प्रकृति पर किसी का वश नहीं चलता लेकिन उसे वश में करने के लिए हर हथकंडे अपनाये जाते हैं. उससे छेड़छाड़ हमेशा होती रहती है. इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ता है. लेकिन आदत तो आदत होती है और हम अपने आप से मजबूर होते हैं. छेड़छाड़ का नतीजा मौसमों पर पड़ता है. मौसम का असर हम पर पड़ता है. इधर …
एक बुद्धिजीवी की आत्म-स्वीकारोक्ति
