हमारा देश और समाज पूर्णरूपेण दो किनारों पर खड़ा है, जिसमें कोई तालमेल नहीं, कोई सौहार्द्ध नहीं, कोई समर्थन नहीं. एक किनारे पर कुछ हजार काॅरपोरेट घरानों और दलाल पूंजीपति हैं तो दूसरे किनारे पर करोड़ों की तादाद में गरीब किसान-मजदूर और आम आदमी है, जो दो जून की रोटी और बेहतर भविष्य के सपने को लिए जन्म लेता है …