'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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अराजकतावाद पर भगत सिंह का दृष्टिकोण – 3

पिछले दो लेखों में हमने अराजकतावाद के सम्बन्ध में सर्वसाधारण तथ्य लिखे थे. ऐसे महत्त्वपूर्ण विषय पर जोकि दुनिया के पुराने विचारों एवं परम्पराओं के विरुद्ध नया-नया ही सामने आये, इतने छोटे लेख से पाठकों की जिज्ञासा को शान्त नहीं किया जा सकता. इस प्रकार अनेक शंकाएँ जन्म लेती हैं. फिर भी हम उनके मोटे-मोटे सिद्धान्त पाठकों के सामने रख …

अराजकतावाद पर भगत सिंह का दृष्टिकोण – 2

स्टेट या सरकार इससे आगे की बात जो वे सामने नहीं लाना चाहते, वह है राजसत्ता। अगर हम राजसत्ता का मूल खोजें तो दो परिणामों पर पहुँचते हैं. कुछ लोगों की धारणा है कि जंगली मनुष्य की अक्ल विकसित होती रही, और लोगों ने मिल-जुलकर रहना आरम्भ कर दिया. इस तरह राजसत्ता का जन्म हुआ. इसे उद्भव कहते हैं. दूसरे …

अराजकतावाद पर भगत सिंह का दृष्टिकोण – 1

[19वीं सदी में जन्म लिये अराजकतावादी विचारधारा को 21वीं सदी में लाने का श्रेय 2014 में सत्तारूढ़ भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री बने नरेन्द्र मोदी को जाता है, जब वह आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को अराजकतावादी घोषित करते हुए उन्हें बदनाम करने की कोशिश करते हैं. ऐसे समय में अराजकतावाद पर भगत सिंह का स्पष्ट दृष्टिकोण सामने …

सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों के प्रेस काम्फ्रेंस पर एक नजरिया

[विगत दिनों सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों के प्रेस काम्फ्रेंस ने देश को हिला कर रख दिया. इन जजों ने देश भर में न्यायिक प्रक्रिया की पोल खोलकर रख दी है, जिस कारण देश भर में यह बहस तेज हो गया है कि क्या हमारा संविधान सुरक्षित हाथों में हैं ? विगत दिनों जिस प्रकार भाजपा के एक सांसद …

सुप्रीम कोर्ट प्रकरणः इस देश को संविधान की भावनाओं से नहीं सत्ताधारी पार्टी की भावनाओं के अनुसार चलाने के लिए तैयार किया जा रहा है ?

  सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के क्रियाकलापों को कल विभिन्न टीवी चैनलों के टॉक-शो में चार के मुकाबले बीस मतों से सही ठहराने की होड़ देख कर ऐसा लगा कि किसी को इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि न्यायाधीशों के लिए स्थापित मर्यादा कि वे न्यायालयों के आंतरिक मतभेदों और मसलों को सार्वजनिक नहीं करते, का उलंघन हुआ …

चित्रदुर्गा में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस पर लादी वही घिसी-पिटी तोहमतें

”पिछले तीन सालों में हम बीजेपी और आरएसएस के 20 कार्यकर्ताओं को (कर्नाटक राज्य में) खो चुके हैं … आप हमारे कार्यकर्ताओं पर जुल्म ढ़ाना बन्द कीजिये. एक बार हम सत्ता में आ गये तो सारे मामलों की छान-बीन करेंगे और आपको जेल भेजेंगे. ये हिन्दू विरोधी सरकार वोट बैंक की राजनीति कर रही है. ये स्थापित हो चुका है …

आर्म्स एक्ट ख़त्म कराओ !

[आज भी देश में आम नागरिकों को हथियार रखने पर प्रतिबंध है. भारतीयों को हथियार न रखने का कानून अंग्रेजों ने बनाया था ताकि भारतीयों को कमजोर और असहाय बना कर रखा जा सके. फिर तथाकथित आजाद भारत में भी इस कानून को जारी रखने का क्या अर्थ है ? क्या यह भारतीय शासक भी देश के आम नागरिकों को …

आतंक के असली अर्थ

[बहस में हिस्सा लेते हुए भगतसिंह और उनके साथियों ने ‘आतंक’ शब्द के अर्थ समझने की कोशिश की. मई, 1928 के ‘किरती’ में यह लेख इसी विषय पर छपा, जो बम्बई के अख़बार ‘श्रद्धानन्द’ से अनूदित था तथा भगतसिंह और उनके साथियों के उस समय के विचारों का प्रतिनिधित्व करता था. उनका विचार आज के समय में भी कितना समीचीन है, पाठक पढ़कर स्वयं …

साम्प्रदायिक फासीवादी भाजपा सरकार की भंवर में डुबती आम मेहनतकश जनता

आज हम एक भयंकर उथल-पुथल के दौर में जी रहे है. साम्प्रदायिक फासीवादी भाजपा सरकार व संघ परिवार अपने एजेण्डा को थोपकर मेहनतकश जनता व प्रगतिशील तथा जनवादी ताकतों पर कहर बरपा रहे हैं. देश में मेहनतकश दलित आबादी और धार्मिक अल्पसंख्यक आबादी पर कट्टरपंथी-जातिवादी ताकतों के हमले आम हो चले है. साथ ही जनता में नफरत-अफवाहें फैलाकर मॉब-लिंचिंग (भीड़ …

पतनशील कारपोरेटवादी शिक्षा की दर्दनाक हकीकत

वर्तमान दौर पतन की पराकाष्ठा का दौर है. इस दौर को पैदा भी बाजारवादियों ने ही किया है और पोषित भी कारपोरेटी व्यवस्था ही कर रही है. उसके द्वारा लागू शिक्षा प्रणाली केवल कारपोरेटों के लिए मैनेजर से लेकर उपभोक्ता तक पैदा कर रही है. शिक्षा प्रणाली के पाठ्यक्रम में पर्यावरण प्रकृति समाज और मानवता से प्यार करना नहीं सिखाया …

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