गुरुचरण सिंह
भागवत पुराण के रचियता ऋषि वेद व्यास की एक और प्रमुख रचना है भविष्य पुराण. ‘त्रिकालदर्शी’ इस ऋषि ने इसमें भविष्य में होने वाली घटनाओं का वर्णन किया है. हजारों साल पहले लिखी गई इस पुराण में ईसा मसीह और मुहम्मद साहब के जन्म से पहले ही इस्लाम के उद्भव तथा ईसा मसीह द्वारा प्रारंभ किए गए ईसाई धर्म के विषय में लिख दिया था.
कमाल का ग्रंथ है यह पुराण ! धर्म, सदाचार, नीति, उपदेश, अनेकों आख्यान, व्रत, तीर्थ, दान, ज्योतिष एवं आयुर्वेद – ऐसा कौन सा विषय है जिस पर कलम न चलाई गई हो लेकिन मेरी दिलचस्पी तो इतिहास को लेकर है. इसे पढ़ने के बाद कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र से महाभारत के लाइव प्रसारण पर शंका करने का कोई कारण ही नहीं बचता. इसमें मध्यकालीन हर्षवर्धन जैसे हिन्दू राजा और अलाउद्दीन, मुहम्मद तुगलक, तैमूरलंग, बाबर तथा अकबर आदि भी हैं, तुलसीदास भी हैं और सबसे बढ़ कर महारानी विक्टोरिया का राज्यारोहण भी है, वेताल-विक्रम संवाद के रूप में रोचक प्रसंग भी हैं.
इसके बावजूद अगर आपको ऋषि वेद व्यास के ‘त्रिकालदर्शी’ होने में रत्ती भर भी संदेह है तो निश्चय ही आप भी मेरे जैसे मूढ़ व्यक्ति हैं, जो यहीं सोचता है कि भविष्य पुराण की रचना अंग्रेज उपनिवेश काल में हुई है क्योंकि अंग्रेज ऋषि वेद व्यास के काल में आ कर ये सब बता गए हों, यह तो मुमकिन ही नहीं.
अपनी तमाम मूढ़ताओं के बावजूद हमने सोचा कि विक्टोरिया के ध्वजारोहण तक की कथा कहने वाली पुराण में कम से कम मोदी प्रसंग तो होना ही चाहिए क्योंकि उससे बड़ा हिंदू हृदय सम्राट तो कोई हो ही नहीं सकता ! अफसोस ! कहीं कुछ मिला नहीं. संभव है कुछ समय बाद आईटी सेल का कोई विशेषज्ञ इसमें यह प्रसंग जोड़ दे लेकिन आज तो कोरोना काल की तबाही के निशान ही चारों ओर बिखरे पड़े हैं !
सब से अधिक परेशान करने वाली बात है ‘राष्ट्रीय आपदा’ के समय भी सरकार का एकांगी चिंतन और जमीनी सच्चाइयों को मानने से इंकार. एक महीने से अधिक समय बीत गया है लॉकडाउन को लागू किए हुए. दो राज्यों में तो कर्फ्यू तक लगा हुआ है ! मुसलमानों के खिलाफ एक खास तरह की नफरत को पालने वाले लोग शायद इस लॉकडाउन के चलते कश्मीर के लोगों का दर्द भी महसूस कर सकें !
फिलहाल तो इस संकट में भी यही तथ्य प्रमुखता से उभर कर आया है कि देश की आबादी दो हिस्सों में बंट गई हैं – इंडिया और भारत के बीच ! किस्मत के हेठे भारत को इंडिया के स्वर्ग से बहिष्कृत कर दिया गया है क्योंकि उसके कुछ जोशीले नौजवान इंकलाब की बात करते हैं, अगिया बेताल बने ये लोग अपनी हर समस्या का जिम्मेदार ‘स्वर्ग के सिंहासन’ को धोखे से हथिया लेने वाले लोगों को मानते हैं.
लॉकडाउन बढाने की घोषणा अभी हुई ही थी कि एक अफवाह फैल गई – ट्रेन सेवा बहाल कर दी गई है ! बस फिर क्या था 21 दिन तक घर लौटने की बाट जोहते जिन लोगों की आंखें पथरा गई थी, रोजी रोटी तलाश में दूसरे राज्यों से मुंबई आए हजारों की संख्या में मजदूरों की भीड़ कुछ ही घंटों के अंदर एक रेलवे स्टेशन पर जमा हो गई. भीड़ को हटाने के लिए पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा था.
