कविता – कवि कहते हैं, होना चाहिए प्रेम प्रतिज्ञा अपने महबूब के प्रति. वर्णन हो, उसके अंग-प्रत्यंग का. नख से शिख तक का. कलात्मकता निहित हो, उसके सुखमय आलिंगन में ! परन्तु, कविता एक परम्परा भी है, मेहनतकशों के प्रति प्रतिबद्धता का भी है. जहां यह सब नहीं होता. कविता कल्पना में नहीं थाने के लाॅक-अप में भी हो सकता …
कविता
