Home गेस्ट ब्लॉग भारत की आर्थिक राजनैतिक व्यवस्था

भारत की आर्थिक राजनैतिक व्यवस्था

8 second read
0
0
442

सन 1947 से पहले भारत ब्रिटिश साम्राज्यवाद का गुलाम था. भारत की मेहनतकश जनता 1757 से प्लासी युद्ध से लेकर सन 1947 तक अंग्रेजों के खिलाफ लड़ती रही. (प्रकारान्तर से आज भी लड़ रही है). आजादी की लड़ाई भगत सिंह जैसे लोग ही लड़ रहे थे परंतु जनता का नेतृत्व भगतसिंह जैसे क्रांतिकारियों के हाथ में नहीं आ सका. बहुसंख्यक जनता गांधी जी के भ्रम जाल में फंसकर गांधी के पीछे खड़ी थी.

भारत की जनता आजादी की लड़ाई उसी समय हार गई थी, जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज हार गई थी. इसके बाद सन् 1947 में आर-पार के संघर्ष से नहीं, बल्कि समझौते के तहत अपने वफादारों को सत्ता सौंप कर अंग्रेज चले गए. इस समझौते के तहत देश का बंटवारा हुआ. इस बंटवारे को आजादी कहा जाता है और देश बांटने वालों को देशभक्त कहा जाता है. भारत दुनिया का पहला ऐसा देश है जहां देश बांटने वालों को देशभक्त कहा जाता है और देश के लिए मर मिटने वाले क्रांतिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है. इस प्रकार भारत के तत्कालिक तौर पर भगत सिंह की ‘समाजवादी विचारधारा’ की हार हुई, जिसके परिणामस्वरूप हमारा देश भारत, वर्मा, पाकिस्तान और बांग्लादेश नाम के 4 देशों में बट गया.

अंग्रेज ऐसे गयें कि आज तक वे भारत में बने हुए हैं. उनके सारे हित आज भी सुरक्षित है. जिसने तमाम क्रांतिकारियों का वध किया, लाखों माताओं-बहनों को विधवा बनाया, लाखों बच्चों को अनाथ बनाया, जिसने जलियांवाला बाग से लेकर हजारों नरसंहार किया, जिसने भगत सिंह को फांसी पर चढ़ाया, वहीं सेना, वही पुलिस, वही कानून, वहीं जेल, वहीं अदालत, वही नौकरशाही आज तक जारी है.

भारत में वित्तीय पूंजी के निर्णायक हिस्से का मालिक ‘साम्राज्यवाद’ बना हुआ है, बाजार के निर्णायक हिस्से का मालिक, ‘दलाल पूंजीपति’ बना हुआ है तथा जमीन के निर्णायक हिस्से का मालिक, सामंत वर्ग बना हुआ है. गांधी और उनके चेलों ने अंग्रेजों की मदद करने वाले देशद्रोहियों, चाटुकार राजाओं, नाबाबों, जमीदारों, सूदखोरों, गुंडों, चकलाघर चलाने वालों के कब्जे की जमीन पर उनका आधिपत्य बनाए रखा तथा जमीन का जो हिस्सा उन सामंतों से मुक्त हुआ उसके बदले प्रिवी पर्स ( PRIVY PURSE) के रूप में भारी रकम देकर उन्हें और मजबूत बनाया. उन्हें सांसद, विधायक, मंत्री आदि पद देकर सम्मानित किया. आज भी तमाम सामंती गुंडों को बाहुबली के रूप में मठों, जेलों या संसद व विधानसभाओं में पाला जा रहा है जबकि भूमिहीन व गरीब किसान दर-दर की ठोकरें खा रहा है. मध्यम व धनी किसान घाटे की खेती करने के लिए मजबूर है.

भारत में गांधी के चेलों द्वारा अमेरिकी साम्राज्यवाद के नेतृत्व में पूंजीवाद को स्थापित किया गया, अर्थात पूंजीवादी ढंग से उत्पादन शुरू किया गया तथा सामंती उत्पादन पद्धति को भी एक हद तक बनाए रखा गया.

