रूस का कजान शहर इस समय सर्वोच्च सुरक्षा घेरे में में है. वहां पर इस समय ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का आयोजन हो रहा है. 5 देशों द्वारा शुरू किए ब्रिक्स संगठन में अब 10 देश शामिल हैं. भारत के प्रधानमंत्री ब्रिक्स बैठक में शामिल होने के लिए इस समय रूस पहुंच चुके हैं. प्रधानमंत्री मोदी जी व चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कोई अलग से मुलाकात होगी, यूं तो इस पर दोनों देशों की तरफ से कोई आधिकारिक सूचना नहीं दी गई है.
लेकिन रूसी राष्ट्रपति पुतिन के कूटनीतिक तरीकों को भांपते हुए यह मान लिया गया है कि पुतिन की मौजूदगी में भारत और चीन के राष्ट्र प्रमुखों की अलग से मुलाकात होनी ही होनी है. हालांकि बिना पूर्व राजकीय घोषणाओं के यह तारीका अंतराष्ट्रीय राजनयिक मुलाक़ातों के इस चलन को संदिग्ध बनाता है लेकिन जब पूंजीवादी व्यवस्थाएं ही संदिग्ध हैं तो उनकी कार्रवाइयों से वैश्विक शांति की उम्मीद रेगिस्तान में पानी खोजने की झकमराई जैसा है.
हालांकि अंधराष्ट्रवाद का रायता फैलाते हुए युद्धोन्माद पैदा करके अपने हथियारों को बेचकर भारी मुनाफा लूटने का पुश्तैनी धंधा तो अमरीका का था, लेकिन भूमंडलीकरण के हुड़दंग भरे बाजारवादी संस्कृति में एक ही दुकानदार की बपौती नहीं होती. इस मौके का फायदा रूस ने यूक्रेन युद्ध के रास्ते लपक लिया. पुतिन ने यूक्रेन के साथ भिडन्त में नाटो देशों के सभी कथित उच्च तकनीक के हथियारों का कचरा कर मास्को में जब प्रदर्शनी लगा दी थी तो अमरीकी हथियारों के ग्राहक देश पाला बदलकर रूसी हथियार बाजार की लाइन में खड़े हो गए.
चूंकि सैकड़ों अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध के बावजूद रुसी अर्थव्यवस्था ने खुद को दुनिया की नंबर एक ताकतवर अर्थव्यवस्था बना लिया है, जिससे यूक्रेन को हथियारों की मदद करते करते कंगाल होते नाटो देशों में भगदड़ मची हुई है कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि एक अकेला रूस 32 नाटो देशों से भिड़ा हुआ है और तबाह होने के विपरीत आबाद हुआं जा रहा है ? आलम ये है कि यूक्रेन युद्ध में अब जेलेस्की अपने लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन लगभग खो चुके हैं.
रूस के पास लंबे समय तक युद्धों का अनुभव है और उत्तर कोरिया, चीन जैसे देशों के पास तकनीकी सम्पन्नता है. युद्ध एक फायदे का सौदा है, इस बात को कम से कम चीन, उत्तर कोरिया समझ गये हैं. अब मामला ये है कि युद्ध-उद्योग चाहे कोई भी खोले, उसके लिए एक दबंग बंदे का वरदहस्त तो चाहिए ही, वरना उद्योग का तंबू टाल टप्पर कोई भी ऐरा-गैरा उखाड़ के चल देगा.
ऐसे में पुतिन ने उत्तर कोरिया, चीन, ईरान, बेलारूस, तुर्की सहित तमाम देशों को युद्ध-उद्योग के विस्तार में लगा दिया है और बीच बीच में नाटो देशों को परमाणु हमले की धमकी देते हुए जाहिर करते रहते हैं कि हथियार निर्माता और विक्रेता होने पर रूसी खेमे का एकाधिकार ही रहेगा. एक हफ्ते पहले उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर मिसाइल दागकर जाहिर कर दिया है कि उत्तर कोरिया भी युद्ध उद्योग चलाने वाला है.
उधर चीन का पहले से ही चाइनीज सामान को लेकर तो पूरी दुनिया में कब्जा है इसलिए चीन अभी उतावला नहीं है. लेकिन उत्तर कोरिया के जरिए चीन अपने हथियारों का दक्षिण कोरिया की धरती पर प्रदर्शन जरूर करेगा. पूंजीवाद में बिज़नेस व राजनीति में जगह बनाने के लिए संवेदनहीन होना पहली शर्त है. और रूसी खेमा अगर नाटो खेमे की चर्बी उतारने में कामयाब हुआ तो यकीनन एक संवेदनहीन साम्राज्य पूरी तरह धराशाई हो जायेगा. रूसी खेमे में जब तक चाइना, उत्तर कोरिया रहेंगे नाटो संगठन देश ऐसे ही तिल तिल किश्तों में मरने के लिए अभिशप्त रहेंगे.
