भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऐलान किया था कि वह ’31 मार्च, 2026 तक देश से माओवादी खत्म कर देंगे.’ उसने यह घोषणा छत्तीसगढ़ के माओवादी प्रभावित इलाकों में 1 लाख सैन्य बलों को झोंक कर आदिवासियों की हत्या और उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार करने के बाद अब एक नया नौटंकी शुरु कर दिया है. वह है – ‘केंजा नक्सली-मनवा माटा’ यानी, नक्सली हमारी बात सुनो.
तो आईये, समझते हैं छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार का यह नया शिगुफा है क्या. छत्तीसगढ़ के माओवादियों के जनताना सरकार के इलाके में मौजूद लगभग तमाम लोग शांतिपूर्वक रहते हैं और अपनी जिन्दगी की बेहतरी के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय, रोजगार हेतु जनताना सरकार की मदद से रहते हैं. जनताना सरकार के अधिकारी जनता के लिए बकायदा सड़कें, घर, स्कूलों, तलाबों आदि का निर्माण करती है.
वहीं, दूसरी ओर उसी समाज में कुछ ऐसे बदमाश तत्व भी होते हैं जो जनता के बीच तोड़फोड़ की कार्रवाई को अंजाम देते हैं. उनके द्वारा बनाये गये तंत्रों को भारतीय पुलिस की मदद से तहस-नहस करने की कोशिश करते हैं और मुखबिरी करते हैं. ऐसे तत्व महिलाओं के बलात्कार, सूदखोरी, धोखाधड़ी का अभियान चलाते हैं. यही कारण है कि ऐसे तत्वों के खिलाफ माओवादियों की जनताना सरकार का ‘न्याय विभाग’ दंडात्मक कार्रवाई करती है.
ऐसे दंडित बदमाश तत्व अपना भेद खुलने या दंड मिलने के बाद प्रतिशोध में या पुलिसिया लालच में आकर जनताना सरकार के इलाके से भागकर पुलिस के संरक्षण में आ जाते हैं और फिर वह दो तरीकों से काम करते हैं. पहला तरीका वह यह अपनाता है कि वह पुलिस के साथ मिलकर हथियार लेकर माओवादियों की सैन्य टुकड़ियों (पीएलजीए) पर हमला करना शुरु करते हैं और भारत सरकार के सहयोग से हत्या, बलात्कार, फर्जी मुठभेड़, लुटपाट आदि जैसे घृणास्पद कार्य में जुट जाते हैं.
भारत सरकार ऐसे बदमाश तत्वों को खूब प्रोत्साहन देते हैं. अथाह दौलत और प्रतिष्ठा देते हैं. लंबे लंबे वायदे करते हैं. इन्हें कभी ‘सलवा जुडूम’ तो कभी ‘डीआरजी’ कहते हैं. लेकिन माओवादियों ने सलवा जुडूम को तो जड़ से ही साफ कर दिया और फिर अपनी इज्ज़त बचाने के लिए भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से उसे (सलवा जुडूम को) ‘प्रतिबंधित’ करने का नाटक किया. फिर उसने ‘डीआरजी’ का गठन किया. अब लगता है शुरुआती सफलता के बाद अब यह भी कारगर नहीं रहा.
ऐसे में, मोदी-शाह जैसे कपटियों ने एक नया तरीका निकाला, वह है माओवादियों के खिलाफ ऐसे बदमाश तत्वों को इकट्ठा कर माओवादियों और उसकी जनताना सरकार के खिलाफ दुश्प्रचार संगठित करना. ऐसे बदमाश तत्वों को भारत सरकार ‘नक्सल पीड़ित’ कहती है. ऐसे ही बदमाशों तत्वों को एकजुट कर छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने दिल्ली के जंतर मंतर पर एक प्रदर्शन करवाया – ‘केंजा नक्सली-मनवा माटा’ यानी, नक्सली हमारी बात सुनो.
सवाल है नक्सली उनकी बात क्यों सुनेगा ? वह और वहां की रहने वाली जनता इनके काले कारतूतों से रग-रग परिचित है. भारत सरकार भी उसको अच्छी तरह जानती है. उसके अपराधों का पूरा लेखा-जोखा उसके पास होता है. चूंकि भारत सरकार खुद ही कॉरपोरेट घरानों और अपराधियों की सरकार है, जिसका एकमात्र काम जनता का शोषण कर कॉरपोरेट घरानों की सेवा करना है, इसलिए इन तत्वों की इनसे अच्छी जमती है और परस्पर सहयोग में रहता है.
चूंकि भाजपा की सरकार भले ही 31 मार्च, 2026 तक देश से माओवादियों को खत्म करने का दंभ भरती है, लेकिन भाजपा के मुख्यमंत्री ने जिस तरह दिल्ली के जंतर-मंतर पर ‘केंजा नक्सली-मनवा माटा’ का आयोजन किया है, वह साफ दिखाता है कि भाजपा समझ चुकी है कि वह हथियार के बल पर माओवादियों को खत्म नहीं कर सकती है, भले ही कुछ छिटपुट लोगों की हत्या कर लें.
माओवादियों से मार खाये इन बदमाशों ने जंतर-मंतर पर नक्सलवाद के खिलाफ सख्त एक्शन की मांग की है. माओवादी हिंसा के कारण झेले गए शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कष्टों को व्यक्त किया. उसने मगरमच्छी विलाप किया कि कैसे नक्सलियों की हिंसा ने उनके जीवन को प्रभावित किया और उनके गांवों में विकास की प्रक्रिया को बाधित कर दिया. ग्रामीणों ने सरकार से नक्सलवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की और अपने क्षेत्र में स्थायी शांति और सुरक्षा की अपील की. साथ ही बस्तर में शांति बहाली, विकास कार्यों में तेजी लाने और सुरक्षा बलों की उचित तैनाती की मांग की.
इन प्रदर्शनकारी बदमाशों को अभी भी शोषण-दमनकारी इन भारत सरकार से ही उम्मीद है कि वह उसे संरक्षण और फौज दे ताकि वह अपनी बदमाशी फिर से जारी कर सके. जबकि इन्हें अपने अपराधों के लिए, बदमाशियों के लिए लोगों से माफी मांगना चाहिए और आइंदा से न करने का प्रण लेना चाहिए और सम्मान सहित अपने अपने घरों में लौट जाना चाहिए, न कि इस शोषण-दमनकारी भारत सरकार के तलबे चाटना चाहिए और अपने ही भाईयों का खून बहाने के मंसूबों को पालना चाहिए.
- महेश सिंह
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