'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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आखिर क्यों अरविन्द केजरीवाल को भ्रष्ट साबित करने पर तुली है भाजपा की केन्द्र सरकार?

भ्रष्टाचार के खिलाफ उठे विशाल जनान्दोलन की लहर से निकली एक छोटी पार्टी ने जब दिल्ली की सत्ता पर काबिज होकर भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने अभियान को और तेज कर दिया तभी उसी लहर पर सवार होकर केन्द्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी ने भ्रष्टाचार का तगमा अपने गले में लटकाये अंबानी और अदानी जैसे काॅरपोरेट घरानों की …

कुमार विश्वास का “अविश्वास”

अमानतुल्ला के ब्यान ने कुमार विश्वास के असली चेहरा को सामने ला दिया है. बकौल अमानतुल्ला, ‘‘कुमार विश्वास बीजेपी और आर.एस.एस. के एजेंट हैं’’ से भड़के कुमार विश्वास मीडिया के सामने बहुत कुछ कह गये और वे जितना ज्यादा कहते गये, उनका असली चेहरा जनता के सामने उतना ही ज्यादा साफ आता गया. कुमार विश्वास के अनुसार, ‘‘अमानतुल्ला खान अगर …

आम आदमी पार्टी और कुमार विश्वास का संकट

कहा जाता है कि जो समाज जितना ज्यादा पिछड़ा और विभाजित होता है और शिक्षा की सकारात्मक भूमिका जितना ही निम्न होता है, वहां काल्पनिक और आरोपित सत्य के आधार पर जन-भावनाओं को प्रभावित करना उतना ही आसान होता है. भारत इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है. यहां सत्ता गरीबों में खैरात बांटती है और मध्यम वर्ग में सपने परन्तु, वास्तविक भला …

जूते का राष्ट्रवाद!

यह कैसा सवाल है ? भला जूते का भी कोई राष्ट्रवाद होता है ? वह जूता जो हमेशा पैरों के नीचे पहना जाता है, उसका राष्ट्रवाद से भला क्या सम्बन्ध ? नहीं, कतई नहीं. जूते का राष्ट्रवाद से कोई सम्बन्ध नहीं होता. यह परम सत्य है. इसकी कोई काट नहीं है. क्यों नहीं है ? क्योंकि जूते में कोई जीवन …

फर्जी राष्ट्रवाद, भ्रष्ट मीडिया और राष्ट्रवादी जूता

भारत को अब तक एक राष्ट्र के तौर पर राष्ट्रीय भावना को उभारने वाली तीन यादें हैं, जिस पर सारे भारत के लोग एकजुट होकर बहस में शामिल हुये हैं. पहली बार यह भावना महात्मा गांधी के नेतृत्व में उभरी थी, जब पूरा देश अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हो गया था. दूसरी बार यह राष्ट्रीय भावना अमर शहीद भगत सिंह …

आदिवासियों के साथ जुल्म की इंतहां आखिर कब तक?

सुकमा एन्काउंटर में 26 सी.आर.पी.एफ. के सिपाहियों के मौत की जांच में गये पत्रकारों के सामने एक जवान ने बातों ही बातों में कहा, ‘‘नक्सली क्या मारेंगे, सरकार ही हमारी सुपारी किलिंग करवा रही है.’’ एक सिपाही के इस उद्गार के गंभीर निहितार्थ हैं. सिपाही भी लड़ना नहीं चाहता, माओवादी भी लड़ना नहीं चाहता, फिर भी लड़ाई हो रही है …

आप: दो कदम आगे

भारत में चुनाव की यह प्रक्रिया भी अन्य चीजों की तरह अंग्रेजी हुकूमत की ही देन है. इस तथाकथित लोकतांत्रिक प्रणाली में चुनाव केवल जनता को धोखा देने के लिए प्रचलित किया गया था, जिसका वास्तविक जन-आकांक्षा से कोई लेना-देना नहीं था.यही कारण है कि आम आदमी के लिए इस चुनाव का कोई मायने-मतलब नहीं था और वोट देने हेतु …

सुकमा के बहाने: आखिर पुलिस वाले की हत्या क्यों?

सुकमा में सी.आर.पी.एफ. के 26 जवानों की हत्या पर राज्य और केन्द्र सरकारें बगले झांक रही है और उसके जरखरीद चमचे मीडिया और सोशल मीडिया में सी.आर.पी.एफ. के जवानों को ‘‘निरीह’’, ‘‘गरीब’’ और केवल ‘‘ड्यूटी पूरा करने वाला’’ बता कर माओवादियों से न मारने की अपील कर रही है. आश्चर्य तो तब होता है जब यही ‘‘निरीह’’, ‘‘गरीब’’ और केवल …

भूखा जवान नंगा किसान

बी.एस.एफ. के जवान तेजबहादुर यादव की अधिकारियों के द्वारा खाने में भ्रष्टाचार की गंभीर सप्रमाण शिकायत करने के बाद जिस प्रकार उसे बर्खास्त कर दिया गया, इसमें भ्रष्टाचार में संलिप्त पूरी सरकारी मशीनरी और खुद भारत सरकार के भी शामिल होने का पुख्ता प्रमाण है. वहीं एक दूसरे जवान की संदेहास्पद हत्या केवल इसलिए कर दी गई कि उसने सेना …

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