'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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कविताएं

तुम मुझे याद भी करोगी…

तुम मुझे याद भी करोगी तो हमेशा ग़लत कारणों से क्योंकि मुझे सही वक़्त पर सही बात करने की आदत नहीं रही कभी जैसे उस दिन की बात है जब तुम नख शिख श्रृंगार कर बन गई एक सुंदर, अनवद्य छवि मेरे लिए नहीं किसी के लिए नहीं मेरी प्रतिक्रिया में ईर्ष्या का कारण ढूंढना निरर्थक होगा क्योंकि मैं जानता …

आदिवासी जनकवि विनोद शंकर की चार कविताएं : क्रान्ति

1. क्रान्ति बीसवीं सदी ने कई क्रांतियां देखीं पर 21वीं सदी ने अब तक एक भी क्रांति नहीं देखी है जबकि इसका दो दशक बीत चुका है और तीसरा दशक चालू है इसलिए पूरी दुनिया का शोषक वर्ग बेकाबू है क्योंकि उन्हें क्रांतियां ही नियंत्रित करती हैं जब ये कहीं होगी तभी पूरी दुनिया की जनता को राहत मिलेगी क्रांति …

गुरू घंटाल

गुरू घंटाल न जाने कब तक जिन्दा रहेगा और न जाने कब तक अज्ञान का घंटा बजाता रहेगा जिसके शोर से कभी-कभी लगता है मेरे कान के पर्दे फट जाएगा जितना ज्यादा किसी ज्ञानी को अपने ज्ञान पर घमंड नहीं होगा उससे हजार गुना ज्यादा गुरू घंटाल को अपने अज्ञान पर घमंड़ है अक्सर गुरू घंटाल गांव के चबूतरे पर …

जनकवि विनोद शंकर की चार कविताएं : राम की प्राण प्रतिष्ठा !

1. हे राम हे राम अब यहां क्या है तुम्हारा काम ? अब किसका प्रतिशोध लेने आएं हो ? अब किसका जमीन छीनने आएं हो ? अब किसकी अग्निपरीक्षा लेनेवाले हो ? अब किसे देश निकाला देने वाले हो ? देखो अब तानाशाही नही चलेगी तुम्हे भी अब सजा मिलेगी तडका से लेकर शंबूक तक सबने न्याय का दरवाजा खटखटाया …

चाकू से पसलियों की गुज़ारिश तो देखिये !

तय है लड़ाई तो है लेकिन लड़ने वाले लड़ाकों की तादाद कितनी है लड़ाई की खबर ठीक से फैली नहीं या फैलने से रोक दी गयी और इसकी खबर खबर नहीं है तो इस खबर को खबर बनाने की ज़िम्मेवारी किस की है निर्णय तो लेना है कवि बनना है कि खबरी बनना है क्या पता है कि यह लड़ाई …

श् श् श्…

श् श् श् अभी अभी एक मौत हुई है इस कमरे में हम ढूंढ रहे हैं उंगलियों के निशान मृतक के गले पर प्रथम दृष्टया यह हत्या का मामला है खुली खिड़की जो बाग़ीचे की तरफ़ खुलती है वहां पर लटका झीना पर्दा अब भी हिल रहा है पर्दे में ग्लानिबोध नहीं होता वे एस्पेन के पते नहीं हैं मृतक …

आज़ाद देशों की समस्या…

आज़ाद देशों की समस्या गरीबी नहीं होती है भूखमरी नहीं होती है बेरोजगारी नहीं होती है यह तो गुलाम देशों की समस्या है अगर यह समस्या भारत में है तो भारत गुलाम है अगर यह समस्या अफ्रीका में है तो अफ्रीका गुलाम है अगर यह समस्या दुनिया में है तो दुनिया गुलाम है फिर भी इसे आज़ाद कहा जा रहा …

हल्कू भैया ! अब हो कैसे ?

हल्कू भैया! अब हो कैसे ? मुन्नी कैसी ? जबरा कैसा ? और खेत पर पहरा कैसा ? हल्कू भैया! हाल बताओ कैसे बीता साल बताओ, चरे खेत का दुख तो बोलो पीर घनेरी मुख तो खोलो, नीलगाय ने क्या कुछ छोड़ा ? घर ला पाए कितना थोड़ा ? मालगुजारी भर आए क्या ? खेत तुम्हारे रह पाए क्या ? …

अल्बर्ट पिंटो

अल्बर्ट पिंटो बोलता है तो खूब बोलता है झूठ सच जो बोलना हो बेधड़क बोलता है झूठ तो कुछ इस सफाई से बोलता है कि झूठ सच से ज्यादा सच लगता है संसद या बाहर हल्ला जो हो जो नहीं बोलना होता है वह भी बोल जाता है और कभी कभी तो सिग्नल तोड़ बिना किसी ब्रेक प्लेटफार्म के बाहर …

शहीद मंगली* के लिए…

बिन पायल भी तुम्हारे पैर कितने सुघड़ लग रहे हैं इन पैरों में थोड़ी-थोड़ी धूल लगी हुई है धूल से याद आया तुम दौड़ती हुई आई होगी अपनी ‘यायो’ की गोद में प्रेम में खाली पैर भागना भी प्रेम है मिट्टी से सीधे संवाद करते हुए तुम्हारे पैर रेला की धुन पर बाद में उठते हैं पहले मिट्टी पुकारती है …

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