Home ब्लॉग ब्राह्मणवादी सुप्रीम कोर्ट के फैसले दलित-आदिवासी समाज के खिलाफ खुला षड्यन्त्र

ब्राह्मणवादी सुप्रीम कोर्ट के फैसले दलित-आदिवासी समाज के खिलाफ खुला षड्यन्त्र

5 second read
2
0
1,448

ब्राह्मणवादी सुप्रीम कोर्ट के फैसले दलित-आदिवासी समाज के खिलाफ खुला षड्यन्त्र

कानून सत्ता की रखैल है, एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने साबित कर दिया है. इसके साथ ही यह भी कि साफ कर दिया है कि कानून केवल कमजोर, दलित समुदायों और प्रगतिशील ताकतों के ही खिलाफ मुस्तैदी से काम करेगी. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट जैसे ब्राह्मणवादी संस्था के खिलाफ देश के कमजोर, दलित समुदायोंं और प्रगतिशील ताकतों का आक्रोश बेहद जायज है.

सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों ने देश में लोकतंत्र पर आसन्न खतरों से देशवासियों को चेतावनी दे दी है कि सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था पर किस प्रकार ब्राह्मणवादी  मानसिकता के लोग हावी हो गए हैं, जो देश के संविधान के खिलाफ सक्रिय हैं. उनके इस चेतावनी के बाद सुप्रीम कोर्ट के ब्राह्मणवादी और संविधान विरोधी गतिविधियां तब उजागर हो गया जब संसद द्वारा पारित एससी-एसटी एक्ट, 1989 कानून जो दलित समुदाय पर ब्राह्मणवादी मानसिकता के लगातार बढ़ते हमले के खिलाफ एक रक्षा कवच के बतौर काम करती थी, एकदम से खत्म करने का फैसला दिया.

विदित हो कि संसद के फैसले को संसद ही बहुमत के साथ बदल सकने का अधिकार रखती है. पर देश की सत्ता पर काबिज आतंककारी ब्राह्मणवादी मानसिकता जो देश के तमाम दलितों व कमजोर वर्गों का शोषण करना और उसके ईज्जत-आबरूओं को लूटना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं, इस एससी-एसटी एक्ट, 1989 के खिलाफ शुरु से ही रही है परन्तु लाख कोशिशों के वाबजूद जब संसद के जरिए इसे खत्म नहीं कर पाया तब सुप्रीम कोर्ट में बहाल किये गए अपने दलाल जजों के माध्यम से इस एक्ट को निश्प्रभावी बनाने का षडयंत्र किया गया. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि ब्राह्मणवादी अहंकार की रक्षा उसके लिए प्राथमिक है. हर रोज दलितों, आदिवासियों और महिलाओं पर ब्राह्मणवादी जुल्मों की क्रूरता सुप्रीम कोर्ट की निगाह में जायज है.

सुप्रीम कोर्ट ने दलितों-आदिवासियों पर ब्राह्मणवादी क्रूर हमलों को जायज ठहराते हुए कहा है कि यदि कोई आरोपी व्यक्ति सार्वजनिक कर्मचारी है, तो नियुक्ति प्राधिकारी की लिखित अनुमति के बिना, यदि व्यक्ति एक सार्वजनिक कर्मचारी नहीं है तो जिला के वरिष्ठ अधीक्षक की लिखित अनुमति के बिना गिरफ्तारी नहीं होगी. ऐसी अनुमतियों के लिए कारण दर्ज किए जाएंगे और गिरफ्तार व्यक्ति व संबंधित अदालत में पेश किया जाना चाहिए. मजिस्ट्रेट को दर्ज कारणों पर अपना दिमाग लगाना चाहिए और आगे आरोपी को तभी हिरासत में रखा जाना चाहिए जब गिरफ्तारी के कारण वाजिब हो. यदि इन निर्देशों का उल्लंघन किया गया तो ये अनुशासानात्मक कार्रवाई के साथ साथ अवमानना कार्रवाई के तहत होगी. सुुुप्रीम कोर्ट ने संसद द्वारा पारित एससी-एसटी एक्ट, 1989 को निष्प्रभावी करते हुए कहा कि संसद ने कानून बनाते वक्त ये नहीं सोचा था कि इसका दुरुपयोग किया जाएगा.

