हर सत्ता विरोधियों को कुचलना चाहती है लेकिन मोदी सरकार जनता को कुचलना चाहती है. मोदी सरकार की लड़ाई विरोधियों से नहीं, देश की जनता से है. इसके लिए उसने लगातार दस सालों से जमकर प्रयास किया. देश को अंतहीन झगड़ों में बांट दिया. झूठ, मिमिक्री, गालियां, अश्लील इशारों के जरिए उसने देश की जनता को बेवकूफ बनाने का जोरदार अभियान चलाया. लाखों स्कूलों को बंद कर दिया. लेखकों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों को जेलों में डाला, उनकी हत्या तक की, और अपने जरखरीद (गोदी) मीडिया के जरिये देश में कोहराम मचा दिया.
जब उसका इससे भी मन नहीं भरा तब उसने तरह तरह का भेष धर कर लोगों को भरमाया. मंदिरों, गलियारों के नाम पर अरबों खरबों का लूट मचाया, देश के किसानों की लाशों पर चढ़कर अडानियों के लिए मुनाफा का समुद्र खोल दिया. और जब जनता की ओर से आवाज उठी तो उसे कुचलने के लेकिन हजारों फौजियों को सड़क पर उतार दिया. सड़कों को काट दिया. सड़कों को कंटेदार लोहे की रड से जाम कर दिया. किसान बाप को फौजी बेटों से पिटवाया, लाठी-गोलियों से आतंक का नया मिसाल कायम किया.
देश के तमाम संवैधानिक संस्थाओं पर अपना पिट्ठू बैठा दिया. सुप्रीम कोर्ट में दलालों को भर दिया, चुनाव आयोग में अपने दलालों को चुनाव जिताने का जिम्मा सौंप दिया. लेकिन ऐसे भयावह आतंक के बाद भी जब जनता ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से अपना आवाज बुलंद किया, अपनी पीड़ाओं को देश भर में साझा किया, सरकारी आतंक का एक के बाद एक पोल खोल दिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि मोदी का तमाशा और उसका आतंक टांय टांय फीस्स हो गया और मोदी सरकार बैशाखी पर आ गई.
विभिन्न संस्थाओं ने जब चुनाव आयोग की दुश्चरित्रता का जांच किया तो निकलकर सामने आया कि चुनाव आयोग ने खुल्लमखुल्ला मोदी के पक्ष में चुनाव को प्रभावित किया और करीब 79 सीटों को घपलाबाजी करते हुए मोदी के झोला में डाल दिया. अन्यथा, मोदी 161 सीट से ज्यादा नहीं जीत सकता था. इससे घबरायी मोदी सरकार ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स को नियंत्रित करने के लिए एक बिल संसद में ले आया, जिसका नाम है – प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक, 2023 (ब्रॉडकास्टिंग सर्विसेज (रेगुलेशन) बिल, 2023).
इस विधेयक के बारे में बोलते हुए विपक्ष की नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने मोदी सरकार पर प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक लाकर डिजिटल मीडिया, सोशल मीडिया, ओटीटी प्लेटफार्मों, निजी तौर पर लिखने और बोलने वालों पर लगाम लगाने की तैयारी करने की कार्यवाही का बिल बताया है. उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी (यंग इंडिया, 1922) और जवाहर लाल नेहरू (मार्च, 1940) भाषण और प्रेस की स्वतंत्रता पर जोर दिया था.
प्रियंका गांधी वाड्रा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए कहा, ‘हमें सबसे पहले स्वतंत्र अभिव्यक्ति और संगठन के अधिकार को हासिल करना चाहिए और इन अधिकारों की रक्षा जान देकर भी करनी चाहिए. प्रेस की आजादी का मतलब यह नहीं होता कि जो चीजें हम छपी हुई देखना चाहें, सिर्फ उन्हीं की अनुमति दें, इस तरह की आजादी से तो कोई अत्याचारी भी सहमत हो जाएगा. नागरिक स्वतंत्रताओं और प्रेस की आजादी का मतलब है कि हम जो चीज न चाहें उनकी भी अनुमति दें और अपनी आलोचना बर्दाश्त करें.’