भारत के विकास की नीति (जिसे बॉम्बे प्लान भी कहते हैं ), घनश्याम दास बिड़ला, जे.आर.डी. टाटा, जैसे 8 दलाल पूंजीपतियों ने मिल कर बनाई. भारत में जोतने वालों को जमीन नहीं मिल पाने से यहां के किसानों की क्रय शक्ति क्षीण होती गई, जिससे बाजार नहीं बढ़ पा रहा था. तब बार-बार कर्जा लेकर बाजार का विस्तार किया गया, जिससे थोड़े से लोगों की क्रय शक्ति बढ़ गई, जिससे थोड़ा सा बाजार बढ़ पायी. इस कारण बार-बार मंदी आती रही जिससे बाजार की मांग घटती गई और कारखाने बंद होते गए. विदेशी कंपनियां जड़ जमाती गई. हमारे राष्ट्रीय उद्योग तबाह होते गए और बेरोजगारी बढ़ती गई.

भारत पर प्रति व्यक्ति ₹55,000 से अधिक विदेशी कर्ज लदा हुआ है. भारत की अर्थव्यवस्था कर्ज पर टिकी हुई है. यह किसी भी वक्त दिवालिया हो सकती है. इसी नीति पर चलते हुए ग्रीस दिवालिया हो चुका है. भारत के पुरोहित भारत को विश्व गुरु कहा करते थे. ठीक उसी समय भारत में छुआ-छूत, ऊंच-नीच, सती प्रथा जैसी अनेकों कूप्रथाएं चरम सीमा पर थी.

सन 1947 तक भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की 10 वे नंबर की बड़ी अर्थव्यवस्था थी. उस वक्त सिर्फ नौ देश भारत से आगे थे. भारत पर एक पैसा कर्ज नहीं था बल्कि इंग्लैंड ने भारत से कर्ज लिया था. तब भारत की अर्थव्यवस्था चीन से बहुत आगे थी. आज (सन 2019 तक) भारत 20 विकासशील देशों में बड़ी मुश्किल से जगह बना बना पाया है, जबकि सन 1947 से ही सुना जा रहा है कि भारत दुनिया की तीसरी महाशक्ति बनने ही वाला है.

भारत में सभी बड़े उद्योग व बुनियादी उद्योग विदेशी साम्राज्यवादियों बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अधीन है तथा उन्हीं पर निर्भर है. उन पर राजसत्ता का कोई नियंत्रण नहीं है बल्कि राजसत्ता खुद उन्हीं बहुराष्ट्रीय कंपनियों एवं उनके दलालों के नियंत्रण में है. कुछ जो सार्वजनिक उद्योग है भी उनमें अधिकांश बंद हो चुके हैं या बंद होने के कगार पर है. इन सार्वजनिक उद्योगों पर भी बड़े पूंजीपतियों का ही प्रत्यक्ष या परोक्ष नियंत्रण है. भारत में औद्योगिक उत्पादन इतना कम हो पा रहा है कि उससे भारत की चौथाई जरूरतें भी पूरी नहीं हो पा रही है. भारत में बड़े पूंजीपति और साम्राज्यवादी ताकते बेलगाम है. इसी का फायदा उठाकर भारत के 63 हजार से ज्यादा अरबपति भारत छोड़कर विदेशों में जा बसे हैं और अपने साथ अपने पूंजी भी लेकर चले गए हैं.

हमारे देश में भारी आरोही अथवा क्रमवर्धी (बढ़ते क्रम में ) आयकर के लिए कानून बना है परंतु कानून में कई सुराख है. फलस्वरुप सारा टैक्स जनता से तो कड़ाई के साथ माल के मूल्य के साथ ही वसूल लिया जाता है. परंतु पूंजीपति वर्ग एन.जी.ओ. ट्रस्ट, चैरिटी आदि के जरिए तथा अन्य अवैध तरीकों से टैक्स की चोरी करता है. इसके खिलाफ कई सख्त कानून होने के बावजूद भी आज तक एक भी पूंजीपति को कोई कड़ी सजा नहीं मिली क्योंकि कानून के मालिक भी वही पूंजीपति है.

भारत में आयात का बड़ा हिस्सा निजी मालिकाने में है. हवाई जहाज, रेलवे, रोडवेज, समुंद्री जहाज, बंदरगाह आदि का 50 से 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सा निजी मालिकों के हाथ में है. सरकार का नियंत्रण नाम मात्र का है. भारत में सूचना एवं संचार तंत्र (पत्र, पत्रिकाएं, अखबार, टेलीविजन, टेलीफोन, मोबाइल, इंटरनेट आदि) सब कुछ निजी मालिकों के नियंत्रण में है. इसके जरिए जनता के बीच अंधविश्वास का प्रचार करके पूंजीपति वर्ग भारी मुनाफा कमाता है.

