Home ब्लॉग भाजपा के दंगे भड़काने का कुत्सित षड्यंत्र

भाजपा के दंगे भड़काने का कुत्सित षड्यंत्र

2 second read
0
0
1,210

वक्त जैसै-जैसै सरकता जा रहा है, भाजपा को आगामी लोकसभा चुनाव का डर सालने लगा है. उसके सारे वादे जुमले साबित हो चुके हैं. सारी नीतियां जनविरोधी और देशद्रोहपूर्ण साबित हो चुके हैं. जितनी बड़ी तादात में देश के बैंकों से हजारों-लाखों करोड़ रुपए लेकर भागने की घटना हुई और होती जा रही है, मोदी सरकार की विश्वसनीयता ही खत्म हो गई है. ऐसे वक्त में भाजपा आगामी लोकसभा चुनावों को केन्द्रित कर अपने कार्यक्रम अभी से तय कर रही है, इसके लिए वह एक बार फिर देश भर में फर्जी हिन्दू-मुस्लिम विवाद पैदा कर दंगा भड़काने की अपनी कुख्यात रणनीति को अंजाम दे रही है.

रामनवमी बीतने के साथ ही बंगाल, बिहार, राजस्थान आदि राज्यों को दंगे के हवाले कर चुकी भाजपा के पास दंगे भड़काने और भड़काऊ भाषण देने के अलावा और कोई काम नहीं बचा है. सोशल मीडिया पर तैनात भाजपा के दंगाई लंपट हिन्दुत्ववादी राजनीति की आग फैला रहे हैं. ऐसे में इस लेख को जरूर पढ़ना चाहिए.

“मैं शांति चाहता हूं. मेरा बेटा चला गया है. मैं नहीं चाहता कि कोई दूसरा परिवार अपना बेटा खोए. मैं नहीं चाहता कि अब और किसी का घर का जले. मैंने लोगों से कहा है कि अगर मेरे बेटे की मौत का बदला लेने के लिए कोई कार्रवाई की गई तो मैं आसनसोल छोड़ कर चला जाऊंगा. मैंने लोगों से कहा है कि अगर आप मुझे प्यार करते हैं तो उंगली भी नहीं उठाएंगे. मैं पिछले तीस साल से इमाम हूं, मेरे लिए ज़रूरी है कि मैं लोगों को सही संदेश दूं और वो संदेश है शांति का. मुझे व्यक्तिगत नुकसान से उबरना होगा.”

अपने 16 साल के बेटे सिब्तुल्ला राशिदी की हत्या के बाद एक इमाम का यह बयान दिल्ली के अंकित सक्सेना के पिता यशपाल सक्सेना की याद दिलाता है. हिंसा और क्रूरता के ऐसे क्षणों में कुछ लोग हज़ारों की हत्यारी भीड़ को भी छोटा कर देते हैं. 16 साल के सिब्तुल्ला को भीड़ उठाकर ले गई और उसके बाद लाश ही मिली. बंगाल की हिंसा में चार लोगों की मौत हुई है. छोटे यादव, एस के शाहजहां और मक़सूद ख़ान.

“मैं भड़काऊ बयान नहीं चाहता हूं. जो हुआ है उसका मुझे गहरा दुख है लेकिन मैं मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत का माहौल नहीं चाहता. मेरी किसी धर्म से कोई शिकायत नहीं है. हां, जिन्होंने मेरे बेटे की हत्या की, वो मुसलमान थे लेकिन सभी मुसलमान को हत्यारा नहीं कहा जा सकता है. आप मेरा इस्तेमाल सांप्रदायिक तनाव फैलाने में न करें. मुझे इसमें न घसीटें. मैं सभी से अपील करता हूं कि इसे माहौल ख़राब करने के लिए धर्म से न जोड़ें.”

यह बयान दिल्ली के यशपाल सक्सेना का है जिनके बेटे अंकित सक्सेना की इसी फरवरी में एक मुस्लिम परिवार ने हत्या कर दी. अंकित को जिस लड़की से प्यार था, उसने अपने मां बाप के ख़िलाफ़ गवाही दी है. यशपाल जी ने उस वक्त कहा था जब नेता उनके बेटे की हत्या को लेकर सांप्रदायिक माहौल बनाना चाहते थे ताकि वोट बैंक बन सके. आसनसोल के सिब्तुल्ला को जो भीड़ उठा कर ले गई वो किसकी भीड़ रही होगी, बताने की ज़रूरत नहीं है. मगर आप सारे तर्कों के धूल में मिला दिए जाने के इस माहौल में यशपाल सक्सेना और इमाम राशिदी की बातों को सुनिए. समझने का प्रयास कीजिए. दोनों पिताओं के बेटे की हत्या हुई है मगर वे किसी और के बेटे की जान न जाए इसकी चिन्ता कर रहे हैं.

सांप्रदायिक तनाव कब किस मोड़ पर ले जाएगा, हम नहीं जानते. दोनों समुदायों की भीड़ को हत्यारी बताने के लिए कुछ न कुछ सही कारण मिल जाते हैं। किसने पहले पत्थर फेंका, किसने पहले बम फेंका. मगर एक बार राशिदी और सक्सेना की तरह सोच कर देखिए. जिनके बेटों की हत्याओ को लेकर नेता शहर को भड़काते हैं, उनके परिवार वाले शहर को बचाने की चिन्ता करते हैं. हमारी राजनीति फेल हो गई है. उसके पास धार्मिक उन्माद ही आखिरी हथियार बचा है, जिसकी कीमत जनता को जान देकर, अपना घर फुंकवा कर चुकानी होगी ताकि नेता गद्दी पर बैठा रह सके.

आपको समझ जाना चाहिए कि आपकी लड़ाई किससे है. आपकी लड़ाई हिन्दू या मुसलमान से नहीं है, उस नेता और राजनीति से है जो आपको भेड़ बकरियों की तरह हिन्दू मुसलमान के फ़साद में इस्तेमाल करना चाहता है. आपकी जवानी को दंगों में झोंक देना चाहता है ताकि कोई चपेट में आकर मारा जाए और वो फिर उस लाश पर हिन्दू और मुसलमान की तरफ से राजनीति कर सके. क्या इस तरह की ईमानदार अपील आप किसी नेता के मुंह सुनते हैं ? 2019 के संदर्भ में कई शहरों को इस आक्रामकता में झोंक देने की तैयारी है. इसकी चपेट में कौन आएगा हम नहीं जानते हैं.

मुझे दुख होता है कि आज का युवा ऐसी हिंसा के ख़िलाफ़ खुलकर नहीं बोलता है. अपने घरों में बहस नहीं करता है. जबकि इस राजनीति का सबसे ज़्यादा नुकसान युवा ही उठा रहा है. बेहतर है आप ऐसे लोगों से सतर्क हो जाएं और उनसे दूर रहें जो इस तरह कि हिंसा और हत्या या उसके बदले की जा सकने वाली हिंसा और हत्या को सही ठहराने के लिए तथ्य और तर्क खोजते रहते हैं. नेताओं को आपकी लाश चाहिए ताकि वे आपको दफ़नाने और जलाने के बाद राज कर सकें. फैसला आपको करना है कि करना क्या है ?

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…