जब मैंने अपनी एक पोस्ट में लिखा कि भारत में लाखों करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनका मासिक वेतन 3000 रुपए महीना है, इसलिए सरकारी तंत्र के लोगों का वेतन व सुविधाएं कम की जानी चाहिए तो बहुत लोग ज्ञान व तथ्यों का कटोरा लेकर आ गए तर्क-वितर्क-कुतर्क करने. बहुत तकलीफ हुई लोगों की संवेदनशीलता, विचारशीलता व सोच का छिछला स्तर देखकर.
बहुत लोगों ने यह भी बताया कि ईंटा ढोने वाला मजदूर भी 12,000 से 15,000 रुपया महीना कमाता है. शायद इन लोगों की नजर में शारीरिक परिश्रम करना सबसे घटिया होना है, सबसे निम्न होना है. तभी इन लोगों को यह लगता है कि यदि शारीरिक परिश्रम करने वाला मजदूर इतना कमाता है तो बाकी लोग तो अधिक ही कमाते होंगे. अजीब मानसिकता से ग्रस्त हैं लोग. इन लोगों को यह भी लगता है कि एक मजदूर पूरे साल हर रोज काम पाता ही है. इन लोगों को अपना खून जलाकर रिक्शा चलाने वाले मजदूर से भी तकलीफ होगी क्योंकि कुछ रिक्शे वाले बड़े शहरों में 30,000 रुपए महीना या अधिक भी कमा लेते हैं.
मैं सन् 2016 तक स्वयं अपने जीवन में ऐसे बहुत लोगों से मिला हूं जिनकी मासिक आय 3000 रुपए से कम थी.
यदि पिछले तीन सालों में भारत के करोड़ों लोगों की आय अचानक कई गुना बढ़ गई है तो इसके लिए मोदी जी को सलाम किया जाना चाहिए तथा उन लोगों को धिक्कारा जाना चाहिए जो मोदी जी व उनकी सरकार को गालियां देते हैं, आलोचनाएं करते हैं.
भारत के लोगों की औसत मासिक आय लगभग 3500 रुपया महीना है.
यह मेरा बनाया आकड़ा नहीं है. यह सरकारी व अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के आकड़े हैं.
मासिक आय का औसत 3500 रुपए महीना इसलिए है, क्योंकि कुछ करोड़ सरकारी लोग अनाप शनाप वेतन व सुविधाएं पाते हैं. इसका मतलब सिर्फ यह है कि भारत में बहुत करोड़ लोगों की मासिक आय 3000 रुपए भी नहीं है, 3000 रुपए से भी बहुत बहुत कम है.
इससे यह भी दीखता है कि भारत में सरकारी तंत्र में सबसे कम वेतन पाने वाला भी भारत के लोगों की औसत मासिक आय से कम-अधिक लगभग 10 गुना अधिक वेतन पाता है. सबसे अधिक वेतन पाने वाले सरकारी आदमी की बात ही छोड़ दी जाए. भारत में एक बेहद घटिया परंपरा है कि लोग सरकारी तंत्र के लोगों का वेतन देखते हैं, उनको मिलने वाली सुविधाओं को वेतन में नहीं जोड़ा जाता है. यह भी एक बेहद घटिया कुचक्र है.
आस्ट्रेलिया के लोगों की औसत मासिक आय लगभग 400,000 (चार लाख) रुपए महीना है. सरकारी तंत्र का एक बड़ा तबका इस औसत मासिक आय से बहुत कम वेतन पाता है. आस्ट्रेलिया के सबसे ताकतवर नौकरशाह का वेतन भी लोगों की औसत मासिक आय का 10 गुना भी नहीं है.
कमोवेश यही स्थिति दुनिया के सभी विकसित देशों की है. यही कारण है कि विकसित देश, विकसित हैं. आम लोगों का जीवन बहुत-बहुत बेहतर है. सरकारी तंत्र आम लोगों को जानवर नहीं समझ पाता, अलोकतांत्रिक व अय्याश नहीं हो पाता. भ्रष्टाचार में बेशर्मी व धूर्तता के साथ लिप्त नहीं होा पाता.
ऐसा सरकारी तंत्र को अनाप शनाप वेतन, अनाप शनाप सुविधाएं व सामंती अधिकार क्यों, जब वे आम लोगों का जीवन बेहतर बना पाने में पूरी तरह से असफल हैं, गैर-जवाबदेह हैं, क्रूर हैं, बेशर्म हैं ? जबकि सरकारी तंत्र का काम ही है आम लोगों का जीवन बेहतर बनाना.
भारत में सरकारी तंत्र के लोगों व आम आदमी में इतना अधिक अंतर है कि आम आदमी की स्थिति एक निरीह व लिजलिजे कीड़े से इतर कुछ भी नहीं या तो वह भी भ्रष्टाचार के नेक्सस का हिस्सा बने या अपना जीवन पीढ़ी दर पीढ़ी लिजलिजे कीड़े की तरह घिसटता हुआ गुजारे. यही अंतर सरकारी तंत्र को भ्रष्ट, गैरजवाबदेह, बेशर्म, धूर्त, क्रूर व हिंसक बनाता है.
भारत का सरकारी तंत्र अपने आपमें दुनिया का सबसे धूर्त, पाखंडी व क्रूर मैनीपुलेटर संस्थान है.
मेरी बात से हर वह व्यक्ति असहमत होगा जो या तो सरकारी वेतन पाता है या मन में सरकारी वेतन पाने की चाहत रखता है या सरकारी वेतन पाने वालों पर निर्भर है.
मैं ऐसे लोगों से सूक्ष्म सामाजिक ईमानदारी व संवेदनशीलता की अपेक्षा करता भी नहीं हूं.
(अपवाद लोग हमेशा होते हैं, अपवाद लोगों से समाज व देश के नियम व चरित्र नहीं बदला करते हैं). यहां मैं असल अपवादों की बात कर रहा हूँ, जो अपवाद होने का जीवंत अभिनय के साथ ढोंग रचते हैं, उनकी बात बिलकुल भी नहीं कर रहा हूं.
- सामाजिक यायावर
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