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भयावह होती बलात्कार की घटना

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भयावह होती बलात्कार की घटना

Ravish Kumarरविश कुमार, मैग्सेस अवार्ड प्राप्त जनपत्रकार

अर्थव्यवस्था के साथ-साथ भारत की मर्दव्यवस्था बहुत खराब हो चुकी है. सड़ गई है. सख्त कानून और फांसी की मांग को लेकर न जाने कितने प्रदर्शन हुए मगर बहुत कुछ ऐसा जरूर है जो इसके बस की बात नहीं है. या तो भारत का पुरुष समाज भीतर से सड़ गया है. उसके मानस और मनोविज्ञान का जिन चीजों से निर्माण हो रहा है, उसे हम समझ नहीं पा रहे हैं. इस प्रश्न को लेकर गंभीर होने का समय आ गया है. बलात्कार मामलों में कानूनी सख्ती के अलावा इन पहलुओं पर ध्यान देना ही होगा. देर से सजा हो या जल्दी सजा हो, दोनों का बलात्कार के मामलों पर खास असर नहीं पड़ रहा है. सुप्रीम कोर्ट में बलात्कार को लेकर बहस चल रही है. मीडिया में बलात्कार की खबरों को देखकर तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने स्वत संज्ञान लिया था. कोर्ट ने राज्यों के हाईकोर्ट में दर्ज बलात्कार के मामलों के आंकड़े मंगा लिए.

1 जनवरी, 2019 से लेकर 30 जून 2019 तक 24,212 बलात्कार के मामले दर्ज हुए थे. ये केस सिर्फ नाबालिग बच्चों और बच्चियों से संबंधित थे. इसी रिकार्ड को देखें तो 12,231 केस में पुलिस आरोप पत्र दायर कर चुकी थी और 11,981 केस में जांच कर रही थी. यानी कुछ सिस्टम बना है. 6,449 केस में ट्रायल चल रहा था. 911 केस का फैसला आया था. फैसले के हिसाब से यह प्रतिशत दुखद है. मात्र 4 प्रतिशत है. यह भी इतना इसलिए है कि पोक्सो के कानून के तहत जांच से चार्जशीट के लिए समय सीमा तय है. इसके भी बलात्कार की घटनाओं पर कोई खास असर नहीं पड़ा है.

सिर्फ नाबालिग बच्चों के साथ बलात्कार और यौन हिंसा के 24,212 मामले दर्ज हुए हैं. विश्व गुरु भारत में हर दिन बलात्कार के 132 मामले दर्ज होते हैं. 2017 में पूरे साल में 17,780 मामले दर्ज हुए थे, 2019 में सिर्फ 6 महीने में 24,212 मामले दर्ज हुए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक आदेश दिया था कि जिन जिलों में 100 से ज्यादा केस हैं वहां पर स्पेशल कोर्ट सेट अप किए जाएंगे. कोर्ट ने इस आदेश पर अमल की जानकारी के लिए केंद्र सरकार से 30 दिनों के भीतर रिपोर्ट मांगी थी. कोर्ट ने आदेश दिया था कि हर जिले में फोरेंसिक लैब बनाए जाएं. सिस्टम के हिसाब से भी बलात्कार के मामलों में जांच और इंसाफ का ये हाल है. समाज के लिहाज से देखिए तो रूह कांप जाती है. झारखंड की राजधानी रांची और तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से बलात्कार की जो खबरें आई हैं वो बता रही हैं कि हमारा समाज मे चाहे वो किसी भी जाति और धार्मिक समाज से ताल्लुक रखता है, वहशी और बीमार लोगों की संख्या काफी हो गई है. बलात्कार मामले में रिपोर्टिंग के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश के अनुसार हम पहचान संबंधित जानकारी तो नहीं दे सकते लेकिन इस आदेश का अमल भी बेमानी हो चुका है क्योंकि सोशल मीडिया में हैदराबाद की महिला का नाम और तस्वीर सब चल ही रहा है.

