'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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कविताएं

जांच चल रही है

अदालत के आदेश पर जांंच चल रही है हत्या, या आत्महत्या ? अगर ये हत्या है तो मक्तूल के इर्द गिर्द खड़े लोगों के सिवा कौन कौन ज़िम्मेदार है धुंए की दीवारों से बने कमरे के अंदर जांंच चल रही है मृतक की आंंखों की जगह यह जो खून में डूबा एक गह्वर मुंंह बाएंं कुछ कहना चाहता है क्या …

मैं किसान हूंं

मैं किसान हूं तुम्हारे खाने के लिए रोटी उगाता हूं क़र्ज़ में डूबता हूं बाबुओं की गाली, पुलिस की गोली खाता हूं बैंक और साहूकार के डर से फिनायल पी जाता हूं क़र्ज़ से नहीं मरूंंगा तो बैंक मार देगा लहसुन मार देगा प्याज मार देगा टीबी से बच गया तो शिवराज मार देगा मेरी जान, मेरा जवान और मेरी …

इसके निशाने पर है हिंदुस्तान !!

जब एक दिन मार दिया जाएगा आख़िरी जुनैद और रक्ताभिषेक करके सारे राष्ट्रीय चिन्हों के ऊपर हुआ तो राष्ट्रध्वज में चक्र की जगह स्थापित कर दिया जाएगा खंज़र. तब क्या निबट जाएगा सारा हिसाब ? नहीं – निष्काम योगी या औलिया या पीर नहीं होते खंज़र. उनके अस्तित्व की शर्त है, उनका काम में लगे रहना. इसके बाद वह नापेगा …

रद्दी के ये पुलिंदे

मैं लाती हूंं गीता! तुम कुरान निकालो! दोनों को आग लगाकर जला लो! उसपर एक पतीला चावल का चढ़ा लो! देख लेना! तुम्हारे चावल पकने से पहले ही आग बुझ जायेगी! लेकिन! यह न समझो इनमें ताक़त नहीं! रद्दी के यहि पुलिंदे! पूरे गांंव में आग लगा सकते हैं! पूरे शहर को जला सकते है! पूरे मुल्क में दंगा और …

रायफल की नाल से चूता है लहू !

पलामू की धरती पर पलामू की छाती को चीरती, रेल की ये पटरियां. आदिवासियों-मेहनतकशों की नसों को निचोड़ती, रेल की ये पटरियां. कौन नहीं जानता ? बाॅक्साइट-कोयला-पत्थरों की खानें, धरती की छाती को चीर कर निकालते, नरभक्षी नरों के मुख का ग्रास बनते मजदूर अकालों की तहों मे दबे किसान छाती फट जाती है- उन बच्चों को देखकर, जिनकी आंखों …

गुरिल्लों की रातें

गुरिल्लों की रातें रात्रि का खाना खाकर, जब आप, बिछावन पर रजाई ओढ़े, सोने का प्रयत्न कर रहे होते हैं, तब भी ठंढ़ से कंपकंपाते होंगे आप. तब ही- दूर जंगलों-पहाड़ों में बिचरती, हमारी गुरिल्ला सेनायें, खाना खाकर किसी गांव में, चल रही होती है- जंगलों-झाड़ियों के बीच रास्ता बनाते, किसी घने वृक्ष के नीचे, रात्रि विश्राम के लिए. (क्योंकि …

यहां क्रांति की तैयारी चल रही है

यहां क्रांति की तैयारी चल रही है- कोनों में दुबक कर, वे जोर से गरजते हैं. नारे की गरजना से, थरथराने लगता है सामने वाला. वे अपने मूंह में तोप फिट कर लिये हैं, गरजने के लिए. चुप रहो ! वे क्रांति की तैयारी कर रहे हैं. देखते नहीं, वे अपना रायफल बंधक रख दिये हैं, पत्नी के गहने जो …

अब वे झुंड में आयेंगे

अब वे झुंड में आयेंगे और एक एक कर सबको उठा ले जायेंगे गांव के बाहर तंबू गाड़ दिया है वो आदमखोर दैत्य उसे हर घर से रोज़ एक आदमी चाहिए भूख मिटाने के लिए अपने बीच सिक्का उछालो या पुर्ज़ा निकालो तय कर लो किसे किसके पहले जाना है दैत्य के मुंह में दैत्य की क्षुधा असीम है वह …

यह कैसा समय है भाई ?

यह कैसा समय है भाई ? जब जानते हुए भी आप नहीं कह सकते चोर को चोर. और जो सच कहा तो मचे राष्ट्रद्रोही का शोर. यह कैसा समय है भाई जब चोरी का उत्तर देने के लिए चोरी को ही उदाहरण बनाया जाता है गर्व के साथ. यह कैसा समय है भाई जब बेशर्मी का उत्तर दिया जा रहा …

कोरोना तेरे नाम पर

कोरोना तेरे नाम पर लोगों को मरते देखा. नदियां, हवा, शहर, आसमान, चांद-सितारे को स्वच्छ होते भी देखा. लाखों लाख लोगों को सड़कों पर चलते देखा. पांव में छाले, फफोले, पसीना से लथपथ भूख-प्यास से तड़पते इंसानों को देखा. मजदूरों के पांव के खून से रंगे सड़कों को देखा. एक्सीडेंट में मरे मजदूरों के लाशों को देखा. सरकार के किए …

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