'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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कविताएं

कश्मीरी गलीचा

कश्मीरी गलीचा नीचे गंदगी जितनी हो गलीचा कश्मीरी हो ज्वार में अकेली गंगा ही नहीं सभी नदियां उलटी बहती हैं झुग्गियां शहर के चेहरे की पिंपल्स हैं लड़कियों का टेंशन में रहना लाजिमी है दीवार अच्छी है और ऊंची है बजट इधर उधर हो तो हो सजावट अच्छी होनी है फूहड़ किसी कोने से नहीं दिखना है वह लड़का हमारे …

जो पोशाक मैं पहनती हूंं

जो पोशाक मैं पहनती हूंं वह दुनिया भर के इंसानी हाथों की छुअन का एहसास लिये मुझ तक पहुंंचती है पैंतीस फ़ीसदी सूत, पैंसठ फ़ीसदी पोलिएस्टर इस सफ़र की शुरुआत मध्य अमरीका से होती है अल साल्वाडोर के कपास के खेतों में खून से सने एक प्रांत में कहीं जहांं ज़हरीली दवाओं का छिड़काव किए हुए पौधों से कोई मज़दूर …

काश, मेरे शब्द होते

काश, मेरे शब्द होते रोटी, कपड़ा और मकान मैं बांट देता इन्हें खाने, पहनने और रहने के लिए काश, मेरे शब्द होते हंसिया, हथौड़ा और बंदूक मैं काटता, पीटता और बना लेता उस दुष्ट की छाती का निशाना काश, मेरे शब्द होते मेरे आज के स्वप्न का आने वाला कल की सच्चाई मैं रख देता सहेज भाई-बंद की सोयी पलकों …

संगतराश, तुम उसका बुत बनाना

फिल्हाल संगतराश, तुम उसका बुत बनाना अवतारी बता कर बुतपरस्त नजूमियों, तुम उसका बुत बेचना कलम, तुम्हें क्या कहूं फिल्हाल बस्स हंस सकता हूं पोते पोतियों को आज शाम कई किस्से कहने हैं और कहना है इसका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है किसी व्यक्ति या घटना से मिलना महज इत्तेफाक है मैं चुप हूं …

यह क्या बेवकूफी है

आज मेरी कविता पढ़ लो यह बहुत अल्पजीवी है कल इस पर मूंगफली और चटनी के साथ समोसे बिकेंगे मैं इतना मशहूर हूं कि आज हर प्रेमी के हाथ का गुलाब हूं मैं ने आज तक जितने फूलों को छुआ सब के सब फल हो गए बावजूद इसके मैं एक कच्चा खिलाड़ी हूं और बुजुर्गियत की इस लंबी उम्र में …

मौत से गुफ्तगू

एक मौत ही तो है जो अकेली सब की खबर रखती है कल वह मेरे फ्लैट आई थी उसने फोन भी किया था और पूछा – कहां हो ? तुम्हारे दरवाजे पर ताला है तुम्हारी लिफ्ट भी बंद है सीढ़ी चढ़ते-चढ़ते सांस फूल गई मैं ने कहा – ओह नो आई ऐम सो सॉरी मैं अभी तुम्हारी सगी और प्यारी …

मेरे हिस्से की धूप

मेरे हिस्से की धूप चुरा ली गई च्वाइस के रंग चुनने का विकल्प नहीं है माल और मसाला वही है फेयर एंड लवली ने बस नाम बदल लिया है मेलनिन का सच अच्छा नहीं लगता एक झूठ जब बेअसर होने लगता है बदले नाम और रैपर के साथ वह एक नये अवतार में अवतरित होता है शक की शार्क शक …

मौसम

सर्दियां सैनिक की विधवा की सूनी मांग-सी सफेद हैं हजारों सालों से करोड़ों अहेतुक युद्ध में मारे गए श्वेत आत्माओं के लहू में बुझी एक विशाल सर्द हथेली पर टिका है विदीर्ण उत्तेजनाओं का अनाथालय विधवाओं के पुंजीभूत आंसू बिखरे हैं ओस बनकर दूब घास पर फूलों पर इधर मौसम का पारा लुढ़कते हुए एक वृत्ताकार समय के वलय पर …

तय करो किस ओर हो तुम ?

तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो आदमी के पक्ष में हो या कि आदमखोर हो खुद को पसीने में भिंगोना ही नहीं है जिन्दगी रेंग कर मर-मर जीना ही नहीं है जिन्दगी कुछ करो कि जिन्दगी की डोर न कमजोर हो तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो खोलो आंखें फंस …

माओ त्से-तुंग की एक कविता : चिङकाङशान पर फिर से चढ़ते हुए[1]

बहुत दिनों से आकांक्षा रही है बादलों को छूने की और आज फिर से चढ़ रहा हूं चिङकाङशान पर. फिर से अपने उसी पुराने ठिकाने को देखने की गरज से आता हूं लम्बी दूरी तय करके, पाता हूं नये दृश्य पुराने दृश्यों की जगह पर. यहां-वहां गाते हैं ओरिओल, तीर की तरह उड़ते हैं अबाबील, सोते मचलते हैं और सड़क …

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