'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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लघुकथा

महान चीनी लेखक लू शुन की जयंती (25 सितम्बर) के अवसर पर चीनी कहानी : वह अभागा

चीन के दूसरे भागों की भांति ल्यूचेन में शराब की दुकानों नहीं हैं. उन सब पर सड़क की ओर मुंह किये काउण्टर हैं. वहां पर शराब को गर्म करने के लिए गर्म पानी की व्यवस्था रहती है. दोपहर या शाम को लोग अपने काम से छुट्टी पाकर वहां आते हैं और एक प्याली शराब खरीद लेते हैं. बीस साल पहले …

इन दिनों ‘कट्टर’ से ‘कट्टा’ हो रहा हूं मैं…!

आजकल मैं बहुत हीन भावना में जी रहा हूं. सामान्य तौर पर मैं सामान्य मनुष्य के जैसा जीवन ही जीना चाहता रहा हूं, मगर अब देख रहा हूं कि ऐसा सोचना भी मेरा असामान्य है. आजकल ऐसे सोचने वालों को कायर कहा जाता है. कायर ही नहीं बहुत कुछ कहा जाता है, जो यहां लिखा नहीं जा सकता. ‘कट्टर’ शब्द …

राजा का मूड

राजा का मूड उखड़ा हुआ था. उसने मंत्री को तलब किया. मंत्री: क्या हुआ महाराज ? राजा: कुछ मजा नहीं आ रहा ! मंत्री: भाषण देंगे महाराज ? राजा: उहूं ! मंत्री: कोई नया परिधान बनवाया जाए महाराज ? राजा: उहूं ! मंत्री: आखेट पर चलेंगे महाराज ? राजा: उहूं ! मंत्री: जासूसी हेतु कोई नया सॉफ्टवेयर खरीदा जाए महाराज …

यक्ष-युधिष्ठिर संवाद : मार्क्स का नाम सुनते ही लोग बिदक क्यों जाते हैं ?

यक्ष – लोग मार्क्स का नाम सुनते ही बिदक क्यों जाते हैं ? उन्हें किस बात का डर है ? युधिष्ठिर – 90 फीसदी तो इसलिए बिदकते हैं क्योकि उन्हें यह समझाया गया है कि यह कोई भूत प्रेत है, इसकी छाया से भी डरना चाहिए. पकड़ लेगा तो भगवान भी नहीं छुड़ा सकते. ये तो भगवान से भी नहीं …

मंटो के जन्मदिन पर एक प्रेम कहानी – ‘बादशाहत का खात्मा’

टेलीफ़ोन की घंटी बजी. मनमोहन पास ही बैठा था. उसने रिसीवर उठाया और कहा, ‘हेलो… फ़ोर फ़ोर फ़ोर फाईव सेवन…’ दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई, ‘सोरी…रोंग नंबर.’ मनमोहन ने रिसीवर रख दिया और किताब पढ़ने में मशग़ूल हो गया. ये किताब वो तक़रीबन बीस मर्तबा पढ़ चुका था. इसलिए नहीं कि उसमें कोई ख़ास बात थी. दफ़्तर …

ईश्वर की सरकार – हरिशंकर परसाई

प्रधानमंत्री और विदेशमंत्री कहते हैं कि दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा बहुत बढ़ी है. किसने एकाएक भारत की प्रतिष्ठा बढ़ा दी ? क्या भारतीय जनता ने बढ़ाई है ? मैं एक भारतीय जन की हैसियत से कह सकता हूं कि हमने पिछले दिनों ऐसा कोई कर्म नहीं किया जिससे भारत की प्रतिष्ठा बढ़े. ‘आई प्लीड नॉट गिल्टी / हमारा कोई …

सांभा, तेरे दिमाग में तो भूसा भरा हुआ है !

– अरे ओ सांभा ! – हुकुम सरदार ! – कितने आदमी थे ? – आदमी तो एक ही था सरदार ! – वो अकेला था और तुम तीन थे ! बहुत नाइंसाफी है सांभा. सजा मिलेगी, बरोबर मिलेगी. – आपका नमक खाया है सरदार ! – नमक खाके नमक हरामी. ऐसेईच तो नई चलेगा. ऐसेईच तो अपुन का कुर्सी …

मोदी सरकार ने सबसे ज़्यादा महिलाओं का ख़्याल रखा है !

‘मोदी सरकार ने सबसे ज़्यादा महिलाओं का ख़्याल रखा है.’ ‘वो कैसे ??’ ‘गैस से सांस की बीमारी होती है इसलिए मोदी जी ने सिलिंडर के दाम बढ़ा दिये.’ ‘खाना लकड़ियों से बनेगा तो पेड़ ज़्यादा काटने पड़ेंगे और पर्यावरण को नुक़सान होगा.’ ‘लकड़ी पर नहीं गोबर के कंडों पर खाना बनेगा. यह जो गोवंश घूम रहे हैं, इनको पालकर …

फैसला

दिल्ली में दिसम्बर की ठिठुरन वाली एक सुबह. ओस की बूंदे चादर बनकर पत्तों का आलिंगन कर रही थी. ठंडी हवा रोम-रोम में ठंडक भर रही थी. हर रोज़ की तरह सरिता जल्दी-जल्दी उठकर नाश्ता बनाने की तैयारी में थी. घर की सबसे छोटी और अपने तीन भाइयों की दुलारी बहन थी सरिता. पढ़ाई के साथ-साथ घर की जिम्मेदारियों का …

…क्योंकि बेशर्मी बड़ी है महाराज !

धृतराष्ट्र – संजय देख कर बताओ कि युद्धभूमि में क्या चल रहा है..? संजय – महाराज, युवराज दुर्योधन चारों तरफ से घिर चुके हैं. बड़े बड़े महाबली अपने सबूत रूपी शस्त्र के साथ घेरने लगे हैं. प्रतिपल नए बलशाली योद्धा सबूतों के साथ आ रहे हैं. धृतराष्ट्र – यूं पहेलियां ना बुझाओ संजय. शब्दों के जाल में मेरी मति मत …

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