उजाले भी बहुत हैं वहां वो ढूंढ लेती है अपने हिस्से के उजाले घर के काम को जल्द से निपटा कर पति और बच्चों को खिला पिला कर स्कूल, ऑफ़िस भेजने के बाद या सुलाने के बाद वो ढूंढ लेती है अपनी आज़ादी के क्षण इन क़ीमती पलों में वो पलटती है रंगीन रिसालों के पन्ने प्यार से सहलाती है …
वो ढूंढ लेती है अपने हिस्से के उजाले