राजकीय (सरकारी ) कारखानों, बैंकों, खजानों आदि में अप्रत्यक्ष तौर पर निजी मालिकों का ही प्रभुत्व है क्योंकि पूरी राजसत्ता इन्हीं के हाथ में है. भारत में काम ना करने की पुरानी संस्कृति विकसित होती जा रही है. यहां काम करने वालों को आज भी नीच, कमीना, शुद्र, अतिशूद्व, हकीर, रजील आदि कह कर अपमानित किया जाता है तथा काम न करने वालों को उच्च, अशराफ, संत, महंत, मालिक, पीर, दाता आदि कहकर सम्मान दिया जाता है.

भारत में गरीब एवं मध्यम परिवार के बूढ़े, बच्चे, विकलांग और गर्भवती औरतों तक को अपनी आजीविका के लिए काम करना पड़ता है. बाल श्रम लगातार बढ़ता जा रहा है. भारत में निजी संपत्ति का दायरा बढ़ता जा रहा है निजी संपत्ति सार्वजनिक संपत्ति को निकलती जा रही है. विरासत के अधिकारों को पूर्ववत ही नहीं बल्कि और अधिक सख्ती के साथ लागू किया जा रहा है. भारत में कृषि को चौपट करने के लिए सुनियोजित साजिश जारी है.

भारत में दोहरी शिक्षा प्रणाली के द्वारा बच्चों के साथ भेदभाव जारी है. शिक्षा व्यवस्था बाजार के हवाले हो चुकी है. गरीबों के बच्चे आधुनिक वैज्ञानिक शिक्षा से कोसों दूर हैं. उन्हें धार्मिक अंधविश्वास वाली शिक्षा दी जा रही है. भारत में जो पढ़े-लिखे हैं वह काम नहीं करते, सिर्फ हुकुम देते हैं तथा काम भी करते हैं जो पढ़े ही नहीं होते या बहुत कम पढ़े होते हैं. इस प्रकार मानसिक श्रम को शारीरिक श्रम से अलग कर दिया गया है. भारत में शहरों का थोड़ा विकास तो किया जा रहा है परंतु देहातों की अनदेखी हो रही है. और जो विकास हो भी रहा है उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है.

भारत में 81% आस्तिक हैं. भारत में औसतन उम्र 55 से 60 वर्ष है. भारत का औद्योगिककरण छोटे पैमाने का पूंजीवादी ढर्रे वाला है. भारत के अधिकांश कारखाने बंद होते जा रहे हैं , जो चल भी रहे हैं उनकी हालत बहुत खराब है. भारत का भारत का शासक वर्ग महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, कर्ज, युद्ध, दिवालियापन बढ़ाता जा रहा है. पूंजीपतियों की सरकार इस पर कोई नियंत्रण नहीं कर पा रही है.

भारत का क्षेत्रफल 3287263 वर्ग किमी, जनसंख्या 1326801576, विदेशी मुद्रा भंडार लगभग तीन सौ सत्तर (2016) अरब डालर, रेल नेटवर्क में 64600 किलोमीटर (2012). रोड नेटवर्क 4690342 किमी. दुनिया के 10 सबसे बड़े बैंकों में भारत का एक भी बैंक नहीं है. ये है हमारे आजाद भारत की आर्थिक राजनैतिक व्यवस्था.

  • प्रमोद चौरसिया

Read Also –

भारत की दुरावस्था, सरकार का झूठ और भारतीय जनता
भारत के अर्थव्यवस्था की सच्ची तस्वीर
आजाद भारत में कामगारों के विरुद्ध ऐसी कोई सरकार नहीं आई थी
भारतीय अर्थव्यवस्था पर दो बातें मेरी भी
क्रूर शासकीय हिंसा और बर्बरता पर माओवादियों का सवाल
हिंदू राष्ट्रवाद का खौफ़नाक मंजर : अरुंधति की किताब ‘आज़ादी’ से 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

चूहा और चूहादानी

एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था. एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी…