पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
भारत में आज जिन्हें मुस्लिम कहा जाता है, वे लगभग 7वीं सदी से 16वीं सदी के मध्य बने. ये वर्णों और धर्मों का कन्वर्जन कई कारणों से हुआ, जिसमें बदलती वर्ण व्यवस्था भी एक मुख्य कारण था (7वीं सदी से पहले कर्मानुसार वर्ण तय होते थे लेकिन 9वीं सदी में शंकराचार्य प्रथम (जिसे आदि शंकराचार्य भी कहा जाता है) ने उस समय बल और छल के आधार पर वर्ण व्यवस्था को जन्मगत कर दिया, जिससे वर्ण व्यवस्था पूरी तरह बदल गयी. अर्थात ब्राह्मण के घर पैदा हुआ बच्चा ब्राह्मण और शूद्र के घर पैदा हुआ बच्चा शूद्र हो गया. ये वही समय था जब भारत पर तुर्कोंं और मंगोलों के आक्रमण लगातार हो रहे थे.
9वीं सदी तक तो लाखों लोगों ने (ब्राह्मणों और क्षत्रियों) ने सत्ता और प्रशासन में अपनी प्रमुखता पाने के लिये धर्म परिवर्तन किया. इसीलिये वे आज भी अपनी ही जाति का प्रयोग करते हैं और अपनी बहन-बेटियों की शादियां भी अपने समान गौत्र वर्ण वालों में करते हैं. उदाहरणार्थ फ़ैजाबाद के अंसारी, कश्मीर के अंसारी, लखनऊ के खत्री इत्यादि. इसी तरह के मामले खां, पठान और शेख लिखने वालों के भी है. ऐसा ही एक समुदाय इटावा में आज भी है जिसे मेवातियों का टोला कहा जाता है. उन्होंने इस्लाम में धर्म परिवर्तन तो किया, मगर अपनी एक-एक प्रथा और रंग-ढंग के साथ. आज भी वे अपनी समस्त प्रथाओं का पालन करते हैं और इनके घरों की शादियांं देखकर कोई अनजान ये नहीं कह सकता कि ये मुस्लिम हैं. उन्होंने आज भी अपनी ही मूल व्यवस्था को बना रखा है. मेवाती टोले की तरह ही राजस्थान में भी बहुत से कन्वर्टेड मुस्लिम आज भी मूर्ति पूजा तक करते हैं.
असल में कन्वर्टेड मुसलमानों ने जब अपना धर्म परिवर्तन किया था तो अपनी-अपनी जाति व्यवस्था के आधार पर ही किया था क्योंकि उन्होंने अपना कन्वर्जन किसी के प्रभाव या दबाव में नहीं बल्कि अपनी सत्ता बनाये रखने के लिये या लालच में किया था. ऐसे ही बहुत से वैश्य (बनिया समुदाय) भी लालच में आकर मुस्लिम बने थे. उदाहरणार्थ- आज के गुजरात के सौराष्ट्र में जिला राजकोट के गांव पानेली का ‘लोहाणा परिवार’ जिसने इस्लाम में कन्वर्जन राजनीति में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिये किया. और उस परिवार के पोते (मोहम्मद अली जिन्ना) को आज पाकिस्तान में क़ायदे-आजम की पदवी प्राप्त है.
इसे और स्पष्टता से समझने लिये आपको संयुक्त भारत (अखंड भारत नहीं) अर्थात आज के भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश इन तीनों देशों के मुसलमानों की जातिगत व्यवस्था को समझना होगा. इन तीनों ही देशों में तीन-तीन तरह के मुसलमान होते हैं, यथा –
1. मूल वंश : ये असल में तुर्क-मंगोल और अरबी थे, जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया और लुटा. उनमें से ज्यादातर वापस लौट गये लेकिन बहुत से यहीं बस गये (बसने का मूल कारण सिर्फ और सिर्फ संयुक्त भारत की आबोहवा थी. यहांं का मौसम भी अनुकूल था और पानी इत्यादि की सुलभता भी और सरलता से जीवनयापन होगा, जानकर वे यहांं बसे थे).
2. मूल वंश से उत्पन्न फ्यूजन वंश : इसमें दो तरह से मिश्रण तैयार हुआ. एक तो वे लुटेरे जिन्होंने स्त्रियों के संग जबरन संबंध बनाये और उनसे उत्पन्न सन्तानों से फ्यूजन वंश तैयार हुआ. और दूसरे वो जो यहीं बस गये थे, उन्होंने यहांं का लिबरल कल्चर अपना लिया और उनसे उत्पन्न सन्तानों से भी एक नया फ्यूजन वंश तैयार हुआ.
3. कन्वर्टेड : कन्वर्टेड मुस्लिमों में मुख्यतः चार तरह के लोग थे, यथा- अशराफ, अजलाफ, अरजाल और पसमांदा अर्थात हिन्दू वर्ण व्यवस्था धर्म परिवर्तन होने के बाद भी वैसी की वैसी रही और हिन्दुओं के चार वर्ण मॉडीफायड होकर अशराफ, अजलाफ, अरजाल और पसमांदा के रूप में परिवर्तित हो गयी.
a) अशराफ : अशराफ मुसलमानों में वो लोग शामिल हैं, जो अपने आपको मूल वंश या मूल वंश के प्रथम फ्यूजन वंश का वंशज मानते हैं. यानी खुद को भारत के बाहर की नस्लों जैसे अफगान, अरब, पर्शियन या तुर्क मानने वाले लोग तथा इनमें वे लोग भी शामिल हैं, जो संयुक्त भारत में ऊंंची जातियों से स्वेच्छा से कन्वर्ट हुए, जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय (मुस्लिमों राजपूत) और वैश्य. ये वो लोग थे जो संयुक्त भारत में उच्च जाति गोत्र के (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य) कहलाते थे, जिनके बारे में मैंने उपरोक्त में लिखा है अर्थात सुन्दर, गोर वर्ण वाले, पढ़े-लिखे, सुसंस्कृत, चरित्रवान और भले अर्थात आम बोलचाल की भाषा में उन्हें गुड-लुकिंग और रईस टाइप का कहा जा सकता है, वे कन्वर्जन के बाद अशराफ मुस्लिम कहलाये. हालांंकि इनमें भी पांच मुख्य उपभेद है, यथा –
अ) सादात या सैय्यद : सैय्यद का उर्दू में शाब्दिक अर्थ होता है सरदार और अरबी में इसका अर्थ है श्री / मिस्टर /जनाब इत्यादि. कहा जाता है ये मूल रूप से विदेशी है अर्थात इनका कन्वर्जन संयुक्त भारत की वर्ण व्यवस्था से संबंधित नहीं है बल्कि वे अरब से आकर यहांं बसे. इस्लाम के प्रारम्भ काल में ही इनका कन्वर्जन हुआ अर्थात ये वो लोग है जिन्हे मुहम्मद की बेटी फातमा के खानदान का माना जाता है.
जिस तरह हिन्दुओं में ब्राह्मण अपने आपको सबसे श्रेष्ठ समझते हैं, उसी प्रकार मुस्लिमोंं में सैय्यद अपने आपको सबसे ज्यादा पवित्र और उच्च श्रेणी के और पूजनीय बतलाते है. हालांंकि सबसे ज्यादा घपला इसी सैय्यदों में है क्योंकि जहांं भारत आदि देशों में अपने नाम के आगे सैय्यद लगाना पवित्र माना जाता है, वहीं अरबी में इस शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है क्योंकि वहां इसका अर्थ पवित्र होना या मुहम्मद के खानदान से ताल्लुक रखना नहीं बल्कि श्री / जनाब आदि के रूप में होता है.
