'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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‘मंहगाई की महामारी ने हमरा भट्टा बिठा दिया’

2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा के चुनावी घोषणा-पत्र में ‘मोदी की गारंटी’ 66 बार लिखी पाई गई, जबकि मंहगाई का ज़िक्र महज़ एक बार नज़र आता है. जब भाजपा, यह दावा करती है, ‘हमने कम मंहगाई और बड़ा विकास कर दिखाया !!’ मानो, देश में मंहगाई कोई मुद्दा ही ना हो !! जबकि, देश के 90% मेहनतक़श लोग, दिन में …

उड़नतश्तरियों की दहशत और वैज्ञानिक शोधों के जीरो नतीजे

ब्रह्माण्ड अनंत है तो इसके रहस्यों की श्रृंखला भी उतनी ही रहस्यमयी है. मानव विकास के बीच धर्म, भाग्य-भगवान की उत्पत्ति भी रहस्यों के साथ जीने की कोशिश के तौर पर होती आई है किंतु जैसे जैसे मनुष्य ने विज्ञान के प्रति अपनी समझ को केन्द्रित किया वैसे वैसे धार्मिक रहस्य छूमंतर होते चले गए और बचे हुए रहस्यों के …

संदेश रासक : कापालिकों की भी देश में कहीं इज्जत थी

हाथ में खोपड़ी लिए सड़क पर समूह में नाचते लोगों की आखिरी सार्वजनिक छवि कोई पांच दशक पुरानी है. वे खुद को आनंदमार्गी कहते थे और उस पंथ के एक सज्जन कुछ समय के लिए मेरे पड़ोसी भी थे. उनका परिवार शाम को दीया जलाकर ‘बाबा नाम केवलम’ का सामूहिक कीर्तन करता था. गुप्त रूप से उनके यहां कोई खोपड़ी …

सिंध का बंटवारा पंजाब और बंगाल से अलग है !

सिंध को हमसे बिछड़े 75 से अधिक बरस हुए. सिंधियों की जो पीढ़ी बंटवारे के दौरान इस पार आई थी, उनमें से ज्यादातर अब इस दुनिया में नहीं हैं. बचे-खुचे कुछ बूढ़ों की धुंधली यादों के सिवा अब सिंध सिर्फ हमारे राष्ट्रगान में रह गया है. इन 75 सालों में हमें यह एहसास ही नहीं हुआ कि हमने सिंध को …

सदियों से सार्वजनिक और वैज्ञानिक शिक्षा से वंचित भारतीय दोगली मानसिकता वाला धरती के अजूबा प्राणी

संघियों और भाजपाईयों के दिलोदिमाग में सांप्रदायिकता का जहर इस कदर गहरे बैठा है कि वे बिना हिन्दू-मुसलमान किये रह ही नहीं सकते हैं. सांप्रदायिकता उनकी सोच की पहली और अंतिम सीमा है. उनकी बौद्धिकता सांप्रदायिकता से शुरू होकर सांप्रदायिकता पर खत्म भी होता है. वे किसी भी महत्वपूर्ण पद पर पहुंच जायें, उनकी मानसिकता में कोई भी बदलाव संभव …

संक्षिप्त जीवनी : भारतीय क्रान्ति के महानायक चारु मजुमदार

चारु मजुमदार का जन्म बनारस में सन्‌ 1917 में हुआ था. वहां उनके पिता वीरेश्वर मजुमदार एक स्कूल मास्टर थे. बीस के दशक के पूर्वार्ध में उनका परिवार पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी शहर में आकर बस गया. वीरेश्वर बाबू एक कांग्रेसी कार्यकर्ता होने के नाते स्वतंत्रता संघर्ष में कूद पड़े थे. पुत्र के साथ पिता का रिश्ता दोस्ताना था. बालक …

संतों और धर्म की पूंजीपतियों को जरूरत क्यों पड़ती है ?

‘उस आदमी की शिक्षा भी वैसी ही है, जैसे उसके कपड़े हैं. कोई नहीं. मुझे नग्नता से कोई समस्या नहीं है. मुझे शासन में धर्म से समस्या है’ – विशाल डडलानी संतों और धर्म की पूंजीपति को जरूरत क्यों पड़ती है ? इस सवाल का सही उत्तर समाजशास्त्री बेबर ने दिया है. उसने लिखा – ‘पूंजीपति को ऊर्जा पैदा करने …

उत्पीड़ित जातियों का उत्पीड़ित वर्ग ही क्रान्तिकारी आंदोलन का झंडा थाम सकता है

जातिवार गणना के प्रश्न पर मार्क्सवादी पार्टियों और ग्रुपों में शायद ही कोई हो जो इसके खिलाफ खड़ा हो. हमारा भी मानना है कि भारतीय समाज में जब जाति के आधार पर विभाजन है और जातीय उत्पीड़न के आधार पर शिक्षा और नौकरी में आरक्षण है तो इसकी अद्यतन जानकारी होनी ही चाहिए कि समाज में किस जाति की आबादी …

14 अगस्त को बंटवारा नहीं, एकीकरण हो रहा था

14 अगस्त, 1947 बंटवारे का दिन है…आम सोच है कि हिंदू और मुसलमानों ने इसे दो हिस्से मे बांट लिया. क्या ऐसा सोचना ठीक है ?? यह ओवरसिंप्लीफिकेशन आपको एक कम्यूनल ऐंगल देता है, किसी पार्टी, किसी खास विचारधारा के लिए यह सूट करता है. पर गंभीरता से देखेंगे, तो आपको कुछ अलग रंग दिखाई देंगे. इस नक्शे से ही …

प्रधानमंत्री मोदी आज ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मना रहे हैं !

प्रधानमंत्री मोदी आज ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मना रहे हैं. भारत में पहली बार विभाजन को किसी प्रधानमंत्री ने इस तरह याद किया है. यह बताता है कि पीएम आज तक सद्भाव के लक्ष्य तक नहीं पहुंचे हैं. वे इस बहाने भारत को जोड़ने की बजाय वोट बटोरने के एजेंडे पर लग गए हैं. आज भारत विभाजन के नहीं साम्प्रदायिक …

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