'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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हवाई बमबारी की विभीषिका : पिछले एक साल से इज़राइल फिलिस्तीनियों का नरसंहार कर रहा है

  1 अक्टूबर को अमरीकी सदन की विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष माइकल मक्कॉल ने संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के राष्ट्रपति जो बायडन से आग्रह करते हुए एक बयान जारी किया कि वे ‘इज़राइल पर युद्धविराम के लिए दबाव बनाने की बजाए ईरान और उसके प्रॉक्सियों पर अधिकतम दबाव बनाएं. इस सरकार ने इज़राइल को हथियार देने में महीनों …

युग प्रभात के ओजस्वी स्तम्भ प्रो. साईबाबा को बुलन्द सैल्यूट

समाजसेवी व मानवाधिकार कार्यकर्ता दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक 57 वर्षीय प्रो. जी. एन. साईं का कल देर रात निधन हो गया. उनके निधन की खबर से दुनिया भर के मानवाधिकार व प्रगतिशील खेमों में शोक की लहर छा गई है. शारीरिक रूप से 90 फीसदी विकलांग प्रो. जी. एन. साईं को इसी साल मार्च महीने में सशस्त्र माओवादी पार्टी …

कॉमरेड जी. एन. साईबाबा की शहादत, भाजपा सत्ता द्वारा की गई संस्थानिक हत्या है

पहली बार 2010 में प्रोफेसर जी. एन. साईबाबा से बीबीसी के माध्यम से परिचय हुआ था, व्हील चेयर से चलने वाले एक बेबाक माओवादी बुद्धिजीवी के रूप में. जिसने अपने विचारों और सरोकारों की कीमत लगभग 10 वर्षों तक यातना गृह में रहकर चुकाया या यूं कहें कि अंततः अपनी जान देकर चुकाया. एक 90% विकलांग व्यक्ति जिसके दोनों पैर …

रतन टाटा के निधन पर दो शब्द

अभी हाल ही में रतन टाटा की मृत्यु पर उन्हें महान राष्ट्रभक्त, महान संत, महान उद्यमी, महान देश का देश का सेवक, भारतीय उद्योगों का मसीहा, सादगी की प्रतिमूर्ति और न जाने क्या-क्या कहा जा रहा है. सूत्रों के अनुसार वे कोई 2500 करोड़ की संपत्ति अपने पीछे छोड़ गए हैं. सवाल है क्या एक संत को सादगी और सरलता …

एक अद्भुत व कालजयी, क्रांतिकारी दस्तावेज ‘दस दिन जब दुनिया हिल उठी’ के जॉन रीड, एक महान लेखक

1917 की गर्मियों में रीड भागे-भागे रूस गये, जहां उन्होंने यह भांप लिया कि शुरूआती क्रांतिकारी मुठभेड़ों का रंग-ढ़ंग ऐसा है कि वे एक विराट वर्ग-युद्ध का आकार ग्रहण कर सकती हैं. उन्होंने परिस्थिति का मूल्यांकन करने में देर नहीं लगाई और यह समझा कि सर्वहारा द्वारा सत्ता पर अधिकार युक्तिसंगत तथा अनिवार्य था. परंतु क्रांति का मुहूर्त्त बार-बार टल …

माओवादी कौन हैं और वह क्यों लड़ रहे हैं ? क्या है उनकी जीत की गारंटी ?

हम इसलिए नहीं हारे कि हम लड़े नहीं साथी बल्कि हम इसलिए हारे कि हम जरूरत से बहुत-बहुत-बहुत कम लड़े यह किसी नामचीन कवि के कविता का एक हिस्सा है. मुझे उस कवि का नाम याद नहीं है, और न ही उनकी कविता की हूबहू इन पंक्तियों की. लेकिन उनकी कविता का आशय यही था, जो एक दुकान में पोस्टर …

वन नेशन वन इलेक्शन : सुल्तान का संवैधानिक मतिभ्रम

संवैधानिक मर्यादाओं की हाराकिरी करने भारत में अफीम के नशे से पीनक-युग पैदा हो गया है. फिलवक्त संविधान की पोथी राजनीतिक कशमकश के कारण हर नागरिक के हाथ में हथियार बनाकर पकड़ाए जाने का सियासी शगल चल रहा है. ज़्यादातर नेताओं, सांसदों, विधायकों को संविधान की अंतर्धारा की बारीकियों की सही जानकारी नहीं होती. संविधान उनके लिए झुनझुना है, जिसे …

गांधीवादी कार्यकर्ता हिमांशु कुमार छत्तीसगढ़ के सुदूर जंगलों को शेष भारत से जोड़ते हैं

प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्ता हिमांशु कुमार को गांधी के इस देश में छत्तीसगढ़ सरकार और पुलिस किस तरह परेशान कर रही है, इसका एक उदाहरण इस लेख में शामिल है. हालांकि इन उत्पीड़कों में अब सुप्रीम कोर्ट भी शामिल हो गया है, जिसने सच उजागर करने के जुर्म में उनपर 5 लाख का जुर्माना लगाया था. हिमांशु कुमार उन चंद पुलों …

पैलियो जिनॉमिक्स और स्वांटे पाबो : विलुप्त सजातीय जीवों का क्या कुछ हममें बचा है ?

स्वीडिश जीवविज्ञानी स्वांटे पाबो बिल्कुल बुनियादी जगह पर खड़े होकर इंसानों का इतिहास लिख रहे हैं. यह बुनियादी जगह है इंसान का आनुवांशिक ढांचा, जहां से उसका रंग-रूप, सोचना-बोलना, चलना-फिरना और काफी हद तक जीना-मरना भी निर्धारित होता है. विज्ञान के नोबेल अब अकेले व्यक्ति को कम ही मिलते हैं. चिकित्सा शास्त्र और शरीर क्रिया विज्ञान (फिजियॉलजी) के क्षेत्र में …

क्या आप इस समाज को बेहतर बनाने के लिए उतनी मेहनत कर रहे हैं, जितनी जरूरत है ?

कुछ वर्ष पहले मैंने दिल्ली से सहारनपुर तक पैदल यात्रा की थी. मुद्दा था चंद्रशेखर रावण की गैरकानूनी हिरासत का. उस यात्रा में मेरे साथ सिर्फ दो लोग आए थे. छत्तीसगढ़ से संजीत बर्मन और दिल्ली से कृष्णा. फेसबुक पर बड़े-बड़े कमेंट करने वाले लोग गायब ही रहे. एक सज्जन जो सहारनपुर से थे, वह काफी साल से मुझे कहते …

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