अमेरिकी साम्राज्यवाद के इशारे पर नाचता पश्चिमी मीडिया का मुख्य कार्य प्रोपेगैंडा फैलाना है, जिससे विरोधियों पर हल्लाबोल कर ही उसे ध्वस्त किया जा सके. इसी से भारत की मुख्यधारा की मीडिया ने भी सीखा और गोदी मीडिया बनकर नाम कमाया. इसके दुश्प्रचार का इतना घिनौना स्वरूप है कि घृणा से मन बिफर जाये और आदमी औंधे मूंह गिर पड़े.
पश्चिमी मीडिया के इस भयानक दुश्प्रचार का मुख्य हमला देश-दुनिया के उन तमाम क्रांतिकारी मेहनतकश आम जनता के खिलाफ होता है, जो अमेरिकी साम्राज्यवाद और उसके गिरोह के खिलाफ उठ खड़ा होता है. 1917 में जब दुनिया में पहला समाजवादी देश का उदय हुआ तब इस दुश्प्रचार ने प्रोपेगैंडा का संगठित रुप ग्रहण किया और सोवियत संघ समेत दुनिया के मतात क्रांतिकारी जनता के खिलाफ संगठित हमला बोल दिया.
पश्चिमी मीडिया के इस संगठित प्रोपेगैंडा का भयावह अनुभव भारत के महान क्रांतिकारी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी को हुआ जब उन्होंने यह सुना कि 1919 के अगस्त माह में महान साहित्यकार मैक्सिम गोर्की को बोल्शेविकों ने गोलियों से भून कर हत्या कर दी. दिल से इस खबर से स्वीकार न करते हुए भी विद्यार्थी ने अपने क्रांतिकारी मुखपत्र प्रताप में गोर्की को बकायदा श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए एक लेख तक छाप दिये. यह अलग बात है कि मैक्सिम गोर्की की मृत्यु खुद विद्यार्थी जी के मृत्यु (1931) के बहुत बाद में हुआ.
पश्चिमी मीडिया सारी दुनिया में अमेरिकी दादागीरी के समर्थन में दुश्प्रचार का प्रोपेगैंडा चलाती है. क्या सोवियत संघ, क्या चीन, क्या वियतनाम, क्या अफगानिस्तान. इसने तो प्रोपेगैंडा फैला कर इराक जैसे स्वभिमानी राष्ट्र को खंडहर बना दिया और उसके योग्य राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को मौत के घाट उतार दिया. अब ऐसा ही कुछ नजारा यूक्रेन में रुसी हमले के दौरान हो रहा है, जिससे कि अच्छे-अच्छों की बुद्धि चौंधिया जा रही है.
अमेरिकी दादागिरी के खिलाफ यूकेन पर रुसी हमलों ने अमेरिकी साम्राज्यवाद को बौखला दिया है. वह न तो रुसी सैनिकों से सीधे टकराव की स्थिति में जा सकता है और न ही पीछे हट सकता है. एक ओर वह यूकेनी फासिस्ट जेलेंस्की को अन्दरूनी तौर पर मदद कर रहा है, वही रुसी सैनिकों के खिलाफ अनर्गल प्रलाप बक रहा है, जिसका तथ्य से कोई संबंध नहीं है.
मसलन, रुसी राष्ट्रपति पुतिन हिरण के खून से नहाते हैं, रुसी सैनिक यूकेनी महिलाओं को मोबाइल पर अश्लील मैसेज भेजते हैं. तर्कबुद्धि से तनिक भी वास्ता रखने वाला साधारण मनुष्य भी यह समझ जायेगा कि यह झूठा प्रचार है. कोई भी व्यक्ति भला हिरन के खून से क्यों नहायेगा, या जो रुसी सैनिक यूकेन मे युद्ध करने आया है वह युद्ध करेगा या मोबाइल से मैसेज करेगा यूकेनी महिला को ? और फिर आखिर उस यूकेनी महिला का मोबाइल नम्बर उसे किसने लाकर दिया ?
70 सालों तक सोवियत संघ के छत्रछाया में एक देश के तौर पर रह चुकी यूक्रेनी जनतारुसी जनता से इस कदर घुलमिल गई है कि दोनों के बीच बेटी-रोटी का रिश्ता कायम है. मसलन, किसी यूकेनी की पतनी रुसी है तो किसी यूकेनी का पति रुसी है. इतने घनिष्ठ सम्बन्धों के बीच भला यह अश्लीलता कहां से आ गई ? जाहिर है यह सब पश्चिमी मीडिया की सड़ांध मानसिकता की उपज है.
