'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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कविताएं

ऐसी क्या जल्दी है

ऐसी क्या जल्दी है खेत हरा भरा रहे नलकूपों में पानी की जगह खून नहीं पानी बहता रहे ट्रैक्टर खेत जोते जंग जीतने की तोप न बने हंसिया हथौड़ा हल डर के हथियार नहीं शांति अशांति के हर कठिन काल में कृषि उपकरण बना रहे प्रचारक शैतानों के हाथ भूतहा डर की अफवाह न बने मगर मुश्किल यह है कि …

जब फ़ासिस्ट मज़बूत हो रहे थे..

जर्मनी में,जब फासिस्ट मजबूत हो रहे थे..और यहां तक किमजदूर भी बड़ी तादाद में,उनके साथ जा रहे थे..हमने सोचा…हमारे संघर्ष का तरीका गलत था..और हमारी पूरी बर्लिन में,लाल बर्लिन में नाजी इतराते फिरते थे..चार-पांच की टुकड़ी में,हमारे साथियों की हत्या करते हुए.. पर मृतकों में उनके लोग भी थे,और हमारे भी, इसलिए हमने कहा..पार्टी में साथियों से कहा…वे हमारे लोगों …

पूंजी मृत श्रम है

जिस गेहूं के आटे की रोटी आप खाते हैं, उसे कौन पैदा करता है ? जो दाल, सब्जी, दूध व फल खाकर आप जिंदा हैं, उसे कौन पैदा करता है ? जिस घर में आप रहते हैं उसे कौन बनाता है ? जो कपड़े आप पहनते हैं उनका निर्माता कौन है ? जिस धन या पूंजी से यह सब कुछ …

तटस्थ बुद्धिजीवी

एक दिन मेरे मुल्क के तटस्थ बुद्धिजीवियों को कटघरे में खड़ा कर सवाल करेंगे हमारे सार्वधिक साधारण जन. उनसे पूछा जाएगा उन्होंने क्या किया जब उनका मुल्क मर रहा था धीरे-धीरे जैसे मद्धिम आग थोड़ी और अकेली. कोई नहीं पूछेगा उनसे उनकी वेशभूषा के बारे में, दोपहर के भोज के बाद उनकी लम्बी झपकी के बारे में, कोई नहीं जानना …

देह

देह इस देह में बहुत सारे देह हैं एक देह वह है जो सिर्फ़ भीड़ से धकियाते हुए अपने गंतव्य तक पहुँचता है इस देह में घुल जाता है हज़ारों देह के गंध गोनोरिया रोगी हो या गलित कुष्ठ का रोगी सबकुछ आत्मसात कर ज़िंदा रहता है यह देह तुम इसे मेरी उन्नत प्रतिरोध क्षमता कहते हो मैं इसे अपने …

कारपेट के नीचे की गंदगी

वह वह सब करना चाहेगा जो आम आदमी कर सकता है मालूम है कि बहुतों को यह बात बहुत नागवार गुजरेगी तुम्हें यक़ीन नहीं होगा कि वह भी आदमी है तुम्हारी तरह कोई हिम आच्छादित महज अल्पाइन पेड़ नहीं बलशाली अमेरिका की नींव का पहला पत्थर काले कंधों ने ढोया था लाल जो शरीर के खून का स्वाभाविक रंग है, …

महाशिवरात्रि

यहां पूजा जाता है लिंग और.. योनियों में ठूंस दी जाती है मोमबत्तियां… प्लास्टिक की बोतलें.. कंकड़ पत्थर.. लोहे की सलाखें तलक….!! चीर दिया जाता है गर्भ… कर दी जाती है बोटी-बोटी अजन्मे भ्रूण की… और भालों पर उछाला जाता है दूधमुंहा नवजात… दौड़ाया जाता है जिस्म कर नंगा सरेबाजार… बता डायन खीँच ली जाती है सलवार… और बना देवदासी …

मंडी

वहांसूअर का मांस महंगा हो गया और यहां दाल महंगी हो गई गोकशी की इजाज़त कुछ गिनती के इज्जतदारों को है बाजार मेंतेल के दाम जो होंदेहतेल तेल हो रही है गणित का यह ओलिंपियाडआसान रहनेवाला नहीं है आधा खाली औरआधा भरा ग्लास का तरन्नुम बस इतना हैकिसब्र का बांध जब टूटता हैतराई में तबाही मच जाती है सुरंग लाशों …

ग्लोबल वार्मिंग

यह सड़क नहीं रनवे है हम यहां चलते नहीं उड़ते हैं धुंध की परवाह किसे है जो पराली जला रहे हैं वे या वे जो धुंध बनाए रखना चाहते हैं वे { 2 } यार, क्यों फूटबॉल खेल रहे हो हमारे नाम न जमीन है न पेड़ न जैतून की ऐसी कोई डाली गनीमत है हवा – धूप अब तक …

भयभीत है हुक्मरांं

एक नब्बे फीसद विकलांग इंसान से एक अधेड़ हो चुकी स्त्री से चंद निहत्थे लोगों से सत्तर से भी ऊपर के एक वृद्ध से सच की बांंह पकड़े एक नौजवान से सत्तर साल के एक ‘महान’ जनतंत्र के सत्ताधीशों को डर लग रहा है ! डर लग रहा है कि वृद्ध नज़रों में उठे ज्वलंत सवाल कहीं ढाह न दे …

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