'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
Home कविताएं (page 59)

कविताएं

उजड़े हुए लोगों तुम्हें आज़ादी मुबारक

उतरे हुए चेहरों तुम्हें आज़ादी मुबारक उजड़े हुए लोगों तुम्हें आज़ादी मुबारक सहमी हुई गलियों कोई मेला कोई नारा जकड़े हुए शहरों तुम्हें आज़ादी मुबारक ज़ंजीर की छन-छन पे कोई रक़्सो तमाशा नारों के ग़ुलामों तुम्हें आज़ादी मुबारक अब ख़ुश हो ? कि हर दिल में हैं नफ़रत के अलाव ऐ दीन फ़रोशों(धर्म बेचने वालों) तुम्हें आज़ादी मुबारक बहती हुई …

क्या आप सोचते हो ?

क्या आप सोचते हो ? क्या आप सोच को लिख सकते हो ? यदि हांं तो लिखो जो आप सोचते हो. सच को सच लिखो बावजूद इसके कि यदि आपने सच लिखा तो आपकी खैर नहीं फिर भी, लिखो लिखना जरूरी है. क्या आप बोलते हो ? क्या आप सच बोलते हो ? तो बोलो यह भी सच है आपने …

यह कैसा राष्ट्रवाद

राष्ट्रवाद का यह कौन-सा नुस्खा है, जो हर वह काम करता है, जिससे राष्ट्र टूटता है, छीजता है, और बिखरने की ओर बढ़ने लगता है. यह कैसा राष्ट्रवाद है, जो अपने ही नागरिकों के बीच, धर्म के झगड़े फैलाता है, जाति भेद के विष बोता है, क्षेत्र के आधार पर, राजनीतिक फैसले कराता है. इतिहास के उन सारे पन्नो को, …

तुम्हारा डर, हमारी जीत

ऐ शोषक ! तुम्हारे लिए आसान होगा हमे कैद कर देना पर हमें इससे डर नही लगता बल्कि आती है तुम्हारी इस धूर्तता पर हँसी। कितना डरते हो तुम हमसे कि बेचैन रहते हो हमे कैद करने के लिए, पर नही जानते तुम किसी सलाखों में नही कर सकते कैद हमें न कभी मार पाओगे हमे अगर मार पाते तो …

क्लोन

तुम विगत इतने सालों में जो नहीं कर सके तुम्हारा क्लोन चंद सालों में कर दे रहा है (अच्छा हुआ तुमने समय रहते इनका राज्याभिषेक कर दिया) जूते, कमीज, बैल्ट सब के नाप एक से हैं, और कमरे में टंगे हैं, बस पहन के चल देना है कल की, की हुई उल्टी आज सुबह तक साफ नहीं हुई और अब …

वे कहीं चले गए

जब तुम गहरी नींद में थे वे कहीं चले गए हरेक जाने वाला बुद्ध नहीं बनता कुछ अनिच्छा से जाते हैं या ले जाए जाते हैं बलात् क्योंकि जब तुम सो रहे थे वे गा रहे थे जागने के गीत ये गीत ख़लल डाल रहे थे उनकी नींद में कब्र अकेला रहना चाहता है बहुत हुआ तो अपने आजू बाज़ू …

भारत के नाम पत्र – आयरिश कवि गैब्रिएल रोसेनस्तोक

तेलुगु कवि वरवर राव की कैद पर आयरिश कवि गैब्रिएल रोसेनस्तोक का ‘भारत के नाम पर पत्र.’ भारत ! क्या देवी सरस्वती मुस्कुराएंगी जब कैद करोगे तुम अपने कवियों को ? कोरोना से संक्रमित कर विभ्रमित कवि को जब तुम बिठाओगे पेशाब के दलदल में भारत ! क्या सरस्वती खुश होंगी ? वरवर राव, भेज रहा हूं तुम्हारे लिए ये …

लानत है !

कवि कारा में, और हम बाहर, लानत है ! कविता मूत में लपेट दी गई है, और लाल झंडा झाड़न बना रखा है हमने, लानत है ! कुंद है दरांती, और हथोड़ा हवा में पत्ते सा पतिया रहा, लानत है ! शिकवा शत्रु से नहीं, एक दूसरे की पीठ खुजाते कवि मित्रों से है और हम एंंगेल्स, मार्क्स, लेनिन पर …

लुटेरे हैं … तो युद्ध है !

युद्ध लुटेरे हैं ….तो युद्ध है ! पागलपन नहीं है युद्ध क्या पागलपन में जुटाई जाती हैं सेनाएंं जमा किए जाते हैं असलाह ? बाज़ार है, और बाज़ार पर कब्ज़ा है कब्ज़ा है, और कब्ज़े की मारामारी है मारामारी है … मारामारी की सियासत है सियासत है और सियासत में युद्ध है..! लुटेरे हैं … तो सतत ज़ारी है युद्ध …

तुम तो बहरे हो !

उसे छोड़ दो वो कुछ नहीं कर सकता तुम्हारा वो लड़ नहीं सकता होगा अपने झुर्रियों से भरे हुए कांपते हाथों से बीमारियों से टूट कर इकहरा हो चुका उसका बदन तुम्हें पटक सकने की ताब नहीं रखता होगा उसके कान अब थोड़ा ऊंचा सुनते होंगे लेकिन तुम्हारे अहंकार के बराबर नहीं पाँव लड़खड़ाने लगे होंगे उसकी उम्रदराज़ पदचाप तुम्हारे …

1...585960...62Page 59 of 62

Advertisement