मैंने बम नहीं बांंटा था ना ही विचार तुमने ही रौंदा था चींटियों के बिल को नाल जड़े जूतों से. रौंदी गई धरती से तब फूटी थी प्रतिहिंसा की धारा मधुमक्खियों के छत्तों पर तुमने मारी थी लाठी अब अपना पीछा करती मधुमक्खियों की गूंंज से कांंप रहा है तुम्हारा दिल ! आंंखों के आगे अंधेरा है उग आए हैं …
क्रान्ति की पुकार
