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विश्वगुरु भारत से दुनिया महिला बराबरी का पाठ सीख सकती है ?

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फरीदी अल हसन तनवीर

वो छोटी-सी, प्यारी-सी मासूम लड़की थी. हमारे पड़ोस में रहती थी. मैं हर नवरात्र और रक्षा बंधन पर उसे चिढ़ाता था – ‘बोहनी हुई ?कितना मुनाफा हुआ ?’

वह बड़े जतन, गर्व और गंभीरता से मुझे गिफ्ट में मिले चॉक्लेट, टॉफी, चिप्स के पैकेट्स, बर्तन, पेंसिल, इरेज़र, हेयर बैंड, माता वाली चुनरी, चांदी के सिक्के, पैरों की आर्टिफिसियल पायल और पूजा में मिले पैसे गिनाती थी.

अपनी इस कमाई दौलत पर उसके कुछ ख्वाब होते थे. बहुत पहले वह उस दौलत से बार्बी डॉल लेना चाहती थी. एक साल पहले तक वह एक साईकल चाहने लगी थी.

उसको थोड़ा/सा तंग कर में उसकी दौलत में थोड़ा-सा इज़ाफ़ा कर देता था. वह खुश होकर एक राजकुमारी की तरह बड़ी शान से अपने ख़ज़ाने से मुझे एक टॉफी अता फरमा देती थी.

हमेशा की तरह कल भी जब मैं उसके घर पहुंचा और पूछ बैठा – ‘कितनी कमाई हुई आज ?’

‘अब मुझे कोई कन्या खिलाने नहीं बुलाता भैया. मैं बड़ी हो गयी हूं. मैं अब नहीं जाती. वहां छोटी लड़कियां ही जाती हैं.’

एक झटका खाने के बाद मैं मुंह झुकाए उसके माता-पिता के साथ चने के प्रसाद के साथ चाय की चुस्की ले रहा हूं.

अब भाईसाहब और भाभी मुझे छोटी कुआंरी लड़कियों के पूजन और देवत्व के बारे में हिन्दू माइथोलॉजी के अनुसार परंपराएं बता रहे हैं.

मैं कुछ सुन नहीं पा रहा हूं. बस सोच रहा हूं कि अब कभी उसकी दौलत में अपना अंशदान मिला कर उसके हिस्से की टॉफी नहीं पा सकूंगा. मुझे उसके नुकसान में अपना नुकसान ज़्यादा लग रहा है.

कमरे में चल रहे टीवी पर न्यूज़ एंकर बता रहा है कि हिंदुत्व के रक्षकों ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार शबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने का प्रयास करने वाली चार महिलाओं को गिरा-गिरा कर पीटा. अपने काम पर निकली महिला पत्रकारों की कारों के शीशे तोड़ दिए गए. उन पर भी हमला किया गया.

रिमोट से चैनल बदला तो दूसरी एंकर देश भर में स्त्री शक्ति के त्योहार नवदुर्गा को हर्षोउल्लास से मनाने का समाचार पढ़ रही है. भारत एक मात्र ऐसा देश है जहां महिला को देवी मान पूजा जाता है.

अगले चैनल पर कोई भगवा वस्त्र पहने साधू महाराज बोल रहे थे कि विश्वगुरु भारत से दुनिया महिला बराबरी का पाठ सीख सकती है.

अभी-अभी छोटी-सी लड़की मुझे वास्तविक पाठ का अनुभव करा कर गई है. दूसरा प्रचलित पाठ टीवी पर चल रहा है. धर्म ग्रंथों, डिबेट्स, कक्षाओं, सभाओं, पुस्तकों, नेताओं और धर्मगुरुओं के भाषणों, संस्कृति के प्रवक्ताओं की ओज पूर्ण वाणी में चहुं ओर चल रहा है, सब जगह यह प्रचारित होता है.

मेरा सत्य अभी-अभी समझी इस वास्तविकता और प्रचार के शोर के बीच कहीं खो गया है. क्या आपको कहीं दिखा ? किसी को मिले तो मेरे सत्य को मेरे पते पर भेज देने की कृपा करें.

जो देवियां और सज्जन राजा जनक से प्रश्न पूंछने में व्यस्त थे, वे राजा जनक से मेरे सत्य के बारे में भी पूछते आएं प्लीज !

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