प्रियंका गांधी ने कहा, ‘हमारे नागरिकों को मिली अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता यूं ही नहीं मिली है. इसके लिए वर्षों तक लाखों लोगों ने लड़ाई लड़ी है. नागरिक स्वतंत्रता और प्रेस की आजादी हमारे शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों की महान विरासत है. आजाद भारत के इतिहास में कभी कोई सरकार नागरिकों को मिली स्वतंत्रता को कुचलने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी. आज एक तरफ सत्ता के जोर से पूरे मीडिया को सरकारी भोंपू बना दिया गया है दूसरी तरफ, भाजपा सरकार ब्रॉडकास्ट बिल लाकर डिजिटल मीडिया, सोशल मीडिया, ओटीटी प्लैटफॉर्म्स और यहां तक कि निजी हैसियत में लिखने-बोलने वालों की जुबान पर ताला लगाने की तैयारी कर रही है. यह पूरी तरह अस्वीकार्य है. देश ऐसी हरकतों को बर्दाश्त नहीं करेगा.’
वहीं, प्रस्तावित प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक, 2023 के बारे में चिंता जताते हुए ‘नेटवर्क ऑफ वीमेन इन मीडिया, इंडिया’ (एनडब्ल्यूएमआई) ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को सौंपे एक आवेदन में कहा है कि विधेयक के परिणामस्वरूप प्रसारण और डिजिटल मीडिया पर नियंत्रण और अति-विनियमन हो सकता है. एनडब्ल्यूएमआई ने सरकार से आग्रह किया कि वह सभी हितधारकों के साथ गहन विचार-विमर्श किए बिना विधेयक को आगे न बढ़ाए. इसने चेतावनी दी कि यह विधेयक देश में मीडिया परिदृश्य को व्यापक रूप से बदल सकता है.
एक बयान में एनडब्ल्यूएमआई ने कहा कि उसने प्रस्तावित विधेयक के संबंध में केंद्र सरकार को विस्तृत जानकारी दी है, जिसे हाल ही में मंत्रालय द्वारा जनता और हितधारकों से फीडबैक प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है. इस विधेयक में साफ तौर पर कहा गया है, ‘प्रसारण विधेयक, केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 को प्रतिस्थापित करना चाहता है, जिसका घोषित उद्देश्य टेलीविजन से लेकर स्ट्रीमिंग प्लेटफार्मों तक सभी प्रकार की प्रसारण सामग्री के लिए एक व्यापक नियामक व्यवस्था प्रदान करना है… सरकार देश के मनोरंजन और समाचार मीडिया को नियंत्रित करने के लिए इस विधेयक के माध्यम से खुद को अत्यधिक शक्तियां प्रदान करती है.’
एनडब्ल्यूएमआई ने कहा है, ‘नियंत्रण और अत्यधिक विनियमन का यह इरादा स्वस्थ, स्वतंत्र मीडिया या मनोरंजन की समृद्ध संस्कृति के हित में नहीं है. यह हर जगह परिपक्व लोकतंत्रों में मीडिया की स्वतंत्रता की नींव के खिलाफ है और भारत में मुक्त प्रेस, मुक्त भाषण और रचनात्मक स्वतंत्रता को अपूरणीय क्षति पहुंचाएगा. मसौदा विधेयक के अस्पष्ट शब्दों वाले प्रावधान, जिसमें ‘समाचार और समसामयिक मामलों के कार्यक्रमों’ की परिभाषा भी शामिल है, इसे व्यक्तिगत यूट्यूबर्स, पेशेवर पत्रकारों और यहां तक कि नागरिक पत्रकारों के सोशल मीडिया अकाउंट को भी कवर करने की क्षमता प्रदान करते हैं. विधेयक समाचार संगठनों पर ऐसी आवश्यकताएं और बोझ डालता है, जो बड़े प्रसारण नेटवर्क के लिए बोझिल होते हुए भी छोटे समाचार ऑपरेटरों को व्यवसाय से बाहर कर सकता है.’
