‘खुड़ी मांं, घर में हो ?’ ‘के रे ?’ शांति अपनी दुर्बल, बूढ़ी काया को खटिया से खींचकर लकुटिया के सहारे कमरे के आबनूसी काले दरवाज़े तक लाती है. ‘अरे विष्णु, कितने दिनों बाद आया. आ, अंदर आ जा, बैठ.’ ‘विष्णु, कितना बूढ़ा लगता है रे ! ठीक से खाना नहीं खाता क्या ?’ सन 1972 में जब शांति बांग्लादेश …