गुजरात के सूरत में भी कपड़ा मिलों का भारी जमावडा है अनुकूल मौसम के चलते. यूपी, बिहार के सैंकड़ों मज़दूर इन मिलों में काम करते हैं. मिलें बंद होने के बाद उन्होंने भी वापस भेजे जाने की मांग करते हुए प्रदर्शन किया.
दिल्ली में यमुना नदी के एक पुल के नीचे रह रहे सैकड़ों प्रवासी मज़दूरों की तरह ऐसे पुलों के नीचे और फुटपाथों पर रहते हैं. शैल्टर होम में आग लगने की वजह से वे तीन दिनों से भूखे प्यासे रहे और नहाए भी नहीं, जब तक उन्हें किसी और शैल्टर होम में नहीं भेज दिया गया ! कहने को ही यमुना नदी है लेकिन इस हिस्से मेंं एक बजबजाते नाले की तरह दिखाई देती है और जिसके तट पर कूड़ा कचरा बिखरा रहता है.
ये तो खाली तीन ही उदाहरण हैं, सैंकड़ों दिए जा सकते हैं ऐसे जहां ये मेहनतकश लोग एक महीने से फंसे हुए हैं. अभी कल ही गाजियाबाद और बुलंदशहर के दो वीडियो सामने आए हैं जहां घंटे दो घंटे में भोजन के कुछ पैकेट ले कर कोई न कोई कार आती है, लोग ऐसे पीछा करते हैं उसका जैसे ओलम्पिक दौड़ में भाग ले रहे हों. वहां पहुंंचने पर पता चलता है कि सब पहले ही बंट चुका है.
देश भर के शेल्टर होम में रहने वाले या फ़ुटपॉथों पर और फ्लाइओवरों के नीचे सोने वाले ऐसे मज़दूरों की संख्या क़रीब चार करोड़ से भी ज़्यादा है, जिनके कारण शहर का काम चलता है. घरों में बर्तन मांजने से लेकर खाना पकाने तक, पहरेदारी से लेकर घर के माली, ड्राइवर तक, इमारतों का निर्माण, रंगाई-पुताई, दुकानों और छोटे कारखानों में मजदूरी, रिक्शा, ऑटो, टैक्सी, रेहड़ी, ठेला, झल्ली वाले, खोमचा, पनवाड़ी का खोखा चलाने वाले, दर्जी और राजगीर आदि – ऐसा कौन सा काम है जो गांवों से आए इन लोगों के बिना चल पाता है !
अफसोस यही वे लोग हैं, यही वह भारत है जो इंडिया की करुणा तो पा सकता है, लेकिन उसकी चिंता का विषय कभी नहीं बन सकता. यही कारण है इन सभी लोगों तक राहत सामग्री भी नहीं पहुंच पाती है. कौन कहां है, कैसे है, इसका कोई हिसाब जो नहीं है.
यही वजह है कि यह भारत परेशान है, परेशान है कि उसकी बात भी कोई नहीं सुनने वाला. बस आपस में एक दूसरे का ढाढस बंधाते रहते हैं. मेहनत करके खाने के आदि ये प्रवासी मज़दूर बेचैन हैं. आपस में बातचीत से ही अपना दर्द हल्का कर लेने वाले ये मेहनतकश परेशान है. इंतजार में हैं कब इस लॉकडाउन में ढील मिले और कब वे अपने अपने घरों को लौटें।
(भविष्य पुराण में यह कथानक भी जुड़ेगा, इसकी बलवती संभावना है क्योंकि धार्मिक ग्रंथों में पिछले 6 सालों से आरएसएस की निगरानी में संशोधन कार्य चल रहा है. वैसे भी इस भविष्य पुराण के बारे एक मिथ गढ़ दी गई है कि इसमें मूलतः पचास हजार (50,000) श्लोक विद्यमान थे, जो श्रव्य परम्परा पर निर्भरता और अभिलेखों के लगातार विनष्टीकरण के परिणामस्वरूप वर्तमान में केवल 129 अध्याय और अठ्ठाइस हजार (28,000) श्लोक ही उपलब्ध रह गये हैं. स्पष्ट है इन बांकी बचे श्लोकों के सहारे दुनिया की उन अद्भुत एवं विलक्षण घटनाओं और ज्ञान को जोड़ दिया जायेगा – सं.)
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