इसमें कहा गया है कि विधेयक में कार्यक्रम संहिता और विज्ञापन संहिता का उल्लेख किया गया है, ‘जैसा कि निर्धारित किया जा सकता है.’ एनडब्ल्यूएमआई ने कहा, “जब तक सरकार प्रस्तावित संहिताओं की रूपरेखा प्रकाशित नहीं करती और उन संहिताओं पर प्रतिक्रिया नहीं मांगती, तब तक विधेयक पर कोई भी सार्वजनिक परामर्श निरर्थक है.’ उन्होंने कहा कि ऐसी परिस्थिति में, मसौदा विधेयक का प्रकाशन ही मनोरंजन और समाचार सामग्री के रचनाकारों पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा.
एनडब्ल्यूएमआई ने कहा कि विधेयक में न केवल इस बात की समझ की कमी दिखाई गई है कि समाचार क्या होता है, बल्कि समाचार संगठनों की कार्यप्रणाली की भी समझ की कमी दिखाई गई है, जब इसमें उन्हें मनोरंजन विषय-वस्तु के सृजनकर्ताओं के साथ जोड़ने का प्रयास किया गया है, विशेष रूप से समाचारकर्मियों के कार्य को विषय-वस्तु मूल्यांकन समितियों (सीईसी) के अधीन करने के प्रावधान को देखते हुए. इसमें कहा गया है कि विधेयक में प्रयुक्त शब्द ‘स्व-प्रमाणन’ एक गलत नाम है, क्योंकि यह विधेयक केंद्र सरकार को मुख्य चुनाव आयुक्तों के गठन में प्रमुख भूमिका देता है और इसका अर्थ है कि सरकार प्रसारकों द्वारा तैयार की जा रही विषय-वस्तु की निगरानी के लिए संपादकीय पैनल चलाएगी.’
एनडब्ल्यूएमआई ने कहा, ‘ओटीटी प्लेटफार्मों के संदर्भ में, सीईसी केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के कामकाज की नकल करने के लिए तैयार हैं… एक वैधानिक निकाय जिसकी भारतीय फिल्म निर्माताओं की पीढ़ियों द्वारा आलोचना और विरोध किया गया है… ओटीटी को सीबीएफसी जैसी संस्थाओं के तहत लाना इस सरकार द्वारा गठित और प्रसिद्ध फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञों की समिति की सिफारिश की भावना की अवहेलना करता है, जिसने फिल्मों के लिए भी अधिक उदार प्रमाणन प्रणाली की मांग की थी.’
एनडब्ल्यूएमआई ने कहा कि विधेयक के अनुसार समाचार और मनोरंजन मीडिया के कामकाज में केंद्र की व्यापक भूमिका, प्रसारण सलाहकार परिषद के गठन की आवश्यकता से और बढ़ जाएगी, क्योंकि इसकी संरचना मुख्य रूप से केंद्र द्वारा तय की जाएगी. वहीं भारत के मशहूर जनवादी पत्रकार रविश कुमार ने साफ कहा है कि यह विधेयक सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर मौजूद पत्रकारों का मूंह बंद करने की कोशिश है. पूछिए सरकार से कि इस ब्रॉडकास्ट बिल में ऐसा क्यों हैं ?
Read Also –
हामिद अंसारी और भारतीय मीडिया पर पाकिस्तान के पत्रकार नुसरत मिर्जा का बेबाक राय
गरीबों के घरों पर दहाड़ने वाला बुलडोजर और गोदी मीडिया अमीरों के घरों के सामने बुलडॉग क्यों बन जाता है ?
न्यूज नेटवर्क ‘अलजजीरा’ के दम पर कतर बना वैश्विक ताकत और गोदी मीडिया के दम पर भारत वैश्विक मजाक
गोदी मीडिया मोदी सरकार द्वारा पोषित एक राष्ट्रीय शर्म है
पहली बार कैमरों, सोशल मीडिया के चलते पूरा देश मनु के राज को देख रहा है
लकड़बग्घा की चीख – ‘सोशल मीडिया बंद करो !’
सोशल मीडिया की जनवादी व्यापकता मुख्यधारा की मीडिया पर करारा तमाचा
वैकल्पिक मीडिया व ‘सोशल मीडिया’ और बदलाव की राजनीति
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]