'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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कविताएं

राजा नंगा है

वो डरता है बंदूकधारी सुरक्षाकर्मियों के घेरों के बावजूद वो डरता है मज़बूत किले में हिफाज़त के बावजूद वो डरता है झूठी डिग्रियों की सनद के बावजूद वो डरता है इन्साफ़गाहों को अपनी वकालतगाह में बदल देने के बावजूद हर घंटे क़ीमती परिधानों में रंगमंच पर सजा वो अस्ल में बहुत डरता है क्योंकि वो जानता है कि तारीख़ में …

…क्योंकि

तुम अपने दुःख के कतरे से भी महाकाव्य रच देते हो तुम्हारा जीवन कहानियों में पुनर्जन्म पाता है तुम्हारी आत्मा वेदों में विश्राम करती है तुम्हारी हर खुशी देवताओं के चरणों मे फूल बनकर बरसती है. दुःखी तो हम भी होते हैं लेकिन हमारा दुःख महज खारा पानी है जो बहते बहते सूख जाता है. हमारे जीवन में भी कहानियां …

अकविता

उम्मीदें जंग खाई कच्चे लोहे के बनी कीलों जैसी थीं समुद्र की नमकीन हवाओं से खोखले हुए दीवारों पर टंगी मरे हुए, लेकिन स्वनामधन्य पूर्वजों की तरह फूलों की घाटी में तुम्हारी तफ़रीह से इनका कोई वास्ता हो या न हो एक हसीन धोखे में रहने की आदत उतनी भी बुरी नहीं है जितना कि तुम समझते हो ख़ास कर …

देश भर के विश्वविद्यालयों में संघर्ष कर रहे साथियों के नाम

दुबले पतले सीधे-साधे हमेशा करते क्रान्ति की बातें ये बच्चे मुझे लगते हैं सबसे प्यारे इन बच्चों को साथ चलते देखना हमेशा हंसते और बोलते देखना कितना अच्छा लगता है ! रात-दिन छात्रों से मिलते उन्हें समझते और समझाते पर्चे बांटते, पोस्टर चिपकाते छात्रों के हित के लिए पूरे विश्वविद्यालय प्रशासन से टकराते खुद जगते सबको जगाते देश दुनियां के …

युद्ध भूमि

युद्ध भूमि में फूलों की एक बेतरतीब क्यारी हरे भरे घास भींगी, भीनी मिट्टी और इनके बीच औंधे मुंह गिरा उस सैनिक की ताजा लाश ये लाश भी कालक्रम में बन जायेगा महकते फूलों के लिये खाद फिर किसे याद रहेगा किसने और कैसे दी थी जान उन महकते फूलों के लिये नीले आसमान को थाम चल पड़ेगी हवा अदृश्य …

विदाई बेला

कुछ सूखे पत्ते बचे हैं इस सूखे हुए दरख़्त पर इसके पहले कि वे उड़ जाएं आंधियों में चलो चुन लाते हैं उन्हें और ढंक लेते हैं बची खुची लाज साल एक स्ट्रिप टीज़ की नर्तकी रही अंतिम अधोवस्त्र उतरने का मुहूर्त आधी रात का निविड़ अंधकार होगा (सच बेलिबास उजाले में नहीं आता) और मैं सबसे क़रीब से तभी …

मेरी थाली अलग है

मेरे हाथ पैर नाक नक़्श बदन और दिमाग़ बिल्कुल तुम्हारे जैसे हैं लेकिन मेरी थाली अलग है एक दिन तुम्हारी मां की लोरियां सुनते हुए मैं सो गया था तुम्हारी हवेली के दालान पर तो मुझे सपने में तुम्हारे साथ खेलने से कोई रोक नहीं रहा था और न ही मेरे लिए कोई अलग से छात्रावास बना था लेकिन तुम्हारी …

यह हारे हुए तानाशाह का अंतिम पड़ाव है !

देखते देखते उसका भोला भोला हंसता हुआ चेहरा सख़्त होता गया शरीर का रोम रोम तीखे नाख़ून बन गये सर के बाल, दाढ़ी, मूंछें पतले लंबे नाख़ून नाख़ून जैसे दांत अब जब वह हंसता है तो सान चढ़े तलवारों के बीच से सनसनाती हुई गुज़रती सर्द हवाओं की आवाज़ आती है यह किसी आदमी के राक्षस बनने की प्रक्रिया नहीं …

मुक्ति

अकेले कभी मत चलो ऐसा मेरी मां कहती है अगर कोई साथ नहीं चल रहा है तो रूक जाओ और तब तक लोगों को मनाओ जब तक कि एक व्यक्ति भी चलने के लिए तैयार न हो जाए और जब चलो तो किसी को साथ ले कर चलो ताकी उस से बातें कर सको सलाह ले सको रास्ते में आई …

हमारी जमीन ही नहीं हमारा…

इस देश का नाम उनके पूर्वजों ने रखा भारत उनके ही किसी पूर्वज के नाम पर जिसे मै भी जानता हूं पता नहीं मेरे पूर्वजों ने इस देश का क्या नाम रखा था ? जिसे मैं नहीं जानता हूं ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि मेरे पूर्वजों ने इस देश को कोई नाम न दिया हो वे इस जमीन …

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