कल से एक ख़बर आ रही है. मोदी के उड़ीसा दौरे के समय एक अधिकारी को इसलिए सस्पेंड कर दिया गया कि उसने मोदी के हेलिकॉप्टर की तलाशी ली थी. शायद यह अधिकारी अपनी ड्युटि निभा रहा था, वर्ना प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था को भेद कर तो कोई ऐसा कर ही नहीं सकता. शायद वह बस चुनाव आचार संहिता का पालन कर रहा था, जिसको मोदी अपने जूते तले रोज़ रौंदता है और चुनाव आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चुपचाप देखता रहता है.
सांवैधानिक भारत का इन फासिस्टों के हाथों संपूर्ण विनाश के बाद जब नई जनक्रांति होगी तब आने वाली पीढ़ियां इनसे पूछेंगी कि जब आपको एक व्यक्ति जूतों तले रौंद रहा था, तब आप अंडरवीयर के रंग जैसे महत्वपूर्ण विषय पर अपना बहुमूल्य समय क्यों लुटा रहे थे.
ख़ैर, वो बाद की बात है, हो सकता है ऐसा हो या न भी हो क्योंकि ग़ुलामी की आदी आवाम के लिए स्वतंत्रता कोई मायने नहीं रखती, न व्यक्तिगत, न राष्ट्रीय. जो बात मैं कहना चाहता हूं वो अलग है. कल की घटना ने मुझे पंडित नेहरू के जीवन की एक घटना की याद दिला दी.
पंडित जी की आखि़री जनसभा बिहार के भैंसालोटन में हुई थी, जो कि चंपारन के क़रीब है. पंडित नेहरू के कारों का कांरवा गुज़र रहा था और रास्ते में एक रेलवे क्रॉसिंग था. उस जमाने में स्टीम इंजिन थी. जब तक नेहरू जी का कारवां क्रॉसिंग तक पहुंचा, तब तक कॉंट्रोल से गेट बंद करने का निर्देश आ गया थाए और गेट मैन ने गेट गिरा दिया. नेहरू जी के सुरक्षाकर्मी उतरे और गेट मैन को कहा कि ‘प्रधानमंत्री का क़ाफ़िला है, इंतज़ार नहीं कर सकते’. गेट मैन टस-से-मस नहीं हुआ और तब तक गेट नहीं खोला जब तक ट्रेन पार न हुई. बाद में नेहरू जी ने उस गेट मैन को दिल्ली बुलाकर सम्मानित किया.
ये वाक़या और कल का वाक़या दिखाता है कि एक ही पद पर बैठे दो अलग-अलग व्यक्ति के व्यवहार में कितना फ़र्क़ होता है, जबकि नेहरू एक विश्व नेता थे और आपको पूरी दुनिया एक हत्यारा और कुछेक पूंजीपतियों के निर्लज्ज दलाल से ज़्यादा कुछ नहीं समझती.
वैसे मोदी की एक बात सच है. नेहरू जी वाक़ई उनको काम करने नहीं देते क्योंकि जिन सांवैधानिक और अन्य संस्थाओं को नेहरू जी ने जीते-जी बनाया, वे आधुनिक भारत की पहचान हैं और उनकी बुनियाद को हिला पाना आपके द्वारा बैठाए गए कुछ टुच्चों के बस की बात नहीं है. आपके द्वारा पाठ्यक्रम से लोकतंत्र चैप्टर हटाने से भारत से लोकतंत्र नहीं ख़त्म होगा मोदी जी, आप ख़त्म हो जाएंगे.
- सुब्रतो चटर्जी
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