'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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पटियाला हाऊस कोर्ट में केजरीवाल और टीम की हत्या की धमकी के मायने

हमारा देश और समाज पूर्णरूपेण दो किनारों पर खड़ा है, जिसमें कोई तालमेल नहीं, कोई सौहार्द्ध नहीं, कोई समर्थन नहीं. एक किनारे पर कुछ हजार काॅरपोरेट घरानों और दलाल पूंजीपति हैं तो दूसरे किनारे पर करोड़ों की तादाद में गरीब किसान-मजदूर और आम आदमी है, जो दो जून की रोटी और बेहतर भविष्य के सपने को लिए जन्म लेता है …

काली रातः 23 मार्च

23 मार्च, 1931 ई० के इस काली रात की सुबह होने के इंतजार में न जाने कितनों ने अपनी कुर्बानी दी है. इस कुर्बानी का सिलसिला आज भी थमा नही है. आज भी उतने ही हैवानियत के साथ न केवल जारी ही है वरन् और व्यापक रुप धारण कर लिया है. करोड़ों भारतवासियों की तरह हम भी इस काली रात …

भारतीय जनता पार्टी का भयानक लूट कांग्रेस से ज्यादा है.

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की बनी सरकार को मीडिया इस तरह पेश कर रहा है मानो भारतीय जनता पार्टी तमाम बुराईयों से मुक्त हो गयी है, वही पंजाब में आयी तीन सीटों पर तर्क है कि वहां पुरानी सरकार के कारण विरोधी मत आये. इसका अर्थ तो यह भी लगाया जाना चाहिए कि चुनाव में आम आदमी किसी …

अप्रसांगिक होते संसदीय वामपंथी बनाम अरविन्द केजरीवाल

भारतीय संसदीय वामपंथी अब खाये-पिये-अघाये तबकों का एक नकली पैगंबर बन कर उभड़ा है, जिसकी जड़ें वामपंथी आवरण से निकलकर दलाल-पूंजीपति के बेडरूम तक जा पहुंची है. यह अकारण नहीं है कि संसदीय वामपंथी जड़ समेत उखड़कर पछाड़ खा रही है और तथाकथित ‘सुअरबाड़े’ में मूंह मारने को विवश है. अब वह भारतीय समाज के मेहनतकशों को कोई भी दिशा …

निजीकरण और व्यवसायीकरण की अंधी दौड़

कांग्रेस शासन काल में गरजने-बरसने वाली भारतीय जनता पार्टी जब भारत की सत्ता पर काबिज हुई, तुरन्त हीं कांग्रेस के छोड़े निजीकरण सहित सारे काम जो कच्छप चाल में रही थी, उसे न केवल पूरी तरह अपना लिया वरन जोर-शोर से लागू करना शुरू कर दिया. वे सारे एजेंडे जिसका भाजपा जमकर विरोध करती रही थी सत्ता में आते ही …

देश को देश की जनता चलाती है

नौ हजार करोड़ की विशाल धनराशि को लेकर भाग चुके माल्या पर भारतीय स्टेट बैंक की चेयरपर्सन अरूंधति भट्टाचार्य ने हंसते हुए कहा था कि माल्या से एक-एक पाई वसूल करूंगी. परन्तु इतना समय बीत जाने के बाद भी इसे छोड़िये, भारत सरकार भी नहीं बता पा रही है कि आखिर माल्या से कितने धनराशि की वसूली हो पाई है. …

अविश्वसनीय चुनाव से विश्वसनीय सरकार कैसे बन सकती है ?

अभी-अभी पांच राज्यों में सम्पन्न हुये चुनावी नतीजों ने अपनी असली रंगत दिखा दी है. एक तरफ निर्दोष युवाओं की हत्याओं केे खिलाफ खड़ी इरोम शर्मिला का 16 वर्षों का संघर्ष था, जो महज 90 वोट पर आकर सिमट गई तो वहीं दूसरी तरफ युवाओं को नशे की ओर धकेलने वाला नशे का व्यापारी मजीठिया और लफ्फाजों की सरकार भारतीय …

‘‘थैंक्स फाॅर 90 वोट’’ के निहितार्थ

भारतीय सुरक्षा बल द्वारा मणिपुरी जनता की बेलगाम हत्या के विरूद्ध 16 साल से अनशन कर रही युवा मन की व्यथा का इससे ज्यादा और क्या मजाक हो सकता है कि शासकवर्गीय चुनाव में उसे महज 90 वोट की प्राप्ति होती है. इरोम को मिले महज 90 वोट इस चुनाव के भ्रष्टाचारमुक्त और जनपक्षीय होने के मूल चरित्र पर ही …

क्या चुनाव जनता को ठगने और मन बहलाने का एक माध्यम है?

कट्टर वामपंथी का कहना है कि चुनाव जनता को ठगने और मन बहलाने का एक माध्यम है, कि जनता को अगले पांच साल तक शासक वर्ग का कौन घड़ा लूटेगा इसका निर्धारण है, कि विश्व समुदाय के सामने अपनी दलाल नीति पर जनता की नकली वोट द्वारा केवल मोहर लगाने का एक स्टाम्प मात्र है. वर्तमान में पांच राज्यों में …

दिल्ली का आम बजट: विषैले पौधों की जड़ों में मट्ठा डालने की क्रिया

शायद हम उन खुशकिस्मतों में शामिल हैं जो देश में चल रहे संक्रमण काल के दौर में जी रहे हैं, जहां एक घोर अवसरवादी-दक्षिणपंथी सत्ता के बीच जनता की सत्ता सांस ले रहा है और एक अद्भुत सुखद हवा का संचार कर रहा है. एक सत्ता, जिनका प्रतिनिधित्व भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में थोड़े-थोड़े अंतर के साथ तमाम राष्ट्रवादी …

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