'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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पुस्तक / फिल्म समीक्षा

Mephisto : एक कलाकार जिसने अपनी आत्मा फासीवादियों को बेच दी

बहुत से लोग अकसर सवाल करते हैं कि ये बड़े बड़े फिल्म स्टार और सेलेब्रिटी आजकल कुछ नहीं बोलते जबकि एक समय जब यूपीए की मनमोहन सिंह की सरकार थी, तब वे लगातार सरकार की नीतियों और कार्यकलापों पर निशाना लगाया करते थे, तो ऐसे लोगो के लिऐ पेश है मनीष आजाद का यह आलेख – Mephisto: एक कलाकार जिसने …

‘अगोरा’: एक अद्भुत महिला ‘हिपेशिया’ की कहानी

‘कोपरनिकस’ और ‘गैलिलिओ’ से लगभग 1000 साल पहले मिश्र [Egypt] के ‘अलेक्जेंड्रिया’ [ALEXANDRIA] शहर में एक महिला हुआ करती थी. उसका कहना था कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है और वह भी अंडाकार वृत्त में. बिना किसी आधुनिक उपकरण और दूरबीन की सहायता के उसने उस वक़्त स्थापित टालेमी [Ptolemy] मॉडल को चुनौती दी. इस अद्भुत महिला …

‘गायब होता देश’ और ‘एक्सटरमिनेट आल द ब्रूटस’

कुछ किताबें और फिल्में ऐसी होती हैं, जहां समय सांस लेता है. यहां सांस के उतार-चढ़ाव और गर्माहट को आप महसूस कर सकते हैं. रणेन्द्र का ‘गायब होता देश’ और पिछले साल अप्रैल में HBO पर रिलीज़ हुई राउल पेक (Raoul Peck) की ‘एक्सटरमिनेट आल द ब्रूटस’ (Exterminate All the Brutes) ऐसी ही कलाकृतियां हैं. रणेन्द्र और राउल पेक एक …

मोहब्बत और इंक़लाब के प्रतीक कैसे बने फ़ैज़ ?

20वीं सदी के कई ऐसे कवि और शायर हुए जो देखते-देखते एक मिथक में बदल गये और प्रतिरोध के प्रतीक बन गये – चाहे निराला हों या मुक्तिबोध या पाब्लो नेरुदा या नाजिम हिकमत. फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ एक ऐसे ही शायर थे जो भारतीय उपमहाद्वीप ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया मे इंक़लाब के शायर बन गये. पाकिस्तान के लायलपुर के …

स्त्रियों की मुक्ति और सामाजिक उत्पादन

‘स्त्रीवाद की सैद्धांतिकी जेंडर विमर्श’, इस पुस्तक में स्त्री और पुरुष के लिंगभेद के कारण उत्पन्न समस्याओं पर हमारा ध्यान आकृष्ट किया गया है. स्त्रियों के जीवन में जो संघर्ष रहता है, स्त्रियों का हमारे जीवन में क्या महत्व रहता है, स्त्रियों को क्यों स्त्री होने के कारण इन संघर्षों का सामना करना पड़ता है ? उन्हें बचपन से ही …

बेगुनाह कैदी : भारत में नार्को टेस्ट की असलियत

‘नार्को टेस्ट’ को भारत में अपराध की गुत्थी सुलझाने के लिए रामबाण माना जाता है. डॉ. एस. मालनी ‘नार्को टेस्ट’ की एक्सपर्ट मानी जाती थी. विभिन्न राज्यों की ATS उन्हें ‘डॉ नार्को’ बुलाती थी और उनकी मदद लेती थी. मशहूर पत्रकार ‘जोसी जोसेफ’ (Josy Joseph) ने अपनी हालिया प्रकाशित महत्वपूर्ण किताब ‘The Silent Coup’ में इसका बड़ा रोचक लेकिन भयावह …

मुद्रा का इतिहास, महत्व और उसका प्रभाव

पैसा ख़ुदा तो नहींं लेकिन ख़ुदा की कसम ख़ुदा से कम भी नहीं.’ यह ‘सूक्ति’ कुछ वर्षों पहले छत्तीसगढ़ में भाजपा के एक मंत्री जूदेव सिंह ने रुपयों की कई गड्डियां घूस में लेते हुए उचारे थे. इस ‘सूक्ति वाक्य’ को एक खुफिये कैमरे ने कैद कर लिया था. उपरोक्त वाक्य इस समाज में मुद्रा के महत्व व उसके प्रभाव …

झूठी जानकारियों से भरी है वैभव पुरंदरे की किताब

भारतीय इतिहास का सबसे निकृष्टतम व्यक्तित्व सावरकर को महान साबित करने का संघियों द्वारा अथक प्रयास किया जा रहा है, इसके लिए कभी उसे भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारियों के समकक्ष खड़ा किया जाता है तो कभी गांधी और नेहरु के चरित्र पर कीचड़ उछाला जाता है. चूंकि सावरकर की तरह आरएसएस का भी इतिहास अंग्रेजों की जासूसी, दलाली और …

‘मदाथी : अ अनफेयरी टेल’ : जातिवाद की रात में धकेले गए लोग जिनका दिन में दिखना अपराध है

‘मदाथी : अ अनफेयरी टेल’ फिल्म योसाना की कहानी के साथ-साथ उस अदृश्य जाति (unseeables caste) के लोगों की जिंदगी से रूबरू कराती है, जिसे नरक कहा जाना सौ प्रतिशत सही होगा. हम छुआछूत, ऊंच-नीच के माध्यम से अपमानित किये जाने की घटना आये दिन सुनते, देखते और पढ़ते रहते हैं, लेकिन इसी धरती पर अदृश्य जाति (unseeables caste) के लोग …

धीमी गति का समाचार – बिहार

क्या बिहार को रुकतापुर कहा जा सकता है ? सब्र करने और कई दिनों तक इंतज़ार करने में बिहार के लोगों के धीरज का औसत दुनिया में सबसे अधिक होगा. यहां एक छात्र सिर्फ बीए पास करने के लिए तीन साल की जगह पांच से छह साल इंतज़ार करता है. अस्पताल में डाक्टर साहब के आने का घंटों इंतज़ार कर …

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