रमन इफ़ेक्ट का सम्बंध रमन से नहीं है. यह तो प्रकाश के प्रकीर्णन की एक प्रक्रिया है. लाइट कायदे से सीधी चलती है लेकिन माध्यम के अणु उसकी वेवलेंथ बदल देते हैं. तो रमन इफेक्ट का सम्बंध, रमन के किसी निजी प्रभाव का असर नहीं, प्रकाश की स्थायी प्रकृति से है. ऐसे में नाम ‘लाइट वेवलेंथ वेरिएशन इफेक्ट’ जैसा कुछ होना था. पर खोजा रमन ने, तो नाम रमन इफेक्ट है.
ठीक इसी तरह ब्राह्मणवाद, ब्राह्मण जाति से जुड़ा नहीं है. यह एक प्रोसेस है, सोसायटी के स्तरीकरण की. ऊंच नीच की… जो ब्राह्मणों की देन है. मेरे एक मित्र के ब्याह के दौरान पता चला कि वे जाति से तेली है, मगर उच्च तेली हैं. अब भला निम्न तेली कौन होता है !
मालूम हुआ कि उनके पूर्वज जो तेल पेरा करते थे, उसके लिए मशीन और बैल का उपयोग करते थे. दूसरे निम्न तेली, स्वयं मानवीय श्रम से तेल पेरा करते थे. इन बैल वाले उच्च तेलियों के बच्चों का, मानवीय श्रम वाले निम्न तेलियों के घर ब्याह नहीं होता. तो यह बेसिकली तेलियों के बीच का आपसी मामला है, लेकिन है ब्राह्मणवाद…
ब्राह्मणवाद, आपको हर जाति के भीतर मिलेगा. मोटे तौर पर कुछ उच्च जातियां है, कुछ निम्न जाति. उच्च और निम्न के बीच दुराव है. लेकिन हर जाति के भीतर उप-उपजाति भी है, जिसमें अपने अपने स्तर हैं. ऊंच नीच और छुआछूत का भाव है. रोटी बेटी नहीं लेते देते. दूसरों की छोड़िए…खुद ब्राह्मण भी ब्राह्मणवाद के शिकार हैं.
देश का सबसे बड़ा ब्राह्मणवादी संगठन आरएसएस सिर्फ देशस्थ ब्राह्मणों को सरसंघचालक बनाता है. उनकी नजर में यूपी, बिहार, राजस्थान या कश्मीरी पंडित इस लायक नहीं हो सकते. शायद वे नीच ब्राह्मण हैं.
बल्कि पिछले दिनों एक बाबाजी खुलकर बोलते सुने गए कि उपाध्याय, चौबे, त्रिगुणायत, दीक्षित औऱ पाठक, नीच ब्राह्मण होते हैं. आज तक यह गजब बात सवर्णवादी मानसिकता के वामपन्थी इतिहासकारों ने छुपा दी थी. बाबाजी सामने लेकर आये, उनका आभार.
ब्राह्मणवाद, मूलतः शोषण की व्यवस्था है. सदियों पहले बनाई किसी भी नोबल उद्देश्य से हो, यह समय के साथ विद्रूप होकर एन्टाइटलमेन्ट और डिप्रेवेशन की व्यवस्था बन गयी है. एक गैंग, समाज पर अपने लिए अधिकार लूटता है, और दूसरों पर कर्तव्य थोपता है. इसे ही कानून में लिखता है, पारिवारिक संस्कार बना देता है. इसे ईश्वर और धर्म से जोड़ देता है. फिर शोषण का दौर अनंत काल तक चलता है.
देखा देखी हर जाति में ऐसे गैंग बन जाते हैं. कोई भी अगड़म बगड़म क्राइटेरिया बनाकर अपनी सुप्रीमेसी सुरक्षित कर लेता है. ऊपर अपने बापों से हक मरवाता है, नीचे अपनी ही जाति के वंचितों का हक मारता है. फिर आप राजव्यवस्था कैसी भी बनाइये, ये लोग अपना रास्ता निकाल लेते हैं.
आरक्षण की व्यवस्था ही देखिये. इसका लाभ मुट्ठी भर क्रीमी लेयर तक सीमित रह गया है. वही वही परिवार मौज लेते हैं, सत्ता और धनपशुओं से बगलें रगड़ते हैं, और समाज के दूसरों का हाल पहले जैसा ही है. चिराग पासवान जैसे दलित, ऐसे ही नवब्राह्मण हैं.
ऊंचनीच, छुआछूत, स्पर्श न करना, छुए पानी को न पीना, बड़ा ही सांस्कृतिक बनाकर आपके संस्कारो में ऐसा घुसा दिया गया है कि बात बात पर आपका धर्म भ्रष्ट हो जाता है. और इस छुई मुई लाजवंती किस्म के धर्म को बचाने के नित नए तरीके अपनाए जा रहे है. नेम प्लेट लगाने का बायस यही है.
नग्न ब्राह्मणवाद…, इसे जस्टिफाई करने का कोई भी लॉजिक सभ्य समाज में स्वीकार नहीं होना चाहिए. तो कल से सीधे गाली दे रहा हूं. बेइज्जत कर रहा हूं, आप भी करें, यह पुण्य का कार्य है. क्योंकि अगर आपके लॉजिक सही हैं, तो बीफ बेचने वालों के प्रोडक्ट पर असल मालिक का नाम, धर्म, जाति, उपजाति, गोत्र लिखवाना शुरू कीजिए.
इलेकोट्रोल बॉन्ड देने वालों का नाम बिना कोर्ट इंटरवेंशन के जाहिर कीजिए. देश की जेलों में जरायम की कमाई खाने वालों की जातियां और धर्म बताइये. तब रेहड़ी वालों, फलवालों, छोटे दुकानदारों पर यह कानून बनाकर लागू कीजिए. और हां, कांवरियों के लिए आदेश निकले, कि वे भी अपने गले मे तख्तियां डाल, अपना नाम, जाति साफ साफ लिखकर घूमें.
ताकि मार्ग में जो भी कट्टर हिन्दू और उनसे उच्च जाति के विक्रेता है, वे अठारवीं शताब्दी की इस तस्वीर की तरह उन्हें पानी पिलाने के लिए दुकान के सामने लकड़ी की खपच्चियों वाली नालियां बना सकें. उन्हें दूर, जमीन पर बिठाने के लिए जमीन गोबर से लीप सके, और निकल जाने के बाद वह भूमि गंगाजल से धो सकें. क्योंकि धर्म तो दुकानदार का भी है. क्या वह भ्रष्ट नही हो सकता ?
- मनीष सिंह
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