राम अयोध्या सिंह
समस्त भारतीय वांग्मय और धार्मिक ग्रंथों में सत्य को प्रतिष्ठापित करते हुए इसे शास्त्र, धर्म और मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण आधार माना गया है. सत्य की महिमा के बखान में लेखकों और ग्रंथकारों ने बखूबी अपनी कलम चलाई है. सत्यान्वेषण को सबसे महत्वपूर्ण बौद्धिक प्रयास माना गया है. सत्य ही जीवन है, सत्य ही परमानंद है, सत्य ही ईश्वर है, और सत्य ही मानव सभ्यता और समाज का नियंता है.
जिस व्यक्ति, समाज और व्यवस्था ने सत्य को स्वीकार किया और उसे समुचित महत्व दिया, वही व्यक्ति, समाज और व्यवस्था प्रगति और विकास के रास्ते पर चलकर अग्रगामी बना रहा, अन्यथा जड़ीभूत होकर विनाश को प्राप्त हुआ. पर, सत्य और अहिंसा को महत्ता प्रदान किया है बौद्ध धर्म और दर्शन ने, और पुराणों में झूठी और कपोल-कल्पित कहानियों के माध्यम से ब्राह्मणों ने सच पर रहस्यों के द्वारा ऐसा पर्दा डाला कि लोगों ने सत्य के बदले झूठ को ही सत्य समझकर अंगीकार कर लिया.
फिर भी, सत्य की लौ जलती रही, और उसकी परंपरा भी किसी न किसी रूप में जीवित रही. ब्राह्मणवादी और शोषणकारी व्यवस्था की निर्मिति के बाद से ही सत्य के खिलाफ राजसत्ता और सत्ताधारी वर्ग का षड्यंत्र चलता रहा. परजीवितावाद के सबसे बड़े पैरोकार और इसे समाज में प्रतिष्ठापित करने वाले ब्राह्मणों को मुफ्त में हर भौतिक सुख और सुविधाएं मुहैया कराई गई और उनसे झूठ की महिमा का गुणगान कराया गया. राजाओं की स्तूति-गान में उन्होंने अपनी बौद्धिक प्रतिभा का खुद ही उपहास उड़ाया, और स्वयं को, सत्य को और बुद्धि को भी सत्ता के आगे समर्पण कर दिया.
बौद्धिकता की परिभाषा और प्राथमिकता ही बदल गई. सच बोलने और लिखने वालों को उपेक्षा का शिकार होना पड़ा. झूठ बोलने और लिखने वाले को आमजनता के बीच झूठ का प्रोपेगंडा करने के लिए अधिकृत किया गया, हर गांव में मंदिर बनवाये गये, ब्राह्मण को वहां पूजारी के रूप में नियुक्त किया गया, जो अपने झूठे प्रवचनों द्वारा न सिर्फ बहुसंख्यक मेहनतकश आबादी को गुमराह किया, बल्कि उन्हें गुलाम बनाने के लिए शास्त्रीय, दार्शनिक और सैद्धांतिक आधार भी तैयार किया.
पुराणों के माध्यम से धर्म, भगवान, भाग्यवाद, भगवत भक्ति और साथ ही राजभक्ति का अनवरत पाठ पढ़ाया जाने लगा. सच बोलने और लिखने पर प्रतिबंध लगा दिया गया और ऐसा करने वाले को कठोर से कठोर दंड दिया गया, ताकि लोगबाग सच बोलने और लिखने से परहेज़ करने लगें. सत्य सत्ता का हमेशा ही प्रतिरोध करता रहा है, और शोषणकारी व्यवस्था के खिलाफ प्रतीक भी बन गया.
झूठ को प्रचारित और प्रसारित करने तथा समाज में उसे प्रतिष्ठापित करने के लिए ही कपोल-कल्पित कहानियों से भरे पुराणों की रचना हुई और लेखकों को अधिक से अधिक पुरस्कृत किया गया तथा राजदरबार में उचित और सम्मानपूर्ण पद भी प्रदान किये गये. यह स्थिति हजारों साल तक बनी रही और चलती रही. आम मेहनतकश आदमी को हमेशा के लिए शास्त्र, शस्त्र और संपत्ति से वंचित कर दिया गया, जो भारत में आजतक भी कायम है.
राजसत्ता के इस शोषणकारी चरित्र, दूरभिसंधि, राजनीतिक रणनीति तथा राजनीतिक और दार्शनिक षड्यंत्र के खिलाफ सच बोलना और लिखना सबसे बड़ा अपराध और ऐसा करने वाले को सबसे बड़ा अपराधी माना गया, जिसके लिए कठोर से कठोर दंड की व्यवस्था की गई. राम द्वारा शंबूक का वध और द्रोणाचार्य द्वारा एकलव्य से दान में अंगूठा लेना इसी तथ्य को प्रमाणित करता है.
वर्ण-व्यवस्था में निचले पायदान पर खड़े समूह से जिन लोगों ने भी अपने बल पर शास्त्र, शस्त्र और संपत्ति प्राप्त करने का प्रयास किया, उन्हें कठोर से कठोर दंड दिया गया. हर शोषणकारी व्यवस्था अपना विरोध करने वाले को दंडित करने या आतंकित करने का हमेशा ही प्रयास करती रही है. सत्ता की यह रणनीति आजतक भी कायम है.
