनों संगठन शामिल थे और इसके बैनर तले कई जगह सफल कार्यक्रम भी हुए, जिसमें आरडीएफ के केन्द्रीय अध्यक्ष व प्रसिद्ध क्रांतिकारी कवि वरवर राव भी शामिल हुए. इन कार्यक्रमों की सफलता से झारखंड की तत्कालीन भाजपा की सरकार के हाथ-पांव फूलने लगे और फिर से सत्ता द्वारा मजदूर संगठन समिति को माओवादियों का फ्रंटल संगठन कहा जाने लगा.

इस बीच 9 जून 2017 को मजदूर संगठन समिति का सदस्य डोली मजदूर मोतीलाल बास्के की हत्या सीआरपीएफ कोबरा ने दुर्दांत नक्सली बताकर कर दिया. इसके खिलाफ गिरीडीह जिला में आंदोलन का ज्वार फूट पड़ा, जिसका नेतृत्व भी मजदूर संगठन समिति के नेतृत्व में बने ‘दमन विरोधी मोर्चा’ ने किया. यह आंदोलन गिरीडीह जिला से प्रारंभ होकर राज्य की राजधानी तक पहुंच गया, परिणामस्वरूप इस फर्जी मुठभेड़ की बात झारखंड विधानसभा से लेकर लोकसभा व राज्यसभा में भी उठी.

मजदूर संगठन समिति के इन दो कार्यक्रमों ने झारखंड सरकार की नींद हराम कर दी थी और अब बारी थी रूस की बोल्शेविक क्रांति की शताब्दी समारोह की. झारखंड में इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए ‘महान बोल्शेविक क्रांति की शताब्दी समारोह समिति’ बनायी गई, जिसमें मजदूर संगठन समिति के अलावा दर्जनों संगठन शामिल हुए.

इस समिति के बैनर तले झारखंड में 17 जगहों पर शानदार कार्यक्रम आयोजित किये गये. इन तीनों कार्यक्रमों से झारखंड सरकार विचलित हो गई और उसने मजदूर संगठन समिति के खिलाब साजिश करना प्रारंभ कर दिया, जिसका परिणाम 22 दिसंबर 2017 को बिना किसी नोटिस या पूर्व सूचना के अचानक झारखंड गृह विभाग के प्रधान सचिव एसकेजी रहाटे व निधि खरे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिये भाकपा (माओवादी) का फ्रंटल संगठन बताकर मजदूर संगठन समिति पर झारखंड सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी.

प्रतिबंध के घोषणा के बाद आनन-फानन में हमारे सारे कार्यालयों को सीज कर दिया गया. हमारे दर्जनों नेताओं पर काला कानून यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज कर जेल में बंद कर दिया गया. हमारे यूनियन के तमाम बैंक अकाउंट फ्रीज कर दिये गये. हमारे कई नेताओं के व्यक्तिगत बैंक अकाउंट भी फ्रीज कर दिये गये. सबसे दुखद तो यह रहा कि मजदूरों का फ्री इलाज करनेवाले ‘श्रमजीवी अस्पताल’ को भी दवा समेत सीज कर दिया गया. वैसे तो हमारे सभी नेता जमानत पर छूटकर जेल से बाहर आ गये हैं, लेकिन अभी भी हमारे दर्जनों नेताओं का व्यक्तिगत बैंक अकाउंट फ्रीज है. श्रमजीवी अस्पताल समेत सभी कार्यालय सीज हैं.

अब जब मजदूर संगठन समिति से प्रतिबंध हट गया है, तो देश की परिस्थिति भी काफी बदली हुई है. 2019 में दोबारा मजदूर विरोधी-जन विरोधी फासीवादी नरेन्द्र मोदी के हमारे देश के प्रधानमंत्री बनने के बाद मेहनतकश मजदूरों पर हमला काफी तेजी से बढ़ा है. मजदूर विरोधी 4 लेबर कोड के जरिए मजदूरों से सारे अधिकार छीन लिए गये हैं. मजदूर संगठन समिति पर प्रतिबंध लगने के बाद यहां भी सभी जगह पर कंपनी प्रबंधन व ठेकेदारों के द्वारा मजदूरों का शोषण काफी बढ़ गया था.

जब मजदूर संगठन समिति पर प्रतिबंध लगा था, तो मजदूर विरोधी सरकार, पूंजीपति, कंपनी प्रबंधन, ठेकेदार व दलाल काफी खुश हुआ था, लेकिन अब मजदूरों की बारी है. मजदूर भी मजदूर संगठन समिति पर से प्रतिबंध हटने की खुशी में सभी जगह विजय जुलूस निकालेंगे और मजदूरों के अधिकारों पर बढ़ते हमले के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे. मजदूर संगठन समिति की केन्द्रीय संयोजन समिति तमाम मेहनतकश समुदाय से अपील की है कि हजारों-हजार की संख्या में विजय जुलूस के जश्न में शामिल हों.

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