सवाल है कि क्या 13 दिसम्बर, 2023 का 8 अप्रैल 1929 से सम्बन्ध है ? जवाब है – बिल्कुल है. 8 अप्रैल 1929 वह तारीख थी जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेंबली में बम फेंक कर और अपनी गिरफ्तारी देकर देश सहित ब्रिटेन में हलचल मचा दी थी. तो वही 13 दिसम्बर, 2023 वह तारीख है, जब 4 युवाओं ने फासीवादी मोदी के आतंकवादी मिजाज और बहरे कानों में धुआं भर दिया और बिल्कुल बिना भागे, बिना डरे अपनी गिरफ्तारी दी और देश भर में.हलचल मचा दी.
फासीवादी मोदी की फासीवादी पुलिस ने जिन चार युवाओं को हिरासत में लिया है उनके नाम – सागर, मनोरंजन, नीलम और अमोल शिंदे हैं. अपनी गिरफ्तारी के साथ ही इन्होंने जो नारे लगाये वह इस देश के जनता की आवाज है. यह ठीक वही आवाज है जिसे 8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह ने लगाया था. हां, भगत सिंह ने बम के साथ पर्चे भी फेंके थे, लगता है इन युवाओं को पर्चे फेंकने का वक्त नहीं मिल पाया, या मोदी की फासीवादी पुलिस और गोदी मीडिया ने उस पर्चे को गायब कर दिया.
कहना होगा कि इन चारों युवाओं ने काफी सोच समझकर और पूरी बारीकियों को ख्याल में रखते हुए अपनी कार्रवाई को अंजाम दिया है. मसलन, उन्होंने संसद पहुंचने के लिए उसी फासीवादी मोदी के एक सांसद का इस्तेमाल किया. उन्होंने बहुसंख्यक समुदाय के प्रतिनिधियों का चयन किया. उन्होंने पुरुष साथी के साथ-साथ एक महिला साथी का भी चयन किया. इन्होंने पूरी ताकत से अपनी आवाज को उठाया और समूचे देश में उसकी अनुगूंज पहुंच गई.
भगत सिंह और उनके साथियों ने तब बम फेंके थे जब अंग्रेजों ने दिल्ली स्थित सेंट्रल असेंबली में ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ पास करवा चुकी थी और ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’ पर चर्चा हो रही थी. ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’ के तहत मजदूरों द्वारा की जाने वाली हर तरह की हड़ताल पर पाबंदी लगाने का प्रावधान था तो ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ पर अध्यक्ष विट्ठलभाई पटेल का फैसला आना बाकी था, जिसमें सरकार को संदिग्धों पर बिना मुकदमा चलाए ही उन्हें गिरफ्तार करने का हक मिल रहा था. आज भी जब इन चारों युवाओं ने मोदी संसद को धुंआ से भर दिया तब भी लगभग ऐसे ही सवाल इन युवाओं के माध्यम से सामने आ रहे थे. पुलिस की गिरफ्तारी के बाद एक महिला ने कहा –
‘मेरा नाम नीलम है और हम इस देश के आम नागरिक हैं. हमारी जो भारत सरकार है…जो हम पर ये अत्याचार हो रहे हैं. हम अपने हकों की जो बात करते हैं, तो लाठीचार्ज करके हमको अंदर डाला जाता है. टॉर्चर किया जाता है, तो हमारे पास कोई माध्यम नहीं था. हम किसी संगठन से नहीं हैं. हम स्टूडेंट हैं…हम बेरोजगार हैं. हमारे माता-पिता इतना काम करते हैं. मजदूर-किसान, छोटे व्यापारी, दुकानदार…लेकिन किसी की बात नहीं सुनी जाती. ये हर जगह हमारी आवाज़ को दबाने की कोशिश करते हैं. ये तानाशाही नहीं चलेगी. तानाशाही बंद करो. भारत माता की जय !’
नीलम की उम्र 29-30 साल बताई जा रही है. एक गोदी मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक नीलम मूल रूप से हरियाणा के जींद की रहने वाली हैं. वो हिसार के एक पीजी में रहकर हरियाणा सिविल सर्विस की तैयारी कर रही थीं. रिपोर्ट के मुताबिक 25 नवंबर को नीलम पीजी से ये कहकर गईं थीं कि वो घर जा रही हैं. उनके माता-पिता जींद में मिठाई की दुकान चलाते हैं. वही अन्य युवा भी काफी पढ़े-लिखे बताये जा रहे हैं.
यही वक्त है भगत सिंह को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए इन चारों देशभक्त युवाओं को अविलंब इस अवैध गिरफ्तारी से मुक्त किया जाये और उन पर हमला करने वाले फासीवादी सांसदों और देश को इन दुर्दशा में धकेलने के जिम्मेदार संघ परिवार को प्रतिबंधित करते हुए फासीवादी भांड नरेन्द्र मोदी को सत्ताच्युत कर गिरफ्तार किया जाये और उसे फांसी के तख्ते पर लटकाया जाये वरना देश की जनता आने वाले दिनों में इन लुटेरों को पीटपीटकर मार डालेगी.
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