सुब्रतो चटर्जी
रेलवे बजट ख़त्म करने के बाद सालाना बजट को ख़त्म करने की जिस तैयारी में मोदी सरकार 2015 से लगी थी, उसकी सफलता इस साल के तथाकथित बजट में देखने को मिली. दरअसल, जब देश का बजट एक पार्टी का विजन डॉक्यूमेंट बन जाए तो उस पर चर्चा करना भी समय व उर्जा का दुरुपयोग है. बजट मूलतः जनविरोधी और पूंजीपरस्त है, ये सभी जानते हैं। मैं कुछ और पहलुओं पर प्रकाश डालने की कोशिश करता हूं.
मैं इस बजट को एक puritanical utopia (शुद्धतावादी स्वप्नलोक) समझता हूं. इस महाजनविरोधी और महामूर्ख के विजन डॉक्यूमेंट में भारत में ग़रीबी नहीं है, बेरोज़गारी नहीं है, किसानों की लगातार घटती आय नहीं है, साठ लाख छोटे बड़े उद्योगों के बंद होने का कड़वा सच नहीं है. 30 करोड़ लोगों को ग़रीबी रेखा के नीचे धकेलने का शर्मनाक सच नहीं है, शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था के संपूर्ण विनाश का सच भी नहीं है. फिर इस अमृत काल के बकलोली में ऐसा क्या है जिसकी चर्चा हम करें ? है, बहुत कुछ है.
उदाहरण के तौर पर, क्रिप्टो करेंसी के ज़रिए भारतीय मौद्रिक बाज़ार के digitalisation करने का सपना है. यह उस देश में है जहां पर 85% नगदी का लेन देन है.
शिक्षकों की बहाली, क्लास रूम की पढ़ाई अब बीते दिनों की बात हो जाएगी. झारखंड या बस्तर या लखनऊ से पच्चीस किलोमीटर दूर बसे बिना बिजली और नेट के भूखे नंगे कामगारों, सीमांत किसानों के बच्चे अब रिमोट कंट्रोल से नाभिकीय फ़िज़िक्स पढ़ेंगे. सोचने पर ही सारे बदन में झुरझुरी होती है. वाह मोदी जी वाह ! क्या रंगीन तस्वीर बनाई है आपने अमृत काल की !
राष्ट्र की सारी परिसंपत्तियों को बस दो हाथों में बेच कर सरकार और खुद प्रधानमंत्री भी भारमुक्त हो कर 2024 में सत्तर साल की उम्र प्राप्त कर मार्गदर्शक मंडल में शामिल हो जाएंगे. कांग्रेस के सत्तर सालों का पाप एक क्रिमिनल के सत्तर साल आयु आते आते पूरी तरह से धुल जाएगा. और क्या चाहिए ? गोबरपट्टी को मंदिर मिलते रहेंगे और पांच किलो अनाज की भीख. वैसे भी परिव्राजकों के इस देश में चोरी करना भले ही पाप है, भीख मांगना तो बिल्कुल नहीं है.
मोदी जी का विजन इस मामले में बहुत साफ़ है. भिखारी आपके परलोक को सुधारने का एक निमित्त मात्र है, इसलिए जितनी ज़्यादा भिखारियों की संख्या देश में होगी, उतनी ज़्यादा संख्या में लोग उन्हें भीख दे कर अपना परलोक सुधार सकेंगे. इसलिए मैं मोदी जी को भारत के सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री के रूप में प्रतिष्ठापित करने के अथक प्रयास में पिछले आठ सालों से लगा हुआ हूं, लेकिन लोगों को समझ आए तब न ?
संजीदगी से कहा जाए तो IMF और World Bank के हाथों गिरवी पड़ने के बाद से हर बजट उनके हेड क्वार्टर में ही बनता रहा है. इस साल ये बजट (?) भारतीय धन्ना सेठों के बोर्ड रूम में तैयार हुआ है, जो खुद अंतरराष्ट्रीय बैंकों के ग़ुलाम हैं.
सवाल ये है कि कैसे एक चुनी हुई सरकार इतना खुल कर जनविरोधी नीतियों को लागू कर सकती है ? जवाब एक ही है, आप न चुन कर आए थे और न कभी आप चुन कर आ सकते हैं. आपने सत्ता का अपहरण किया है हिटलर की नाज़ी पार्टी की तरह और आपका अंत मुसोलिनी के अंत से भी बदतर होगा.
संभव हो तो मेरी चेतावनी को आपके अमृत काल के अंतिम अध्याय में जोड़ दिजिए, क्योंकि विष का क्षय ही अमृत है.
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