'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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माओ त्से-तुंग : जापान के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध में रणनीति की समस्याएं, मई 1938

[ जापान के विरुद्ध प्रतिरोध के युद्ध के आरंभिक दिनों में, पार्टी के अंदर और बाहर के बहुत से लोगों ने गुरिल्ला युद्ध की महत्वपूर्ण रणनीतिक भूमिका को कम करके आंका और अपनी आशाएं केवल नियमित युद्ध पर, और विशेषकर कुओमितांग सेनाओं के अभियानों पर टिका दीं। कॉमरेड माओ त्से-तुंग ने इस दृष्टिकोण का खंडन किया और जापानी-विरोधी गुरिल्ला युद्ध …

बदल रही है युद्ध की प्रकृति और शैली, ज़रूरत है, ‘तक़नीकी रूप से निपुण सैन्य कमांडर’ !

भारत में दो राजसत्ताओं के बीच जीवन-मौत की लड़ाई चल रही है. इस लड़ाई में सैकड़ों लोगों/योद्धाओं की मौतें हो रही है. एक सत्ता जो प्रभावी तौर पर भारत की सत्ता पर काबिज है, और ‘भारत सरकार’ के बतौर देश की जनता के मेहनतकश की कमाई को लूटने, बखोटने के लिए एक से बढ़कर एक कुकर्म कर रही है. और …

‘हमारे सामने चुनौतियां गंभीर हैं लेकिन सच यह भी है कि अवसर उससे भी ज्यादा पैदा हुए हैं’ – गणपति

भारत के क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास में सीपीआई (माओवादी) के पूर्व महासचिव गणपति को वही दर्जा हासिल है, जो चारु मजुमदार का हुआ करता है. गणपति का वास्तविक नाम मुप्पला लक्ष्मण राव है. ये सीपीआई (माओवादी) के सैद्धान्तिक और रणनीतिक मामलों में सबसे विश्वसनीय और दूरदर्शी नेता हैं, जिन्होंने सीपीआई (माओवादी) को तेजी से विकसित किया. इनकी दूरदर्शिता और राजनीतिक तीक्ष्णता …

पेजर बना बम ! अमित शाह के धमकी को हल्के में न लें माओवादी

युद्ध के दौरान मनुष्य का दिमाग काफी तेज चलता है. इतना तेज चलता है कि विश्वास तक करना मुश्किल हो जाता है कि क्या ऐसा भी हो सकता है. पेजर जैसे छोटे और साधारण सी कम्युनिकेशन यंत्र को बम बना देने की तकनीक ने दुनिया में भूचाल ला दिया है. विज्ञान ने अपने हजारों साल के इतिहास में उतनी तरक्की …

भारत की क्रांति के आदर्श नेता व भाकपा (माओवादी) के पोलित ब्यूरो सदस्य कॉ. अक्किराजू हरगोपाल (साकेत) एवं उनके एकमात्र पुत्र ‘मुन्ना’ की शहादत

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) अपने संघर्ष के 55 सालों में मेहनतकश जनता के सपनों के भारत का निर्माण करने की कठिन लड़ाई में लाखों कॉमरेड्स और समर्थक जनता ने अपनी जान की कुर्बानी दी है. ये सभी लोग भारत के मेहनतकश जनता के सबसे बहादुर और बहुमूल्य बेटे थे. इसी कड़ी में आज हम एक ऐसे नेता का यहां …

करकरे को किसने मारा ? भारत में आतंकवाद का असली चेहरा

‘आज मैं अपनी असलियत बताता हूं. एक संगठन का मेरे ऊपर बहुत भारी क़र्ज़ है. मैं, अपने बचपन से जवानी तक उसके साथ रहा…भले कुछ लोगों को बुरा लगे, मैं, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) का सदस्य रहा हूं और आज भी हूं..अभी भी मैं इस संगठन की कोई सेवा करने को तत्पर हूं. संगठन से जो भी आदेश मिलेगा, …

वार्ता का झांसा देकर माओवादियों के खिलाफ हत्या का अभियान चला रही है भाजपा सरकार

छत्तीसगढ़ में एक बार फिर माओवादियों के साथ ‘मुठभेड़’ में 13 माओवादियों को छत्तीसगढ़ पुलिस ने शहीद कर दिया है. मारे गए माओवादियों को ‘शहीद’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि छत्तीसगढ़ में माओवादी वहां के निवासी गरीब-पीड़ित आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए सरकार से लड़ती है, जबकि छत्तीसगढ़ में पुलिस आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन को हड़पने और उस हड़पी …

क्या माओवादियों को हथियार विदेशों या चीन से मिलता है ?

भारत में सशस्त्र संघर्ष के बल पर देश की वर्तमान अर्द्ध सामंती अर्द्ध औपनिवेशिक व्यवस्था को खत्म कर नवजनवादी क्रांति के जरिए देश में समाजवादी व्यवस्था लाने की कोशिश में जुटे भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) पर अक्सर यह आरोप लगता रहता है कि उसे आर्थिक व सैन्य मदद, खासकर असलहों की आमदरफ्त विदेशी ताकतों, खासकर चीन से मिलता है. …

अक्टूबर (नवम्बर) क्रांति पर भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का दृष्टिकोण

उथल-पुथल से भरी मानव इतिहास में रुसी अक्टूबर (नवम्बर) क्रांति अमिट स्वर्णाक्षरों में लिखी जाने वाली एक महान घटना है, जिसने मानव इतिहास में पहली बार मनुष्यों के द्वारा मनुष्यों के शोषण के चक्र को तोड़ दिया और सच्चे मनुष्यों के निर्माण की नींव डाली. यही कारण है कि दुनिया के तमाम मेहनतकश जनता इस दिन को याद करते हैं …

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से वर्ष 2010 में जुड़ी घटनाएं…

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी (सीपीआई-माओवादी) की स्थापना वर्ष 2004 में हुई थी, तबसे यह पार्टी तमाम अवरोधों, उतार-चढ़ाव और अपने हजारों साथियों की शहादतों को झेलते हुए देश और दुनिया में अपनी अमिट पहचान छोड़ रही है. माओवादी और भारत सरकार के बीच चल रही सीधी भिडंत की सैकडों घटनाएं हर साल घटित होती है, जिसका समेकित लेखाजोखा भी रखा …

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