ब्राह्मणवादी सुप्रीम कोर्ट के फैसले दलित-आदिवासी समाज के खिलाफ खुला षड्यन्त्र

भ्रष्ट और ब्राह्मणवादी प्रशासनिक अधिकारी यहां तक कि न्यायालय भी किस प्रकार समाज के कमजोर वर्ग के खिलाफ काम करती है यह किसी से छिपा हुआ नहीं है. कोर्ट के जजों द्वारा ही की गई यह टिप्पणी इसकी पोल खोलती है. गुजरात प्रांत में एक अमीर आदमी द्वारा दूघर्टना में मारे गये एक निर्धन अछूत के बच्चे के केस में अदालत ने अभियुक्त को यह कहते हुए बरी कर दिया कि जिसका बच्चा मरा वह बेहद गरीब है और वह इनकी परवरिश करने में असमर्थ है. ऐसे में बच्चे की मौत से इसे फायदा हुआ है. कोलकता में बकरी चोरी के झूठे केस में रिहा हुए नवीन डोम द्वारा क्वीन नामक महीला पर किये गये मानहानी के केस को मजिस्ट्रेट ने यह कहते हुए खारिज किया कि वह निम्न जाति का आदमी है जिसकी कोई इज्जत नहीं होती. फिर मानहानि किस बात का. राजस्थान में महिला सशक्तिकरण का अभियान चलानेवाली भंवरी देवी के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ. केस चला. अदालत ने निर्णय दिया कि चूंकि भंवरी देवी अछूत जाति की है और आरोपित सवर्ण. किसी अछूत के साथ सवर्ण बलात्कार नहीं कर सकता और आरोपी बरी हो गये.

पद्मावती जैसी काल्पनिक पात्र पर बनी फिल्मों के खिलाफ ब्राह्मणवादी ताकतों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को ठेंगा दिखाते हुए वबाल काटा था, जिस पर यही ब्राह्मणवादी संस्था सुप्रीम कोर्ट खामोश हो गई और किसी उपद्रवियों के खिलाफ कोई कार्रवाई न कर जता दिया कि ये उपद्रवी सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ भी उपद्रव करने के लिए स्वतंत्र हैं. वहीं ब्राह्मणवादी मीडिया भी इस उपद्रव को इस प्रकार परोसा मानो देश भर में उपद्रव हो रहा हो, जबकि किसानों, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं के किसी भी जायज व विशाल प्रतिरोध को असंवैधानिक साबित करने की पुरजोर कोशिश करता है और उसके खिलाफ सैन्य बलों को हुलाने के लिए कोहराम मचाता है.

ऐसे में सुप्रीम कोर्ट जैसी शुद्ध ब्राह्मणवादी संस्था के खिलाफ समूचे देश के दलितों, आदिवासियों और महिलाओं का उठ खड़ा न केवल लाजिमी ही है वरन् ब्राह्मणवादी मानसिकता के चालबाज लोगों द्वारा आये दिन दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और प्रगतिशील ताकतों के खिलाफ किये जा रहे क्रूरता का जमीनी प्रतिरोध आज की जरूरत है.

Read Also –

लोकतंत्र, न्यायिक व्यवस्था और हम
जस्टिस लोया पार्ट-2: मौतों के साये में भारत का न्यायालय और न्यायपालिका
लालू प्रसाद यादव को दोषी करार देने वाला सीबीआई न्यायालय क्या स्वतंत्र है ?

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

2 Comments

  1. Sakal Thakur

    April 2, 2018 at 4:57 am

    बंद सफल है धन्यवाद थैंक्स साथियों

    Reply

  2. Anita

    April 2, 2018 at 3:33 pm

    Aaj pura Bharat band rha

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

नारेबाज भाजपा के नारे, केवल समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए है !

भाजपा के 2 सबसे बड़े नारे हैं – एक, बटेंगे तो कटेंगे. दूसरा, खुद प्रधानमंत्री का दिय…