अर्थात जिस तरह हम महाशय / महोदय / श्रीमान इत्यादि शब्दों का प्रयोग करते हैं, वैसे ही अरब में सैय्यद शब्द प्रयुक्त होता है. इसलिये जो लोग भारत / पाकिस्तान /बांग्लादेश इत्यादि देशों में सैय्यद शब्द का प्रयोग अपने नाम के आगे लगाकर अपने आपको उच्च और पवित्र दर्शाने के लिये करते हैं, वही लोग जब अरब में जाते हैं तो सैय्यद शब्द का प्रयोग नहीं करते.
आ) शेख : जो ख़ुद को मुहम्मद के क़बीले ‘क़ुरैश’ से संबंधित बताते हैं, इनमें सिद्दीक़ी, फारुख़ी और अब्बास इत्यादि कुलनाम का नाम इस्तेमाल करने वाले लोग हैं.
इ) मुग़ल : जो बाबर के नेतृत्व में भारत आये थे, उनका अरब या कुरेशियों से कोई संबंध नहीं था, लेकिन धर्मान्नवतरण के बाद इन्होंने इस्लाम स्वीकार किया था। और इस्लाम स्वीकार करने से पहले (और बाद में भी) तुर्क या मंगोल कहलाते थे लेकिन अब मुसलमानो में गिने जाते हैं.
ई) पठान : ये वो लोग हैं जो मूल रूप से आज के पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के पख़्तूनखा इलाक़े के थे और पश्तो बोलते थे.
उ) कन्वर्टेड इंडियन : भारतीय मूल के ब्राह्मण, राजपूत, क्षत्रिय इत्यादि और कुछ-कुछ वैश्य वर्ण वाले भी.
b) अजलाफ : संयुक्त भारत में निम्न जाति गोत्र वाले, काले वर्ण वाले, बदसूरत, अशिक्षित, हिंसक, चरित्रहीन, और क्रूर, निर्दय अर्थात आम बोलचाल की भाषा में जिन्हें ‘म्लेच्छ’ कहा गया, वे कन्वर्जन के बाद अजलाफ कहलाये. अगर इस्लामिक या उर्दू के शब्दार्थ में देखा जाये तो इसका शाब्दिक अर्थ होता है – कमीना और घटिया (ये सब शूद्र वर्ण के थे और कन्वर्जन के बाद भी शूद्र ही रहे). अर्थात भारतीय शूद्र-वर्ण-जातियों से कन्वर्टेड जैसे- दर्जी, धोबी, धुनिया, गद्दी, फाकिर, हज्जाम (नाई), जुलाहा, कबाड़िया, कुम्हार, कंजरा, मिरासी, मनिहार, तेली इत्यादि.
c) अरजाल : ये शुद्रों में भी निम्न अर्थात दलित वर्ग वाले भारतीय मूल के कन्वर्टेड लोग. जैसे – हलालखोर, भंगी, हसनती, लाल बेगी, मेहतर, नट, गधेरी इत्यादि.
d) पसमांदा : ये वो लोग है जिन्हें मुस्लिम अछूत माना जाता है (ये पहले भी हिन्दू धर्म में अछूत ही कहलाते थे और जिस चीज़ से बचने के लिये इन्होने धर्म बदला वो कन्वर्जन के बाद भी यथावत ही रहा). संयुक्त भारत के मुसलमानों में सर्वाधिक जनसंख्या पसमांदा मुसलमानों की ही है, जो कि कुल मुस्लिम आबादी (भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश तीनों में) का लगभग 80% है.
असल में जाति व्यवस्था वो है जो कभी भी किसी भी धर्म में जाती नहीं. जिस चीज़ से बचने के लिये लोगों ने सामूहिक धर्म परिवर्तन किया, आज भी यथावत है. अर्थात जो पहले हिन्दू अछूत था, वो आज मुस्लिम अछूत है. जो पहले हिन्दू दलित था, वो आज मुस्लिम दलित है. जो पहले हिन्दू या जैन क्षत्रिय और वैश्य वर्ण में थे, वे भी यथावत ही है. हांं, पहले जो हिन्दू ब्राह्मण, ब्राह्मणों में हीन समझे जाते थे, वे आज मुसलमानों में ठेकेदार बन चुके हैं. अर्थात धर्म बदलने के बाद भी जाति व्यवस्था से छुटकारा नहीं मिला लेकिन प्रचारित ये किया जाता है कि मुसलमान सिर्फ मुसलमान होता है. वे अंसारी, कुरैशी, सैफी, मंसूरी, शक्का, सलमानी, उस्मानी, घोषी गद्दी इत्यादि फिरको में बंटे हैं और अशराफ मुस्लिम (धर्म परिवर्तन से पूर्व ब्राह्मण) आज भी बाकी तीनों के ठेकेदार माने जाते हैं).
