'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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कविताएं

वक़्त की ऐनक पर आदमी

वक़्त की ऐनक पर आदमी एक धब्बे सा उभरता है और, धुल जाता है वक़्त की बारिश में इस मुल्क में लोग नाव की पेंदे के छेद में गोंद चिपकाते हुए पार कर जाते हैं वैतरणी भूखे नंगे मुग्ध हैं राम मंदिर की भव्यता से लेकर राफ़ेल की उड़ान पर अट्टालिकाओं के प्रांगण में मोर नाच नौटंकी के लौंडा नाच …

हां, मैं भी अरबन नक्सल हूं

तुम्हें बंदूक और पिस्टल से नहीं मारुंगा तुम्हें मारुंगा शब्दों के भाले गड़ांसे से कुदाल फावड़ा हंसिया हथौड़ा बेलचा बारी झूड़ी गैंता से कलम की नीब और उसमें भरी नीली काली भूरी स्याही के बारुद से जितना भी लाल सफेद काले पीले कानून बना लो तुम्हें तब भी मारुंगा लाइन में खड़ा कर उड़ाने की धमकियां मत दो तुम किसी …

सफेद कबूतर

मौसम उतना उद्विग्न नहीं करता जितना कि जलते सवालों का संदर्भ मैं पार कर लूंगा देह के चौड़े पाटों में बहती व्यथा की उद्वेगी नदी पेंटागन का अध्यादेश चिपका है यातना शिविर के लौह कपाट पर तकाबी की शोभा यात्रा में ओझल है मेरे अकाल प्रदेश की फटी बिवाइयां चौकसी स्तंभों पर तनी संगीनों के बीच मेरी अभिव्यक्ति के संबल …

आप सोचते ही कहांं हो…

सोचिये अगर दुनिया से समाप्त हो जाता धर्म सब तरह का धर्म मेरा भी, आपका भी तो कैसी होती दुनिया ? न होती तलवार की धार तेज़ और लंबी न बनती बंदूके नहीं बेवक्त मरते यमन में बच्चे रोहंगिया आज अपने समुद्र में पकड़ रहे होते मछलियां ईरान आज भी अपने समोसे के लिये याद किया जाता सऊदी में लोकतंत्र …

क्रान्ति की पुकार

मैंने बम नहीं बांंटा था ना ही विचार तुमने ही रौंदा था चींटियों के बिल को नाल जड़े जूतों से. रौंदी गई धरती से तब फूटी थी प्रतिहिंसा की धारा मधुमक्खियों के छत्तों पर तुमने मारी थी लाठी अब अपना पीछा करती मधुमक्खियों की गूंंज से कांंप रहा है तुम्हारा दिल ! आंंखों के आगे अंधेरा है उग आए हैं …

इसमें आश्चर्य क्या है

इतने दावे कि गिनती भूल जाता हूं गनीमत कि डेढ़ घंटे ही लगे एलईडी की दूधिया रौशनी में हाई वे चमक रहा है पर्दा पर जो है जमीन पर नहीं दीखता है वे नहीं मैं अंधा हूं और सालों मोतियाबिंद से परेशान हूं कल जब खजाना लुटाया जा रहा था आप कहां थे रहते तो मालामाल हो जाते पता इसको …

विश्व हिंदी सम्मेलन

जिस भाषा में हम बिलखते हैं और बहाते हैं आंसू वे उस पर करते हैं सवारी भरते हैं उड़ान उत्तुंग आसमानों में एक कहता है मैं नहीं गया मुझे गिना जाये त्यागियों में एक कहता है मैं चला गया मुझे गिना जाये भागियों में एक आसमान से गिरा रहा था सूचियां हिंदी पट्टी के सूखे मैदानों पर हिंदी के एक …

कब्जा

मेरा साया मेरे सपने मेरी सोच मेरे तन मन के हिस्से हैं मेरा वायवीय विस्तार पहले वे मेरी झोपड़ी पर काबिज हुए फिर मेरी रोटी, पानी पर अब वो चाहते हैं मेरा साया, सोच और सपनों पर काबिज होना ईलाका दखल की लड़ाई उनका राजधर्म है वजूद बचाने की जंग मेरी जंग है पीठ जब दीवार से लगी हो तो …

अल्पसंख्यक

मैं पाकिस्तान में सताया गया हिंदू हूं मैं हिंदुस्तान में दबाया गया मुस्लिम हूं मैं इज़रायल का मारा फ़िलिस्तीनी हूं मैं जर्मनी में कत्ल हुआ यहूदी हूं मैं इराक का जलाया हुआ कुवैती हूं मैं चीन द्वारा कुचला गया तिब्बती हूं मैं अमेरिका में घुटता हुआ ब्लैक हूं मैं आइसिस से प्रताड़ित यज़ीदी हूं मैं अशोक से हारा कलिंगी हूं …

आंतरिक मामला

भुखमरी बेरोजगारी हत्याएं बलात्कार मंदी भ्रष्टाचार अशिक्षा कुपोषण बीमारी हमारा आंतरिक मामला है हमें किसी बाहरी हस्तक्षेप की ज़रूरत नहीं है हम जब चाहें एक पूरे सूबे को जेल बना दें और किसी भी जेल को अपराधियों के लिए स्वर्ग और मासूम लोगों के लिए नर्क बना दें ये हमारा आंतरिक मामला है. हम कीड़े पड़े एक पुराने नक़्शे को …

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