नेतन्याहू के पास अब कोई विकल्प नहीं बचा है, सिवाय अपनी सुनिश्चित तबाही को जारी रखने के. दुनिया भर के अमन पसंद देशों ने नेतन्याहू को खूब समझाया लेकिन समय भी उसी का साथ देता है जो समय की कद्र करता है. लड़ते लुढ़कते इजरायली सैनिकों की जघन्यतम दुर्गति भले ही अभी सामने नहीं आने दी जा रही हो, लेकिन इजरायली सैनिकों के साथ नेतन्याहू जो अमानवीय कृत्य कर रहा है उसकी कलई जल्दी ही दुनिया के सामने नुमाया होगी.
फिलहाल मीडियाई युद्ध, रूस यूक्रेन को छोड़ इजरायल लेबनान के बीच शिफ्ट हो गया है. लेकिन इससे पुतिन की यूक्रेन पर आक्रमकता बिल्कुल कम नहीं हुई है. रूस ने यूक्रेन की राजधानी कीव में अमरीकी एयर डिफेंस सिस्टम पेट्रियट को ध्वस्त कर दिया है तो उधर गजा में हमास लड़ाकूओं ने एक मिसाइल के जोर पर इजरायल के 60 से अधिक सैनिकों को एक साथ ढेर कर दिया है. लेबनान सीमा पर कई मोर्चों से इजरायली सैनिकों का पीछे हटने का सिलसिला जारी है. कुछ खबरों के मुताबिक उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग उन ने लेबनान व गजा क्षेत्र में अपने सैनिकों को उतारने की तैयारी बताई है.
इस समय हूथी-हमास-हिजबुल्ला बहुत मजबूती के साथ युद्ध के मोर्चों पर जबाबी कार्यवाही को आगे बढ़ा रहे हैं. जिस पश्चिमी मीडिया ने नेतन्याहू को उकसाया था, वही पश्चिमी मीडिया अब कह रही है कि ‘रूस-चीन ने अगर हमास-हूथी-हमास के सिर पर हाथ रखा है तो दुनिया की कोई ताकत उन्हें नहीं हरा सकती. नेतन्याहू को जब चाहे रूस उठाकर ले जा सकता है, वियतनाम युद्ध में अमरीकी हार भी वियतनाम की तरफ से रूस और चीन के दखल से हुई.’
इजरायली राजधानी तेलअवीव में पिछले एक हफ्ते से जनजीवन भयग्रस्त है. लगभग सन्नाटा पसरा हुआ है. इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद ने आशंका जताई है कि रूस, चाइना, उत्तर कोरिया, ईरान मिलकर हिजबुल्ला के हाथों इजरायल पर परमाणु हमले की तैयारी में हैं. इजरायल के भीड़भाड़ वाले इलाकों में इजरायली सेना इस समय परमाणु हमले के दरमियान इजरायली नागरिकों को बचने की ट्रेनिंग दे रही है. बड़े शहरों में परमाणु हमले से सुरक्षा के लिए बंकर व टनल बनने का काम जोरों पर है.
उधर चार दिन पहले यूक्रेनी सेना ने F-16 फाइटर जेट से एक रूसी फाइटर जेट SU32 को गिराया तो रूसी सेना ने राजधानी कीव से लगने वाले व्यस्ततम रिहाइशी इलाकों पर मिसाइलों की बौछार कर डाली. एक रूसी सैन्य अधिकारी के मुताबिक ‘यूक्रेन ने नाटो देशों से मिले अत्याधुनिक हथियारों के भंडार रिहाइशी इलाकों में छिपा रखे हैं. हमारे पास इसकी पुख्ता जानकारी थी और हमारे लक्ष्य में हमसे कोई चूक नहीं हुई.’
रूस के इस हमले में 133 यूक्रेनी सैनिकों के साथ 51आम नागरिक भी मारे गए. हालांकि यूक्रेन की हार पर तो पहले से ही मुहर लगी हुई है लेकिन जेलेंस्की चाहते हैं कि नाटो संगठन यूक्रेन को नाटो सदस्यता दे दे और फिर नाटो सीधे पुतिन का सामना करें. लेकिन जेलेंस्की को इस्तेमाल करने के बाद अमरीका अब यूक्रेन से पीछा हटाने के मंसूबों पर काम कर रहा है इसीलिए वह इजरायल लेबनान पर ज्यादा स्टेटमेंट दे रहा है लेकिन अमरीका ने यूक्रेन युद्ध के रास्ते पुतिन से पंगा लिया है, इसलिए अमेरिका, यूक्रेन से पीछा छुड़ाने की लाख कोशिशों के बावजूद भी रह-रहकर जेलेंस्की की माया में फंस जा रहा है. और इस मायावी युद्ध के सरताज पुतिन जानते हैं कि कब और किस जगह पर अमरीका को फंसाकर रखना है.
बहरहाल, युद्ध जारी है. हमास के कब्जे से इजरायली बंधकों को छुड़ाने को लेकर इजरायल में भारी प्रदर्शन हो रहे हैं, यहां तक कि कुछ खबरों में तो यहां तक कहा जा रहा है कि नेतन्याहू को किसी दिन कोई इजरायली खुफिया एजेंट ही ठिकाने न लगा दे. यानी, इजरायल के अंदर सियासी हलचल बहुत ही भगदड़ भरी हो चली है और अमरीका जिस दिन चाहेगा उस दिन नेतन्याहू के साथ ऐसा होकर रहेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है.
- ए. के. ब्राईट
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