पूरी दुनिया के लिए नयी विश्व व्यवस्था के निर्माण हेतु विश्व व्यापार संगठन, नाटो, संयुक्त राष्ट्र और जी ट्वेंटी जिस तरह से क्रियाशील हैं, और जिस तरह से इसका दायरा पूरा विश्व है, और जिस तरह से दुनिया के कमजोर, अशिक्षित, अविकसित, विकासशील और पूर्व के औपनिवेशिक क्षेत्रों को इसके दायरे में शामिल किया गया है, वह एक नये शोषणकारी व्यवस्था के निर्माण की ओर संकेत करता है.
हमारा भी यह दुर्भाग्य है कि भारत में आज का सत्ताधारी वर्ग और उसकी सरकार पूरी तरह से उस वैश्विक षड्यंत्र में शामिल हैं. विश्व पूंजीवाद की इसी योजना के तहत विश्व व्यापार संगठन के इशारे पर डंकल ड्राफ्ट के माध्यम से दुनिया के पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों ने निजीकरण, उदारीकरण और भूमंडलीकरण की नीति को आवश्यक रूप से पूरे विश्व में लागू किया.
भारत की सरकार और पूंजीपति तथा कारपोरेट घराने भी इस वैश्विक योजना में शामिल हैं, और उसी के अनुरूप और उन्हीं के निर्देशन में अपनी नीतियों, निर्णयों और कार्ययोजनाओं का निर्माण करने के साथ ही लागु भी कर रहे हैं. इसी योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए निजीकरण, उदारीकरण और भूमंडलीकरण की नीति को तीव्र गति से लागू किया जा रहा है. इसके विरोध में खड़ी शक्तियों को खत्म करने के लिए सरकार खुद आतंकवादी नीतियों का सहारा ले रही है.
देश की सारी संपति, संपदा और प्राकृतिक संसाधनों के साथ ही देश में आवागमन के सभी साधनों, सड़क, हाईवे, एक्सप्रेस वे, रेलवे, एयरपोर्ट, बंदरगाहों, सरकारी उपक्रमों, कंपनियों और निगमों को पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के हाथों मिट्टी के मोल बेचा जा रहा है. सेज और जीएसटी भी उसी योजना के अंग हैं. नागरिक अधिकारों का खात्मा, किसानों-मजदूरों और नवजवानों के लिए मुसीबतें खड़ी करना तथा संविधान, संवैधानिक संस्थाओं, लोकतंत्र, संसद तथा न्यायपालिका की मर्यादा और गरिमा का हनन और अवमूल्यन इन्हीं नीतियों के दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम हैं.
अपनी कमजोरियों, नाकामियों, कारगुजारियों और जनविरोधी नीतियों, निर्णयों तथा कार्ययोजनाओं के खिलाफ कुछ भी बोलने, लिखने, संघर्ष करने, आलोचना करने, प्रतिवाद करने, आंदोलन करने, धरना और प्रदर्शन करने, नारे लगाने तथा हड़ताल करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. विरोधी दलों के नेताओं की खरीद हो रही है, या उन्हें डराया-धमकाया जा रहा है.
सच बोलने और लिखने वाले लेखकों, बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, इतिहासकारों, सक्रिय कार्यकर्ताओं तथा मानवाधिकारवादियों को न सिर्फ डराया-धमकाया जा रहा है, बल्कि उनके लिए जेल का दरवाजा खुला रखा गया है, या फिर पुलिस द्वारा एनकाउंटर कर दिया जा रहा है. ऐसे सभी लोगों को अर्बन नक्सली या आतंकवादी कहकर न सिर्फ इन्हें अपमानित और बदनाम किया जा रहा है, बल्कि सामाजिक बहिष्कार भी किया जा रहा है. पर, शोषणकारी व्यवस्था के साथ यही सबसे बड़ी दिक्कत है कि वे यह नहीं समझ रहे हैं कि आखिर सत्य परास्त क्यों नहीं हो रहा है ?
सत्ता द्वारा शोषण और आतंक के खिलाफ हर समय और हर बार सत्य अपना सिर ऊपर उठा कर हकीकत का बयान करने ही लगता है. सुबह में मुर्गे की तरह बांग देकर वह लोगों को जगाने लगता है. सत्ता द्वारा आतंकित किये जाने की स्थिति में सत्य दीवारों का सहारा लेता है, और खड़िया से दीवारों को ही कागज समझकर लिखने लगता है, और जब हर जगह सन्नाटा पसरा रहता है, उस समय ये दीवारें खुद ही बोलने लगती हैं, और चीखने-चिल्लाने लगती हैं, और राजसत्ता की नींद हराम हो जाती है.
आज के भारत में वक्ता, लेखक, साहित्यकार, विचारक, बौद्धिक जगत और सक्रिय कार्यकर्ता भी डरे हुए हैं. इसीलिए दीवारों ने भी मौन साध लिया है. आज दीवारें भी चुप हैं. पर, यह स्थिति स्थायी नहीं और न ही स्थायी रहेगा. आवाजें उठेंगी, कलम चलेगी और दीवारें भी बोलेंगी, और तब पूरे देश में सत्ता के विरोध में लगे नारे गुंज उठेंगे. सत्य की यही तो खासियत है कि वह हमेशा के लिए न तो चुप रह सकता है, और न ही उसे चुप रखा जा सकता है. आज भले ही देश में मौन छाया है, पर वह दिन दूर नहीं है, जब सत्ता के विरोध में सत्य अपना वास्तविक रूप दिखलायेगा.
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