'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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लोकसभा चुनाव 2024 के अवसर पर पांच कम्युनिस्ट संगठनों द्वारा देश की जनता से अपील

लोकसभा चुनाव 2024 के अवसर पर पांच कम्युनिस्ट संगठनों सीपीआई (एमएल), पीआरसी, सीपीआई (एमएल), श्रम मुक्ति संगठन, कम्युनिस्ट सेंटर फॉर साइंटिफिक सोशलिज्म, कम्युनिस्ट चेतना केंद्र ने एक पर्चा जारी कर फासीवादी विचारधारा के वाहक भाजपा एवं उसके सहयोगियों को पराजित करने के लिए वोट करने का अपील करते हुए अपने जनवादी अधिकारों की पूर्ण बहाली के लिए उठ खड़े होने …

रईसी की ‘हत्या’ : वर्चस्वकारी राजनीति की विध्वंसक दिशा

द्वितीय विश्व युद्ध समाप्ति के बाद दुनिया में जिस किसी राष्ट्राध्यक्ष की मौत हुई है, उसमें अमरीकी खुफिया एजेंसी सीआईए का हाथ होता आया है. यह वही सीआईए है जिसने अपने 4 राष्ट्रपतियों की हत्या को देखा और हमेशा अमरीकी सत्ताधारी पार्टी की कठपुतली बना रहा. हालांकि सीआईए ने अपनी ढाल के लिए मोसाद को भी जासूसी के गुर जरूर …

‘मैल्कम एक्स’ के विचार पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक हो गए हैं

दुनिया जितना ‘मार्टिन लूथर किंग’ को जानती है, उतना उन्हीं के समकालीन ब्लैक लीडर ‘मैल्कम एक्स’ को नहीं जानती जबकि आज उनके विचार कहीं ज्यादा प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हैं. 1966 में शुरु हुआ ब्लैक पैंथर आन्दोलन सीधे सीधे ‘मैल्कम एक्स’ के विचारों और उनके व्यक्तित्व से प्रभावित रहा है. ब्लैक पैंथर की स्थापना के ठीक एक साल पहले 21 फरवरी …

एक वोट लेने की भी हक़दार नहीं है, मज़दूर-विरोधी मोदी सरकार

‘चूंकि मज़दूरों कि मौत का कोई आंकड़ा सरकार के पास मौजूद नहीं है, इसलिए उन्हें मुआवजा देने का सवाल ही पैदा नहीं होता.’ 14 सितम्बर, 2020 को संसद में बोलते हुए, तत्कालीन केन्द्रीय श्रम एवं रोज़गार मंत्री संतोष गंगवार. कितना क्रूर बयान है ये !! बहुत विकराल संवेदनहीनता, क्रूरता और अमानवीयता चाहिए मुंह से ये अल्फ़ाज़ निकालने के लिए, जिसे …

‘नाटो सैन्य संगठन को पुतिन जूती की नोक से मसल देने की बात करते हैं’ – एडरिफ गोजा

पृथ्वी की दो महाशक्तियों की ये मित्रता पूरे विश्व की आर्थिक सेहत तय करने जा रही है. चूंकि नाटो के 32 देशों का भविष्य भी अब इन दो महाशक्तियों के हाथों में ही है इसलिए पुतिन यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जा करने के लिए कुछ ऐसा करना चाहते हैं कि दुनिया सिर्फ और सिर्फ इन दो देशों के हंटर …

2024-25 का अंतरिम बजट : जन विरोधी एवं कारपोरेटपक्षीय

2024-25 का अंतरिम बजट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा 1 फरवरी, 2024 को पहली बार नई संसद में ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ के पुराने जुमले के साथ पेश किया गया. इस बजट में यह कहा गया कि प्रधानमंत्री का ध्यान ‘गरीब, महिलायें, युवा और अन्नदाता (किसान) को ऊपर उठाने पर केन्द्रित है. जबकि सच्चाई यह है कि …

जब बीच चुनाव गरीबी का असामयिक देहांत हो गया

उस दिन सुबह अखबार उठाया तो उसमें 72 पाइंट में एक सनसनीखेज़ खबर थी कि ‘कल देर रात अचानक दिल का दौरा पड़ने से गरीबी का देहांत हो गया.’ इस गंभीर राष्ट्रीय क्षति से पूरा देश स्तब्ध है. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों तथा विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों आदि ने गरीबी के असामयिक निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया …

गंभीर विमर्श : विभागीय निर्णयों की आलोचना के कारण पाठक ने कुलपति का वेतन रोक दिया

बिहार के एक विश्वविद्यालय के कुलपति का वेतन शिक्षा विभाग ने इसलिए रोक दिया कि वे विभाग और विश्वविद्यालय अधिकारियों की मीटिंग के दौरान कुछ विभागीय निर्णयों के विरोध में बोल रहे थे. ये खबर अखबारों में नजर आई. अखबारी खबर में बताया गया कि उक्त माननीय कुलपति महोदय ने के. के. पाठक के कुछ निर्णयों की आलोचना की. विभाग …

जाति-वर्ण की बीमारी और बुद्ध का विचार

ढांचे तो तेरहवीं सदी में निपट गए, लेकिन क्या भारत में बुद्ध के धर्म का कुछ असर बचा रह गया ? इस अमूर्त सवाल के उतने ही अमूर्त जवाब प्रस्तुत किए जाते हैं. जैसे, सबसे बढ़कर यह कि वैष्णव धर्म ने बुद्ध को अपना नवां या दसवां अवतार ही नहीं घोषित किया, अपनी सोच और ढांचे में ऐसी उदारता धारण …

हम भारत हैं, हम बिहार हैं, हम सीधे विश्वगुरु बनेगें, बस, अगली बार 400 पार हो जाए !

अमेरिका के विश्वविद्यालयों में गाजा में हो रहे नरसंहार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं. किसी एक या दो में नहींं, देश भर में फैले दर्जनाधिक विश्वविद्यालयों में. इंग्लैंड में, फ्रांस में, नीदरलैंड आदि यूरोपीय देशों के नामचीन विश्वविद्यालयों में भी ऐसे विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है. ये सब ऐसे विश्वविद्यालय हैं जो दुनिया में अपना मान, अपना …

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