एक और खास बात- आपमें से कुछ चुनिंदा लोग शायद ये जानते होंगे कि ज्यादातर जिहादी या आंतकवादी अजलाफ मुसलमान होते हैं. और इन्हें बरगलाने और जिहाद के नाम पर मरने-मारने के लिये तैयार करने वाले लोग अशराफ होते हैं. अर्थात ठीक हिन्दुओं की तरह ही इनका प्रयोग होता है. यानी एक तरफ जहां धर्म परिवर्तन होने के बाद भी वर्ण और जाति-व्यवस्था यथावत रही, वहीं उनके कर्म भी यथावत रहे. जैसे हिन्दू शूद्र ब्राह्मण का दास कहलाता है, वैसे ही शूद्र मुस्लिम भी उच्च वर्ण वाले मुस्लिमों की दासता ही करता रहा है. ठीक हिन्दू ब्राह्मणों की तरह ही उच्च वर्ण वाले मुस्लिम इन्हें अपने मनमाने तरीके से उपयोग करते रहे हैं. इसीलिये ही इस्लाम में फतवों का चलन है और हर अजलाफ को ये समझाया जाता है कि फतवा अल्लाह के आदेश की तरह है, जिसे किसी भी हालत में स्वीकार करना होगा और उससे किसी भी तरीके से किनारा नहीं किया जा सकता. और अजलाफ बगावत न करे और अशराफों की मनमानी चुपचाप सहते रहे, इसलिये अजलाफों को शिक्षा से दूर रखा जाता है (जैसे हिन्दू ब्राह्मण शुद्रों को शिक्षा से दूर रखते थे). हालांंकि अब हालात (कम से कम भारत में तो) बदल रहे हैं और हिन्दू शूद्र और मुस्लिम अजलाफ भी शिक्षित हो रहे हैं. जैसे-जैसे वे शिक्षित हो रहे हैं, वैसे-वैसे वे धर्म के इस गोरखधंधे को समझते जा रहे हैं और जाति व्यवस्था को दरकिनार कर इसके विरोध में स्वर बुलंद कर रहे हैं. मगर अशराफों और ब्राह्मणो का गोरखधंधा चलता रहे इसलिये धार्मिक उन्माद पैदा किया जाता है, ताकि लोग अंध-धार्मिकता और पाखंडों में उलझा रहे और ब्राह्मणों और अशराफों की ठेकेदारी कायम रहे.
(ये बहुत विस्तार वाला विषय है और इसका पूरा विस्तार नहीं लिखा जा सकता. अतः ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिये जाति / गोत्रों के मूल इतिहास वाली पुस्तकों को खंगालिये, आपको सारा का सारा मामला समझ में आ जायेगा. इसके लिये आप ग़ौस अंसारी द्वारा 1960 में लिखित ‘मुस्लिम सोशल डिवीजन इन इंडिया’ नाम की पुस्तक पढ़ सकते हैं. इसके अलावा इम्तियाज़ अहमद की 1978 में लिखित ‘कास्ट एंड सोशल स्टार्टिफिकेशन अमंग द मुस्लिम्स’ भी बहुत अच्छी पुस्तक है, जिसमें मुसलमानों की जाति व्यवस्था का विस्तार से वर्णन है तथा साथ में ये भी बताया गया है कि कैसे इस्लाम क़ुबूल करने के बावजूद हिंदू जातीय संरचना ज्यों-की-त्यों बनी रही).
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