'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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देश की अर्थव्यवस्था और जनता

आर्थिक समीक्षा में 2017-18 और 2018-19 के लिए वास्तविक जीडीपी विकास दर क्रमशः 6.75 फीसदी और 7-7.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के मुताबिक 2014-15 से 2016-17 के बीच जीडीपी की विकास दर औसतन 7.5 फीसदी रही. अगर ये दोनों आंकड़े सही हैं तो संभवतः भारत की अर्थव्यवस्था इस दौरान दुनिया में सबसे तेजी से …

सत्ता के अहंकार में रोजगार पर युवाओं के साथ मजाक

चार सालों से पूरे देश में धार्मिक आयोजन भी एक संगठित उद्योग का रूप लेने की जद्दोजहद करता दीख रहा है. एक के बाद एक धार्मिक आयोजनों का सिलसिला कहीं थम न जाये, सरकारें इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखती है या नहीं, पर उनके मुखिया इस कार्यक्रमों में शिरकत करते दिखते रहते है. कितने भीख मांगने वालों के पास “आधार …

बैंकों का बढ़ता घाटा और पूंजीवादी संकट

अक्टूबर-दिसंबर के 3 महीने में स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को 2,416 करोड़ का घाटा हुआ. उसके 25 हजार 836 करोड़ के कर्ज और डूब गए. कुल एनपीए अब 1 लाख 99 हजार करोड़ है, जिसमें वो शामिल नहीं जो पहले ही राइट ऑफ कर दिए गए हैं. कुल कर्ज का 10.35% अब एनपीए है और मेरा अनुमान है कि अभी …

दिल्ली मेट्रोः किराया बढ़ोतरी के विरोध में एक जरूरी कदम

मेरे एक घनिष्ट मित्र को मेरे एक मत से काफी समय से तकलीफ थी. आज पता चली. मैंने अक्टूबर माह से मेट्रो में सफर बंद कर दिया था. मेरा मानना था कि मेट्रो ने किराया 60% बढ़ाकर अपने मूल उद्दयेश के साथ बहुत बड़ा अतिक्रमण किया है. फिर ये भी सुचना थी कि आगे भी अक्टूबर माह में किराया बढेगा …

जस्टिस लोया पार्ट-2: मौतों के साये में भारत का न्यायालय और न्यायपालिका

जज लोया के केस में कल बेहद चौकाने वाला खुलासा सामने आया है, जिसके बारे में बात करने को देश के मुख्य मीडिया को सांप सूंघ गया है. कल पता चला है कि जज लोया की संदिग्ध मृत्यु के बाद के अगले दो सालों में उनसे जुड़े उनके मित्रों की संदिग्ध मृत्यु हुई है यह कुछ ऐसा ही है जैसे ‘व्यापम’ …

खुदरा में विदेशी घुसपैठ

[ केन्द्र की मोदी सरकार ने खुदरा बाजार में निवेश सौ फीसदी कर दिया है, जबकि वह खुद जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, और प्रधानमंत्री बनने के लिए चुनाव लड़ रहे थे, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के 51 फीसदी एफडीआई का विरोध किये थे. ऐसे में उसी वक्त यह लेख प्रकाशित हुआ था, जिसकी महत्ता को देखते हुए आज …

अराजकतावाद पर भगत सिंह का दृष्टिकोण – 3

पिछले दो लेखों में हमने अराजकतावाद के सम्बन्ध में सर्वसाधारण तथ्य लिखे थे. ऐसे महत्त्वपूर्ण विषय पर जोकि दुनिया के पुराने विचारों एवं परम्पराओं के विरुद्ध नया-नया ही सामने आये, इतने छोटे लेख से पाठकों की जिज्ञासा को शान्त नहीं किया जा सकता. इस प्रकार अनेक शंकाएँ जन्म लेती हैं. फिर भी हम उनके मोटे-मोटे सिद्धान्त पाठकों के सामने रख …

अराजकतावाद पर भगत सिंह का दृष्टिकोण – 2

स्टेट या सरकार इससे आगे की बात जो वे सामने नहीं लाना चाहते, वह है राजसत्ता। अगर हम राजसत्ता का मूल खोजें तो दो परिणामों पर पहुँचते हैं. कुछ लोगों की धारणा है कि जंगली मनुष्य की अक्ल विकसित होती रही, और लोगों ने मिल-जुलकर रहना आरम्भ कर दिया. इस तरह राजसत्ता का जन्म हुआ. इसे उद्भव कहते हैं. दूसरे …

अराजकतावाद पर भगत सिंह का दृष्टिकोण – 1

[19वीं सदी में जन्म लिये अराजकतावादी विचारधारा को 21वीं सदी में लाने का श्रेय 2014 में सत्तारूढ़ भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री बने नरेन्द्र मोदी को जाता है, जब वह आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को अराजकतावादी घोषित करते हुए उन्हें बदनाम करने की कोशिश करते हैं. ऐसे समय में अराजकतावाद पर भगत सिंह का स्पष्ट दृष्टिकोण सामने …

सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों के प्रेस काम्फ्रेंस पर एक नजरिया

[विगत दिनों सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों के प्रेस काम्फ्रेंस ने देश को हिला कर रख दिया. इन जजों ने देश भर में न्यायिक प्रक्रिया की पोल खोलकर रख दी है, जिस कारण देश भर में यह बहस तेज हो गया है कि क्या हमारा संविधान सुरक्षित हाथों में हैं ? विगत दिनों जिस प्रकार भाजपा के एक सांसद …

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