Home गेस्ट ब्लॉग पूंजीपति सरकारी संरक्षण में सरकारी पैसे से सरकारी संपत्तियां खरीदकर धनकुबेर बन रहे हैं

पूंजीपति सरकारी संरक्षण में सरकारी पैसे से सरकारी संपत्तियां खरीदकर धनकुबेर बन रहे हैं

17 second read
0
1
1,322

फर्ज कीजिए एक बगीचा है जिसका माली सारे छोटे-छोटे पौधों, घास, फूल, झाड़ी इत्यादि के हिस्से का खाद-पानी सिर्फ दो बहुत बड़े पेड़ों में ही डालता है. उस बगीचे का भविष्य क्या है ? अगर माली लगातार यही करता रहा तो कुछ समय बाद बगीचे की घास, छोटे पौधे, फूल सब सूख जाएंगे. सिर्फ बड़ा पेड़ बचेगा. वहां पर बगीचा नहीं रह जाएगा. जब बगीचा ही नहीं रहेगा तो एक बड़ा पेड़ कब तक रहेगा ? एक दिन वह भी नहीं रह जाएगा.

अगर भारत देश को एक बगीचा मानें तो भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार वह माली है जो यही काम कर रहा है. उस पर जिम्मा है समूचे बगीचे को हरा-भरा बनाने का, लेकिन वह सारे पौधों के हिस्से का खाद-पानी एक मोटे पेड़ को डालता जा रहा है और बाकी सारे पौधे सूखने की कगार पर हैं. सरकार सारे देश का संसाधन सिर्फ एक पूंजीपति को सौंप रही है, और बाकी पूरे देश की जनता महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त है.

क्या कारण है कि आज हमारा देश पांच दशक की चरम बेरोजगारी और जानलेवा महंगाई का सामना कर रहा है ? इसका कारण साफ है कि पेट्रोलियम, रेलवे और परिवहन जैसी सेवाओं को सरकार ने कमाई का जरिया बना लिया है. जनसेवाओं से सरकार पैसा बनाने में लगी है और देश के संसाधनों को आम जनता तक पहुंचाने की जगह सिर्फ दो लोगों को सौंप रही है.

आज अगर पेट्रोल 100 रुपये में बिक रहा है तो इसमें से 27 रुपये केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी के रूप में लेती है. बेस प्राइस लगभग 49 रुपये है और 10 से 15 रुपये का टैक्स राज्य सरकार लेती है. यानी सरकारें पेट्रोल डीजल पर जनता से दोगुना पैसा वसूल रही हैं. मई 2014 में केंद्र सरकार पेट्रोल पर 10.38 रुपये और डीजल पर 4.52 रुपये एक्साइज ड्यूटी लेती थी. आज मोदी सरकार पेट्रोल पर 27.90 रुपये और डीजल पर 21.80 रुपये वसूलती है. यही कारण है कि पेट्रोल का दाम कई राज्यों में 100 के पार चला गया और जिस डीजल का दाम पेट्रोल से लगभग आधा हुआ करता था, आज वह पेट्रोल के लगभग बराबर है. केंद्र सरकार ने पिछले आठ सालों में पेट्रोल-डीजल पर टैक्स वसूल कर लगभग 26 लाख करोड़ रुपए कमाए हैं.

कांग्रेस 2018 से मांग कर रही है कि पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाए और एक स्लैब फिक्स किया जाए. लेकिन भाजपा सरकार ने इसे जीएसटी से बाहर रखा है ताकि इसके जरिए कमाई कर सके. अगर पेट्रोल-डीजल पर जीएसटी लागू हो जाए और अधिकतम 18 प्रतिशत जीएसटी लगाया जाए तो भी यह काफी सस्ता होगा.

सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि सरकार ये जो वसूली कर रही है, वह पैसा जा कहां रहा है ? क्या जनकल्याण में लग रहा है ? क्या जनता से वसूले गए इस पैसे से विकास कार्य हो रहे हैं ? क्या दूसरे किसी मोर्चे पर जनता को राहत दी जा रही है ? क्या लोगों को स्वास्थ्य और शिक्षा की बेहतर सुविधाएं मिल रही हैं ? दुर्भाग्य से इन सारे सवालों का जवाब है – नहीं.