जब 27 साल की महिला को अगवा किया गया वहां से थोड़ी ही दूर पर पुलिस की पेट्रोल वैन खड़ी थी. महिला ने खतरे को भांप कर अपनी बहन को फोन किया था. साइबराबाद की पुलिस कहती है कि अगर 100 नंबर पर फोन करती तो ये नौबत नहीं आती. उस महिला का अब कुछ भी साक्षात नहीं है. हिंसा और कथित बलात्कार के बाद उसे जला दिया जा चुका है. पुलिस की बात ठीक हो सकती है लेकिन वहशी पुरुषों के बीच घिरी महिला आखिरी वक्त में किसे फोन करेगी यह तय नहीं किया जा सकता है. अपनी बहन को फोन किया था. उसके बाद फोन बंद हो गया. महिला के परिवारवालों ने टोंडुपल्ली टोल गेट पर पता किया जो वहां से मात्र 200 मीटर दूर था. घटना रात पौने दस बजे की है. 9 बज कर 20 मिनट के पास उसकी बाइक का टायर पंचर हो गया. दो पुरुष आए और मदद की बात की लेकिन चले गए. कुछ मिनट बाद एक और पुरुष आया और बाइक लेकर चला गया. वापस नहीं आया. महिला ने अपनी बहन को फोन किया और कहा कि बात करती रहे. लेकिन तब तक उसे अगवा कर लिया गया. और अब उसकी हत्या हो चुकी है. जला दिया जा चुका है. 70 फीसदी शरीर जल चुका था जब उनका शव बरामद हुआ. पुलिस भले कुछ कहे, लेकिन रात में सफर करने वाली महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था की हालत का पता चलता है. पुलिस ने दस टीमें गठित की हैं.

सोशल मीडिया में जिस तरह पूरे मामले को सांप्रदायिक रूप दिया जा रहा है. वह कोर्ट और पुलिस की नजर और दायरे से बाहर हो चुका है. पूरी मशीनरी लग गई है इसे घर-घर पहुंचाने की. काश यही मशीनरी बच्चों के साथ बलात्कार की 24000 घटनाओं के मामले में भी सक्रिय होती. जाहिर है अपराधी किसी भी मजहब या जाति का हो सकता है बल्कि होता ही है लेकिन इस पैमाने पर देखना बलात्कार के मामलों के साथ और नाइंसाफी है. शायद मशीनरी या आईटी सेल को पता है कि इन मामलों में इंसाफ कम ही मिलता है इसलिए इनका राजनीतिक इस्तेमाल किया जाए. बिहार के मोहनिया में भी गैंग रेप के वीडियो वायरल होने के बाद वहां धारा 144 लगी है. दुकानें जला दी गई हैं. इस मामले में चार लोगों की गिरफ्तारी हुई है. ऐसे मामले यही बता रहे हैं कि हर धर्म और जाति समाज के पुरुषों का कुछ इलाज करने की जरूरत है. इलाज का मतलब उनके मनोवैज्ञानिक इलाज से है. झारखंड की राजधानी रांची से एक तस्वीर आई है.

पुलिस के पीछे नकाब पहना कर खड़े किए गए इन बारह नौजवानों के बारे में क्या कहेंगे. झारखंड के मुख्यमंत्री के बंगले से 8 किमी दूर घटना हुई है. इस एरिया में झारखंड के पुलिस महानिदेशक का घर है. चीफ जस्टिस का घर है. विधानसभा में विपक्ष के नेता का घर है. ऐसे इलाके में शाम साढ़े पांच बजे बस स्टैंड पर खड़ी एक लड़की के साथ 11 लोगों ने गैंग रेप किया है. इन सभी के पास हथियार थे. बाइक पर आए और लड़की को उठा ले गए. पुलिस ने इन 12 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है. घटना का डिटेल बता रहा है कि इन आरोपियों को किसी बात से फर्क नहीं पड़ा. न पुलिस का डर था और न समाज का. 18 से 30 साल के बीच इनकी उम्र है. घटना मंगलवार रात की है. बुधवार की सुबह लड़की किसी तरह कांके पुलिस थाना पहुंची और एफआईआर कराई. पुलिस के दावे के अनुसार सारे आरोपियों ने अपराध कबूल कर लिया है. ये सभी 12 आरोपी एक ही गांव के हैं. इन पर एससीध्एसटी प्रिवेंशन एक्ट के तहत और आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है.

महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा और बलात्कार के मामले में भारत के नक्शे पर पुरुष समाज को रखकर देखिए. हैदराबाद और झारखंड में न तो शहर का फर्क नजर आएगा और न मजहब का और न जाति का. यह बीमारी भयावह हो चुकी है. जो कुछ भी किया जाना है लगता है वो नहीं किया जा रहा है. बातें हो रही हैं मगर खानापूर्ति की तरह, सिस्टम काम कर रहा है मगर दिखावे के लिए आधा अधूरा. राष्ट्रीय अपराध शाखा ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 2017 के साल में भारत में बलात्कार की 33,658 मामले दर्ज हुए थे. इसमें से 10,221 लड़कियां 18 साल से कम की हैं.

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