क्या क्या नहीं देखा तुम्हारी इन आंखों ने
चारों ओर बस खून और लाशें
नीम बेहोशी में
अधखुली सी तुम्हारी आंखें
देख रही थी बस लाशें ही लाशें
तुम्हारे अपनों की लाशें ! चौदह लाशें !
जिसमें लहू से लथपथ तुम्हारी …
तीन साल की बिटिया भी थी
उन दरिंदों के चेहरे
तैर गये तुम्हारी आंखों के सामने
भूखे भेड़ियों की तरह टूट पड़े थे तुम पर
नहीं सुनी तुम्हारी कोई बात
कि पेट में पल रहा है पांच महीने का बच्चा !
ओ मेरी बानो !
वो 2002 का गुजरात !
वो हैवानियत !
इतना कुछ किया तुमने बर्दाश्त !
कहां कहां से गुज़र गयी तुम !
कितना कुछ देखा, सुना
तुम्हारी जैसी कितनी बहनों के पास
थे सुनाने-दिखाने को ऐसे ही ख़ौफ़नाक मंज़र
दरिंदगी के स्मारक ! राहत शिविर !
जले हुए घर, जली-अधजली लाशें
बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, औरतों को नंगा करना
उनके गुप्तांगों में डाल देना कोई चीज़, ज़िंदा जला डालना
वो नरोदापाटिया, अहसान जाफ़री वो कौसर बानो
संसद से सड़क तक खून से तरबतर
मनुष्यता की हथेलियां
हर जगह पर दे रही थी दस्तक
देखा था
बजरंगी बाबू को सुनाते हुए अपनी बर्बरता की बहादुरी की कहानी
कि गर्भवती औरत के पेट को चीरकर तलवार के नोंक पर लटकाया था …
संसद में बोलते हुए कांप गयी थी मैं
और जब सुना मंत्री के मुखारबिंद से कि
गढ़ रही हूं कपोल कहानियां
ओ…..
मेरी आंखों से आंसू नहीं लहू टपक रहा था
ओ बापू ! कहां खो हो गया था वैष्णव जन
यहां तो धधक रही थी घृणा की आग
जल रही थी गंगा-ज़मीनी तहज़ीब !
वली गुजराती की मज़ार
वो तो तीर्थ था इसी तहज़ीब का
रातों-रात मिटाकर बना दी गयी वहां पक्की डामर की सड़क
तुम्हारे आश्रम के दरवाज़े भी नहीं दे पाये शरण पीड़ितों को
ध्वस्त कर दी गयी नूरानी मस्जिद
पर अब भी बचे हुए थे कुछ अग्निबीज
मनुष्यता के अग्निबीज
उठ रही थी आवाज़ें
इस अंधी घृणा के खिलाफ
जल रही थी कुछ मशालें !
ओ मेरी बानो !
तुम भी तो एक मशाल थी
भटकती रही दर-बदर
पन्द्रह वर्ष में बदलने पड़े दस घर
अदालतों के चक्कर पर चक्कर
साये की तरह चिपका रहा डर
फिर भी लड़ती रही निडर !
- सरला माहेश्वरी
- स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर जब एक ओर भारत के प्रधानमंत्री लाल क़िले की प्राचीर से नारियों के सम्मान और सशक्तिकरण की बात कर रहे थे तो दूसरी ओर गुजरात सरकार बिलकिस बानो गैंग रेप के सभी ता-उम्र सजा प्राप्त दोषियों को माफ़ी देते हुए उन्हें रिहा कर देती है और उसका भाजपाइयों द्वारा फूल मालाओं और मिठाईयां खिलाकर सम्मानित किया जाता है.
- पांच महीने की गर्भवती, बीस वर्ष की बिलकिस बानो के साथ 2002 के गुजरात नरसंहार के समय गैंग रेप किया गया था. तीन साल की उनकी बेटी, उनकी मां और छोटी बहन समेत परिवार के 14 लोगों की हत्या कर दी गयी थी, उनकी आंखों के सामने. न्याय पाने के लिये बिलकिस बानो कहां-कहां नहीं भटकी, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और अन्ततः दोषियों को सजा दिलाने में वो समर्थ हुई.
- आज बिलकिस बानो के दिल पर क्या बीत रही होगी ! सरकारी न्याय का ये कैसा प्रहसन है कि बिना किसी अपराध के लोगों को जेल में डाल दिया जाता है, वर्ष पर वर्ष बीत जाते हैं उन्हें ज़मानत तक नहीं मिलती और अपराधियों को माफ़ करके रिहा कर दिया जाता है. वही बिलकिस बानो जिस पर हुए सामूहिक बलात्कार के लिये देश की सर्वोच्च अदालत ने गुजरात सरकार की जवाबदेही तय करते हुए बिलकिस बानो को 50 लाख रुपये, एक नौकरी और उसकी पसंद की रहने की जगह देने का आदेश दिया था और अदालत के इस फ़ैसले पर आंखों में आंसू लिये उसने कहा था, ‘बदला नहीं बस इंसाफ़ चाहिये था !’
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]