मोदी सरकार के कार्यकाल में महंगाई और आम जनता की आमदनी की तुलना करें तो पिछले तीन साल में प्रति व्यक्ति सालाना आय 1.26 लाख से घटकर 99,155 रूपये पर आ गई लेकिन इसी अवधि में एक्साइज ड्यूटी से सरकार की कमाई 2,10,282 से बढ़कर 3,71,908 रुपये हो गई.

अगर आप यह देखना चाहें कि पिछले आठ साल में सरकार एकमुश्त सबसे बड़ा खर्च क्या रहा तो पता चलता है कि कॉरपोरेट का 10 लाख करोड़ रुपये बट्टे खाते में डाल दिया और 6 लाख करोड़ का टैक्स माफ किया. पिछले आठ सालों में लगभग 6 लाख करोड़ रुपये बैंक फ्रॉड में डूब गए. जनता के धन की यह सार्वजनिक लूट सरकार की मदद के बगैर संभव हुई होगी, यह मानना सच को झुठलाना होगा.

सरकार एक तरफ उस अंध पूंजीवाद को बढ़ावा दे रही है जहां पूंजीपति सरकारी पैसे से ही सरकारी संपत्तियां खरीद रहे हैं और फिर उस सरकारी पैसे (कर्ज) को सरकार माफ कर दे रही है. सरकार एक व्यक्ति को दुनिया का सबसे बड़ा धनकुबेर बनाने में लगी है लेकिन दूसरी तरफ गरीब और मध्यवर्गीय जनता से बेतहाशा वसूली कर रही है. देश का सबसे गरीब और मध्यवर्ग सबसे ज्यादा टैक्स चुकाता है और उसका फायदा एक-दो व्यक्तियों को मिलता है.

क्या दुनिया का तीसरे नंबर का अमीर व्यक्ति दुनिया में तीसरे नंबर का टैक्स दाता भी है ? विकास का यह विद्रूप कितने दिन ठहरेगा जहां 140 करोड़ लोगों की कीमत पर एक आदमी अमीर बनाया जाएगा ?

एक नौकरीशुदा सामान्य आदमी पहले अपनी कमाई पर टैक्स देता है, फिर बैंक में बचे पैसे निकालने पर टैक्स देता है, परिवार पालने के लिए रोटी-दाल का इंतजाम करे तो उसमें टैक्स देता है, नमक से लेकर माचिस तक हर वस्तु पर टैक्स देता है, गाड़ी, घर, टीवी, फ्रिज, मशीनें आदि जो भी खरीदता है, उस पर टैक्स देता है. आम आदमी अपने जरूरत की हर वस्तु को बगैर टैक्स के नहीं पा सकता. सरकार आम जनता से टैक्स लेकर जो कमाई करती है, वह जनता पर लगाने की बजाय जनता से ही और वसूलने की नीति पर काम कर रही है.

इसी भयानक आर्थिक कुप्रबंधन का नतीजा है कि आज दाल, चावल, दूध, दही, रोटी, गैस सिलेंडर या यूं कहिए कि जो भी जीने के लिए जरूरी है, वह सब टैक्स के दायरे में है और महंगाई आसमान छू रही है.

क्या भाजपा सरकार अपनी उपजाई इस महंगाई से राहत देने को तैयार है ? ऐसा लगता तो नहीं, क्योंकि न तो कोई ठोस मौद्रिक उपाय किए गए हैं और न ही निकट भविष्य में कोई योजना दिखती है. जिस महंगाई को भाजपा कभी आम लोगों की कमाई खा जाने वाली डायन-राक्षस बताती थी, आज उसी महंगाई को नीतिगत सुरक्षा हासिल है. ऐसे में जनता के पास एक ही रास्ता बचता है कि लूटनीति पर चल रही इस सरकार को उखाड़ फेंके.

संदीप सिंह, जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष, अब कांग्रेस

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

नारेबाज भाजपा के नारे, केवल समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए है !

भाजपा के 2 सबसे बड़े नारे हैं – एक, बटेंगे तो कटेंगे. दूसरा, खुद प्रधानमंत्री का दिय…