'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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कविताएं

यहां उजालों के अंधेरे हैं

ग्रीन रूम में मसखरा उतार रहा है चेहरे का रंग रोगन लाल लाल होंठों और नाक के नीचे से उभर रही है एक उथली हुई बदबूदार लाश गिद्ध की आंखों का मोतियाबिंद उसे घ्राण के सहारे जीने को बाध्य करता है मसखरा सूंघ लेता है लाश और ढाल लेता है लाशों को टकसाल में आख़िर खून में व्यापार है कुछ …

दुर्भिक्ष

नदियों की लपलपाती जीभ सूखे चट्टानों के तालु में सट गई है आग ढोती हवाओं में मनुष्य की घृणा का समायोजन सिंफ़नी के नौवें सुर को सर के बल खड़ा कर दिया है हरेक उल्टी तस्वीर शांत झील में पड़ रहे देवदारु के अचल वृक्ष नहीं होते आदमी जब सिक्कों सा जम जाता है ख़ून की लकीर पर मसान यात्रियों …

हाशिये पर…

और इस तरह धीरे धीरे उन्होंने धकेल दिया मुझे हाशिये पर फुटपाथ की ज़िंदगी पर छपे रिसालों में छपी हुई मेरी कविताएं चकले पर रात बीताने वालों को पसंद नहीं आई ये और बात है कि आमदनी घटने के बाद ज़्यादातर लोगों ने यहां अपने घरों को ही मुफ़्त का चकला समझ लिया जहां आदमी का शरीर बस एक कशकोल …

यहां उजाले थे

पृथ्वी के एक निर्जन एकांत में अंजुरी भर जल था और जल में उतरता दिन शेष की माया थी यहां उजाले थे. उन बच्चों की आंखों में जो पतंगों की उड़ान का पीछा करते हुए भूल जाते थे युद्ध में मारे गए उनके माता-पिता को यहां उजाले थे. दिन भर की ड्यूटी के बाद थक कर लोको शेड में ख़ाली …

मैं आज भी उसका हूं…

चलूंगी न आपके साथ वहां जहां आसमान झुकता है ज़मीन पर और हरेक मौसम रहता है सूखे से महफ़ूज़ जहां बारिशों का डेरा है और है जाड़ों की गुनगुनी धूप की छुअन चलूंगी न आपके साथ कहा था उसने अपने अंदर समेटते हुए कई जेठ की उदास दुपहरी अपने आंचल के कोर में गिरह बांधते हुए कई अचल सिक्कों की …

ख़बर

ख़बर है कि महिला दिवस की शुभकामनाओं के बीच किसी भी महिला ने हरेक दिन कुछ दर्जन की औसत से मरने वाली ग़ज़ा की औरतों के लिए कहीं भी दो मिनट का मौन नहीं धारण किया बची हुई औरतें अपने पुरुष साथियों के मुख वृंद से उनके दिवस की शुभकामनाएं सुनने की व्याकुल प्रतीक्षा में हैं औरतों को कुम्हार के …

तुम…

तुम मेरी अरदास हो पाठ हो पूजा हो होमो हवन हो यज्ञ हो मेरे ललाट पर चमकता रोली अक्षत हो चंदन हो इसी तरह थामे रहना मुझे जैसे प्रकाश थामे रहता है आकाश और नदी थामी रहती है आकाश हवा थामे रहती है आकाश एक दिन इस छायापथ पर मेरा सर तुम्हारी गोद में होगा और ढल जाएगा दिन मेरा …

9.15 की बोरिवली चर्चगेट लोकल

अक्सर मिलता हूं उनसे वे जो हाथों में रंगों के विभिन्न शेड्स के अल्बम लिए दौड़ कर चढ़ते हैं ट्रेन में बिना टिकट वैसे उनकी फटी हुई जीन्स के दाहिने पॉकेट में एक्सपायरी डेट का मंथली पास अब तक अपनी जगह बनाए हुए है मुंबई लोकल में टिकट चेकर नहीं होता है न ही लोकल के स्टेशन पर एक अलिखित …

एक प्रश्न…

एक प्रश्न मन मे काफी समय से सड़ रहा है, क्या एक स्त्री और पुरूष के प्रगाढ़ संबंधों का मापदंड सिर्फ संभोग है ? क्या देह से देह का घर्षण ही उनका आखिरी पड़ाव है ? शायद नहीं.. बिल्कुल भी नहीं कोई तो अदृश्य बल होता होगा जो उनको आकर्षित करता होगा एक दूसरे की ओर. कि वो सात फेरों …

अर्थात्…

अर्थात् कुछ भी हो सकता है इन दिनों मौसम में कुछ गर्मी है और कुछ सर्दी भी तुम इसे बसंत कह सकते हो अर्थात्, तुम आशावादी हो मैं इसे गटर से निकल कर फुटपाथ पर सोने का मौसम कहता हूं अर्थात्, मैं ज़रा उधड़ी हुई, गंदे बिस्तर से बाहर निकलने की छटपटाहट में हूं वो बिस्तर जो अपनी लाख गंदगियों …

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