सौमित्र राय
अब बताइए कि ये गणतंत्र और देश का संविधान किनकी चौखट पर चाकरी कर रहा है ? दो भारत हैं – एक, जिसके हाथ में कानून का डंडा है, पीठ पर सत्ता का हाथ है और सिर पर देश की न्यायपालिका का वरदहस्त. कल यह भारत गणतंत्र दिवस मनाएगा. संविधान की दुहाई में कसीदे पढ़े जायेंगे. लेख भेजे जा चुके होंगे. प्रचार तंत्र भी फुल पेज के इश्तेहार भेज चुका होगा. लाठियां, छुरे, तलवार भांजने वाली भगवा ब्रिगेड भारत माता की जय के नारों के साथ तैयार होगी.
दूसरा भारत वह है, जो ‘वी द पीपल ऑफ इंडिया’ से शुरू होने वाले संविधान की प्रस्तावना को छाती से चिपकाए खड़ा है – लहूलुहान, पिसा हुआ, सताया, दबा–कुचला, शोषित, पीड़ित. वह एक ऐसे गणतंत्र की तरफ मुंह बाए चुपचाप खड़ा है, जिसके चारों खंभे धंस चुके हैं और वह भी उनकी ही छाती पर.
कल जेएनयू की लाइट 3 घंटे तक इसलिए काटी गई क्योंकि बीबीसी की एक फिल्म से डरी सत्ता को डर था कि कहीं फिल्म देखकर युवा बगावत न कर दें. कल ही 2002 के गुजरात दंगों में 17 अल्पसंख्यकों की हत्या के 22 आरोपी बरी हो गए, क्योंकि कोर्ट को 21 साल बाद भी कोई सबूत नहीं मिला. लेकिन बलात्कार का दोषी एक बाबा बीते एक साल में चौथी बार परोल पर बाहर आकर तलवार से केक काटता दिखा.
एक और ढोंगी बाबा के खिलाफ एफआईआर दर्ज़ है, लेकिन उसे वीवीआईपी की तरह रायपुर से पूरी सुरक्षा में उसके आश्रम लाया गया. मूर्ख जनता सड़कों पर बिछी रही. उधर, 30 दिन पहले जमानत पा चुके सिद्दीक कप्पन अभी भी जेल में हैं, क्योंकि सत्ता यही चाहती है. मोरबी का हत्यारा घड़ीसाज अब तक फरार है, क्योंकि यह सत्ता का गुजरात मॉडल है.
मीडिया के पास ऐसे बाबाओं के महिमामंडन की सुपारी है. इस्लामोफोबिया, मंदिर–मस्जिद, झूठ, दुष्प्रचार का ठेका है लेकिन इस कथित गणतंत्र में लोग नहीं हैं. वही लोग, जिन्हें वोट देकर भारत भाग्य विधाता चुनने का हक़ मिला हुआ है. फिर 26 जनवरी का मतलब क्या है ?
सुबह उठें और राष्ट्रगान के साथ कर्तव्य पथ पर रस्मी परेड को निहारें ! चौराहों पर तिरंगे के बीच राष्ट्रभक्ति के शोर को झेलें ! और आखिर में परिवार, दोस्तों के साथ लंच, डिनर, बड़ा पठान, छोटा पठान देखकर कुछ सेल्फी सोशल मीडिया में ठेल दें !अगले दिन सब–कुछ भूलकर फिर उसी अराजकता के तंत्र में खुद को खपाना शुरू कर दें ?
तंत्र पर भरोसा खो चुका दूसरा भारत गणतंत्र पर भी यकीन खो चुका है. 155 लाख करोड़ का कर्ज़दार यह देश हर व्यक्ति पर लखटकिया कर्ज़ की गठरी थमा चुका है. लेकिन अवाम तनिक भी उफ्फ न करे, इसके लिए आतंक का सहारा ही सत्ता का इकलौता विकल्प है, बाकी सारे जुमले हैं. पिछले 76 साल में भारत इस मुकाम पर आकर खड़ा हो चुका है कि देश में अघोषित इमरजेंसी है लेकिन अवाम को कोई फ़र्क नहीं पड़ता. फिर भी भारत गणतंत्र है तो यही सही ! मुबारक हो !!
देश में महीनों से दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों के तमाशे से भड़का गुस्सा आखिरकार पठान ने मोहब्बत में भुला ही दिया. गणतंत्र दिवस से ठीक एक दिन पहले देश ‘पठानोत्सव’ में डूबा है. तरण आदर्श बता रहे हैं कि फिल्म की भयंकर डिमांड को देखते हुए 300 स्क्रीन्स का फौरन इंतजाम करना पड़ा.
माना जा रहा है कि दुनियाभर के 8000 स्क्रीन्स पर रिलीज हुई. पठान कल तक 100 करोड़ से ज़्यादा का बिजनेस कर लेगी. वीकेंड तक करीब 250 करोड़. थिएटर में दर्शकों के डांस को बजरंगी और हिंदू पलटन के खिलाफ़ बगावत क्यों न माना जाए ?
ये देखना भी सुखद है कि बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर बंदिश के बावजूद लोग देख रहे हैं. इंदिरा के आपातकाल में भी लोग चोरी–छिपे खबरें ढूंढकर पढ़ ही लेते थे. अवाम का जागना गणतंत्र के लिए सुखद निशानी है. मैं नाउम्मीद नहीं हूं.
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