'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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कविताएं

घर वापसी

दोष उनका नहीं नितांत अपना है मावस को कभी पूनम होने नहीं दिया खुले आसमान तले रहा तो रहा कार्डबोर्ड का एक घर तक बनने नहीं दिया अब न पाठक हैं न समीक्षक फूल रोज रोज की तरह जरूर खिलता है और अदेखा जहां तहां झड़ता रहता है पखवाड़े तक गंभीर चर्चा चलती है हिंदी में हस्ताक्षर की औपचारिकता पूरी …

सुब्रतो चटर्जी की तीन कविताएं

1. कोशिश घर से दूर एक घर बसाने की कोशिश है और बंदूक़ के निशाने पर मेरी रोटी भी है कितना अच्छा होता अगर एक रोटी के पीछे हज़ारों लोग नहीं होते या हज़ारों रोटियां कुछ लोगों के पीछे नहीं होती ऐसे में मुझे अपने घर से दूर और कोई घर बसाने की ज़रूरत भी नहीं होती ध्यान से देखो …

दूसरा कौन ?

हमारी सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि हम से बेहतर कोई हुआ नहीं हम से बेहतर इस धरती पर कोई है नहीं आप वाह कहो, चाहे आह कहो तुम हंसो या रोओ मानो या न मानो देश विश्व में अब अपने के नाम से नहीं देश विश्व में अब उस नाम से जाना जाता है विश्व में अगर कहीं कोई …

अल्पमत

बहुत से लोग दाएं हाथ से लिखते हैं लेकिन कुछ लोग बाएं हाथ से भी लिखते हैं.. दाएं हाथ से लिखने वालों का तर्क था कि बाएं हाथ से लिखने वाले लेखन कला को भ्रष्ट कर रहे हैं इसके खिलाफ बाएं हाथ से लिखने वालो के मजबूत तर्क थे लेकिन वे अल्पमत में थे. दाएं हाथ से लिखने वालों ने …

एक पहिया

लग रहा है : यहां कोई आने वाला है, लेकिन कोई नहीं आता. मेरे भविष्य की राह खोलने के लिए लेकिन वह नहीं खुलती… मैं अपनी कमीज़ पर बटन लगाता हूं जिसे अभी अभी लाया हूं लॉन्ड्री से धुलवाकर और उसके सभी चमकीले दाग, मानो वे किसी के भाग्य हों. फिर मैं दरवाज़ा बंद करता हूं, और चुपचाप बैठ जाता …

मौत

कच्ची गोलिय़ां नहीं खेले हैं वे वे सयाने हैं वे जानते हैं किस तरह तुम्हारी खाल में घुसकर तुह्मारे जैसा दिखना और फिर, धीरे धीरे ज़हर बुझी सूईयों को तुम्हारे दिलो दिमाग में डालना. तुम्हें पता भी नहीं चलेगा और एक दिन तुम बोलने लगोगे उनकी ज़बान. तुह्मे पता भी नहीं चलेगा और एक दिन तुम उठा लोगे अपने ही …

जलभूमि

जलभूमि जीवन का सोच्चार चीत्कार है तुम्हारे अरदास के पलटते पन्ने परिंदों के पंख के परवाज़ अदिती क्यों बार बार मैं विघ्न डालता हूं तुम्हारी पूजा में मुझे तो मालूम है सूर्यास्त का सच क्रौंच वध की बेला में छूट गए जो वाण अनायास शक्ति की संहिता में एक पन्ना मेरा भी हो इसी अथक प्रयास में घूर्णी में आत्मसात …

गिर

गिर और गिर गिरता जा निचाइयां अतल हैं गिरने का साहस तुझमें गजब है गिर और गिर अबे और गिर ओ मूर्ख रुक मत सांस मत ले चड्डी गिरने की परवाह मत कर गिर गिरनेवाले की नंगई कौन देखता है रे तू तो गिर अरे जब तूने गिरने का व्रत लिया है तो फिर ईमानदारी से गिर कैमरे पर गिरता …

यह आर्तनाद नहीं, एक धधकती हुई पुकार है !

जागो मृतात्माओ ! बर्बर कभी भी तुम्हारे दरवाज़े पर दस्तक दे सकते हैं. कायरो ! सावधान !! भागकर अपने घर पहुंचो और देखो तुम्हारी बेटी कॉलेज से लौट तो आयी है सलामत, बीवी घर में महफूज़ तो है. बहन के घर फ़ोन लगाकर उसकी भी खोज-ख़बर ले लो ! कहीं कोई औरत कम तो नहीं हो गयी है तुम्हारे घर …

आजादी

मन मस्त हवा के पंखों से मत पूछ आजाद उड़ानें कैसी हैं कैसी हैं चंचल पतवारें, सागर में गोते खाते आजाद ये मौजें कैसी हैं मदमस्त जीवन का संगीत तराना सारा सरगम गीत की प्रीतें ये कैसी हैं धरती अम्बर के मिलन बिन्दु पर आजाद ख्याल की बीछी सीमाएं कैसी हैं हम नए युग के वाशिंदे बधे बहो पास से …

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