'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
Home पुस्तक / फिल्म समीक्षा (page 2)

पुस्तक / फिल्म समीक्षा

रूदाली

रूदाली, हमने दस साल की उम्र में देखी थी. ब्लैक एन ह्वाइट टीवी पर. समझ में नहीं आयी थी. आज रात में रूदाली चौथी बार देखी. राजस्थान के कई इलाकों में राजे-रजवाड़ों और उनके बाद राजपूत ज़मींदारों के घरों में जब भी किसी पुरुष की मौत होती थी, तो विलाप के लिए रुदालियों (किराये पर रोने वाली वाली) को बुलाया …

‘कथांतर’ का ‘प्रतिरोध की संस्कृति’ विशेषांक : संस्कृति की जन पक्षधारिता

प्रोफेसर राणा प्रताप के संपादकत्व में पटना से प्रकाशित ‘कथांतर’ का प्रतिरोध की संस्कृति विशेषांक मेरे हाथों में है. राणा जी के कथांतर विशेषांक प्रेरक ज्ञान और जानकारियों की दृष्टि से करिश्माई होते हैं. विशेषांक की विषय वस्तु, लेखकों का चयन, सामग्री की विविधता, भाषा और उनका खुद का संपादकीय अद्भुत होता है, जो मन और दिमाग की गहराइयों को …

होलोकास्ट बनाम ‘होलोकास्ट इंडस्ट्री’…

‘मुझे लगता है कि होलोकास्ट को बेचा जा रहा है, जबकि जरूरत उससे सबक लेने की है.’ – रब्बी अर्नोल्ड जैकोब वोल्फ (Rabbi Arnold JacobWolf) एकाध अपवादों को छोड़ दें तो होलोकास्ट पर लिखने वाले, विशेषकर अपना संस्मरण लिखने वाले यहूदी लेखक इजरायल और अमेरिका की आक्रामक नीतियों के समर्थक होते हैं. लेकिन Norman G Finkelstein इसके अपवाद हैं. Finkelstein …

पेरिस कम्यून पर एक महत्वपूर्ण फिल्म – ‘ला कम्यून’

मशहूर फिल्मकार पीटर वाटकिन ने 1999 में पेरिस कम्यून पर एक फिल्म बनायी – ‘ला कम्यून.’ साढ़े पांच घण्टे की यह फिल्म इतिहास के किसी कालखण्ड पर बनी अब तक की सबसे विश्वसनीय फिल्मों में से एक है. पेरिस व आसपास के कस्बों से कुल 220 लोगों को लेकर एक उजाड़ फैक्ट्री प्रांगण को सेट के रूप में बदल कर …

‘रामभक्त रंगबाज’: ‘फर्क साफ है’…

‘पाजामे की लंबाई इकतालीस करूं या साढ़े इकतालीस ?’ ‘कुछ भी कर दो. आधे इंच से क्या फर्क पड़ता है. ‘फर्क पड़ता है. आधे इंच से आदमी हिन्दू से मुसलमान हो सकता है.’ राकेश कायस्थ का चर्चित उपन्यास ‘रामभक्त रंगबाज’ इसी ‘फर्क’ की कहानी कहता है, जो 1990 के बाद दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रहा है. भारत …

‘काले अध्याय’ : नियति के आईने में इतिहास और वर्तमान

2015 में मनोज रूपड़ा का चर्चित उपन्यास ‘काले अध्याय’ भारतीय ज्ञानपीठ से छपकर आया था. इस साल इसका अंग्रेजी तर्जुमा ‘‘I Named My Sister Silence’ एका [Eka] प्रकाशन से छपकर आयी है. इसका अनुवाद– ‘The Adivasi Will Not Dance’ के लेखक हंसदा शेखर (Hansda Sowvendra Shekhar) ने किया है. किताब 2024 के लिए JCB Literary Prize award के लिए भी …

गिरमिटिया : बिदेसिया हुए पुरखों की कथा – ‘कूली वूमन- द ओडिसी ऑफ़ इन्डेन्चर’

आज से सौ साल पहले वह कलकत्ता से पानी के जहाज़ में बैठ एक अनजान सफ़र पर निकली थी. उस सफ़र में उसके साथ कोई अपना न था. वह अकेली थी. वह गर्भवती थी. ‘द क्लाईड’ नामक उस जहाज़ पर जो उसके हमसफ़र थे, उन्हें भी मंज़िल का पता न था. साथ में कुछ बहुत ज़रूरी चीज़ों के गट्ठर थे …

‘नास्टेल्जिया फॉर दि लाइट’ : एक और 9/11

9/11 आज एक मुहावरा बन चुका है. 2001 के बाद की दुनिया और 2001 के बाद की अमरीकी विदेश नीति को इन दो जादुई अंकों से ‘डीकोड’ किया जा सकता है. लेकिन कम लोगों को यह पता है कि दुनिया में एक और 9/11 है, जिस पर निरंतर पर्दा डाला जाता है. 11 सितम्बर, 1973 को दक्षिण अमरीकी देश चिली …

माई नेम इज़ सेल्मा : यह सिर्फ़ उस यहूदी महिला की कहानी भर नहीं है…

98 साल की उम्र में यहूदी महिला ‘सेल्मा’ (Selma van de Perre) ने 2021 में इसी नाम से अपना संस्मरण लिखा. हिटलर के शासन के दौरान जर्मनी व यूरोप में 1933 से 1945 के बीच यहूदियों की क्या स्थिति थी, इसका बहुत ही ग्राफिक चित्रण इस किताब में है. नीदरलैंड में एक मध्यवर्गीय यहूदी परिवार में जन्मी सेल्मा, जर्मन- राजनीति …

‘NAZARIYA’ : Land Struggles in India

सोशल मीडिया / इंटरनेट और तेज़ी से बदलते दौर में लघु-पत्रिकाओं के सामने एक बड़ा संकट यह खड़ा हो गया है कि वे पाठकों के हाथ में पहुंचने से पहले ही बासी हो जा रही हैं. ऐसे चुनौतीपूर्ण दौर में वही पत्रिकाएं अपनी प्रासंगिकता बनाये रख सकती हैं, जो न्यूज़ (news) से ज्यादा व्यूज़ (views) पर जोर दे. और वह …

123...5Page 2 of 5

Advertisement