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अंधी सड़कें

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अंधी सड़कें नहीं देख पाती
शार्क के खुले जबड़े
आदमी मच्छी के कांटे सा
फंसा हुआ है
उसके नुकीले दांतों के बीच

गांव दर गांव
शहर दर शहर
कंकाल के हाथ
लाल सलाम कहते हुए
लाल कार्ड
सरकारी बनिये की चौखट पर
कीड़े में चावल बीनते कीड़े
एक संप्रभु राष्ट्र की
धर्म ध्वजा है
जिसे बनाए रखने के लिए
करोड़ों टन काग़ज़
चाट दिए जाते हैं हर दिन

काग़ज़ के पीछे
सिसकते हैं कटे हुए जंगल
जहां रह रह कर
तुम्हें डरायेंगे
खदान की फिसलन
और लोहे के दैत्य

गोबर से अनाज चुनने के दिन हैं
लेकिन, सड़क पर बह रहे
दूध चाटने के लिए
आदमी की जीभ
विकासवाद की प्रयोगशाला के बाहर बनी है

सबके अलक्ष्य में
जब वे कर रहे थे
आततायियों की पहचान कपड़े से
ठीक उसी समय
करोड़ों पैदा हो रहे थे नंगा

उस समय हम क़ैद थे घरों में
गैस चेंबर बदल लिया था
ठिकाना अपना
अब वह निर्वासित था
खेतों खलिहानों में
जहां पके फसल हंसुए की प्रतीक्षा में
दुख में हिला रहे थे अपना सर

पेट के अंदर एक सिंहासन बतीसी है
हम सब उसकी न्यायप्रियता के क़ायल हैं
लेकिन, कुछ लोग आज भी
महल के बाहर खड़े होकर
खींच रहे हैं रस्सी
जो अंदर खाने में एक घंटी से बंधी है
इन लोगों में शामिल हैं
मच्छी के कांटे भी

शार्क के जबड़े से
टपकता हुआ लार
टाट का पैबंद है
जिसके पीछे
औरतें बिंदास जनती हैं
आदमी के बच्चे

2

पूरे सफ़र में
तुमसे सरगोशियां होतीं रहीं
पूरे सफ़र में चुप रहे रास्ते
सर झुकाए खड़े रहे
अपनी अपनी जगहों पर पेड़

पूरे सफ़र में बदलते रहे मौसम
बदलते रहे आसमान के रंग
हवाओं की दिशा
और गंतव्य की दूरियों के शिला पट्ट

पूरे सफ़र में
वही शख़्स मुझसे अजनबी रहा
जिससे करता रहा मैं बातें

और
जिसकी चुप्पी ने बिंध लिया मुझे
एक भाले की नोक पर
जो गंतव्य था मेरा

  • सुब्रतो चटर्जी

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