'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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नाटो का हथियार फुस्स, यूक्रेन का गेम ओवर

भारतीय समयानुसार सुबह साढ़े पांच बजे रूसी सेना ने यूक्रेन के खारकीव इलाके में पूर्ण कब्जा की घोषणा कर दी. इस तरह से रूस ने यूक्रेन के 5वें राज्य पर रूसी झंडा फहरा दिया है. इसके बाद राजधानी कीव, रूसी सेना के निशाने पर है. भारतीय रक्षा विशेषज्ञों ने समाचार चैनलों के माध्यम से इसे यूक्रेन का ‘end of game’ …

कॉर्पोरेट नेशनलिज्म छद्म राष्ट्रवाद और पुनरुत्थानवाद की आढ़ में आता है

कॉर्पोरेट नेशनलिज्म इसी तरह आता है जैसे भारत में आया. स्वप्नों को त्रासदियों में बदल देने वाले छद्म राष्ट्रवाद और पुनरुत्थानवाद की आढ़ में मुनाफे का निरंकुश खेल, जिसमें राजनीति बंधक बन जाती है और लोकतंत्र जैसे किसी प्रहसन में तब्दील हो जाता है. चल रही व्यवस्था से नाराज लोगों को अच्छे दिनों के ख्वाब दिखाना, बेरोजगारी से त्रस्त समाज …

9 मई विजय दिवस : लाल सेना के शहीदों को लाल सलाम !!

जर्मन सरमाएदारों के ज़मूरे हिटलर ने अपने पृष्ठ भाग तक का ज़ोर लगाते हुए सोवियत संघ पर आक्रमण रविवार, 22 जून 1941 को एकदम तड़के किया था. इसका नाम उसने दिया था – ‘ऑपरेशन बारबरोसा’. ये नाम रखने की दास्तां भी बहुत दिलचस्प है. 12 वीं शताब्दी में फ्रेडेरिक बारबरोसा नाम के एक रोमन राजा हुए हैं, जिनकी लंबी लाल …

गाज़ा नरसंहार के विरुद्ध अमेरिकी छात्रों का शानदार आंदोलन

1960 के दशक के ऐतिहासिक वियतनाम युद्ध का नाम लेकर, साम्राज्यवादी लठैत, अमेरिकी सरकार को आज भी दुनियाभर में लानत भेजी जाती है. वियतनामियों ने अमेरिकी क़त्लेआम को बेमिसाल बहादुरी से हराया था. साथ ही, अमेरिकी छात्रों ने, अमेरिकी सेना द्वारा किए जा रहे, ‘वियतनाम नर-संहार’ के विरुद्ध एक शानदार जन-आंदोलन चलाया था, जिसमें हर इंसाफ पसंद अमेरिकी जुड़ता चला …

धर्म और कम्युनिकेशन के अंतस्संबंध की समस्याएं

अनेक विचारक सलाह दे रहे हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी की सीमा होनी चाहिए, वरना अराजकता फैल जाएगी. इस तरह के लोगों के विचारों को सुनकर एक पल के लिए यही लगता है अभिव्यक्ति की आजादी का दायरा खींचने की जरुरत है. सच यह है अभिव्यक्ति की आजादी की सीमाएं तय करना संभव नहीं है. अभिव्यक्ति का लक्ष्य मात्र अभिव्यक्ति …

भारत में दलित समाज

दलित, जिन्हें पहले अछूत कहा जाता था, वो भारत की कुल आबादी का 16.6 फ़ीसद हैं. इन्हें अब सरकारी आंकड़ों में अनुसूचित जातियों के नाम से जाना जाता है. 1850 से 1936 तक ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकार इन्हें दबे-कुचले वर्ग के नाम से बुलाती थी. अगर हम दो करोड़ दलित ईसाईयों और 10 करोड़ दलित मुसलमानों को भी जोड़ लें, तो …

राम राज्य : सच कहना आसान नहीं होता है !

अगर सच कहूं तो 60 लाख अपनों को खोने के बाद भी भारत की निकृष्टतम जनता ने, जिसे किसी भी पैमाने पर आदमी की परिभाषा में नहीं शामिल किया जा सकता है, दुनिया के भ्रष्टतम और पैशाचिक व्यक्ति को अपना रहनुमा यूपी में चुना. बात आज सिर्फ़ हिंदी पट्टी की नहीं है. बात भारत के हरेक व्यक्ति और इलाक़े की …

कार्ल मार्क्स के जन्मदिन पर : एक मज़दूर की यादों में कार्ल मार्क्स

हमारे प्रिय नेता की मौत के बाद, उनके समर्थकों तथा विरोधियों दोनों ने ही, उनके, उनके जीवन तथा कार्य के बारे में बहुत कुछ लिखा है. इन लेखकों में से अधिकतर, लेकिन, ‘आज़ाद’ इंग्लैंड के ट्रेड यूनियन नेताओं की परिभाषा में, सही अर्थ में ‘मज़दूर’ नहीं थे. वे जन्म अथवा परिस्थितियों से, उस समूह से थे, जिसे ‘मध्यम वर्ग’ कहा …

नवनाजीवादी जेलेंस्की वध का खाका खींच रखा है नाटो ने

ये अजीब समाचार है कि, नाटो-अमरीका के यूक्रेन पर अरबों खरबों डालर बहाये जाने के बाद भी यूक्रेन से 18 वर्ष से 50 वर्ष बीच के 6 लाख 62 हजार पुरुष नागरिक अचानक गायब बताये जा रहे हैं. बेलारूस में रह रहे एक यूक्रेनी अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कार्यकर्ता सेदिस्को पेद्रीजा ने कहा- ‘इसमें आश्चर्य वाली कोई बात नहीं है और गायब …

‘लोकतांत्रिक जन पहल’ की ग्राउण्ड रिपोर्ट : पटना में अम्बेडकर जयंती को लेकर दो पक्षों में हुए विवाद, मारपीट और हत्या

दलितों पर हमले की बारदात इन दिनों काफी तेज गति से बढ़ रही है. पिछले दिनों पटना के पालीगंज में रविदास जयंती के अवसर पर यादव जाति के असामाजिक तत्वों ने चमार जाति के समुदाय पर जमकर हमला किया तो अब पटना के ही शाहपुर थाना क्षेत्र में अम्बेडकर जयंती मनाते चमार जाति के समुदायों पर हमले किये. इसमें एक …

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