यूक्रेन की जुलिया का ब्रिटेन में बना मजाक
आज इसी मीडिया के हवाले से उड़ती हुई एक खबर आई है जब यूक्रेन से पलायन कर ब्रिटेन में शरण ले रही एक यूकेनी महिला को ब्रिटिश मनचलों ने अश्लील मैसेज भेजना शुरु किया. खबर के अनुसार यूक्रेन की एक महिला ब्रिटेन पहुंची और एक घर की तलाश कर रही थी. महिला को मदद के बजाय कुछ ब्रिटिश लोग उल्टे-सीधे मैसेज भेजने लगे. दरअसल 30 साल की जूलिया स्कुबेंको ने ब्रिटेन में रहने के लिए एक सुरक्षित जगह की तलाश हेतु लिए ब्रिटेन के लोगों से सोशल मीडिया पर गुहार लगाई थी लेकिन बदले में उन्हें कुछ ‘भद्दे’ जवाब मिले.
यूक्रेन की जूलिया ब्रिटेन में एक नई पारी की शुरुआत करने के लिए फेसबुक का सहारा लिया. युद्ध से पहले वह कीव में एक सफल क्लीनिंग कंपनी चलाती थीं. उन्होंने 18,000 लोगों के एक ग्रुप में अपील करते हुए एक मार्मिक पोस्ट लिखी. अपनी एक तस्वीर के साथ उन्होंने लिखा – मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे ब्रिटेन भागने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. उन्हें अब नई शुरुआत करनी होगी और जितना जल्दी हो सके वह फिर से अपने पैरों पर खड़ी हो जाएंगी.
जूलिया ने अपनी पोस्ट में अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स के लिंक और मोबाइल नंबर अटैच कर दिया. इसके बाद जूलिया को कुछ पुरुषों की तरफ से भद्दे मैसेज आने शुरू हो गए, जिसमें लोग उन्हें ‘शादी’ के लिए प्रपोज कर रहे थे. जूलिया ने कहा कि उसने एक शख्स को बताया कि वह ऐसे घर की तलाश में हैं जहां अन्य महिलाएं भी रहती हों. इस पर उसने जवाब दिया, ‘बुरा हुआ ! हम भी एक परिवार बना सकते थे.’
एक अन्य शख्स ने उन्हें ‘असिस्टेंस’ का जॉब ऑफर की. इस तरह के मैसेज पाकर जूलिया को डर सता रहा है कि मजबूर यूक्रेनी महिलाओं का लोग फायदा उठा सकते हैं क्योंकि उनके पास कोई और रास्ता नहीं है.
फासिस्ट हिटलर का वंशज जेलेंस्की यूक्रेनी जनता को मानव ढ़ाल बना रहा है
अब यह कोई छिपी हुई बात नहीं रह गई है कि 2014 ई. में यूक्रेन की तत्कालीन सरकार के खिलाफ अमेरिकी सहयोग से विद्रोह भड़का कर जेलेंस्की ने यूक्रेन की सत्ता हथियाया था. इस तख्तापलट मेन जेलेंस्की ने 14 हजार से ज्यादा यूकेनी नागरिकों की हत्या की तथा लाखों लोगों को जेल में बंद कर दिया. अब जब रुस की ओर से पलटवार किया जा रहा है तब इसे न्याय की याद आ रही है.
इसी के साथ यह भी सर्वविदित है कि 2014 में यूक्रेन का तख्तापलट कर सत्ता में आया जेलेंस्की के पूर्वज हिटलर के नाजी फौज में शामिल थे, जिसने तत्कालीन सोवियत संघ पर जबर्दस्त प्रहार किया था. इस तथ्य के साथ यह भी बुनियादी तथ्य शामिल है कि हिटलर की नाजी फौज जितनी क्रूर, जितनी बेरहम और जितना मक्कार था, वह सभी गुण जेलेंस्की और उसकी फौजियों में गुंथा हुआ है.
रुसी राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन पर हमला करने के बाद कहा था कि उन्हें यूक्रेन पर यह हमला 8 साल पहले कर देना चाहिए था. पुतिन का इशारा 2014 के तख्तापलट की ओर है जिसे जेलेंस्की ने अंजाम दिया था.
इसी के साथ एक और बुनियादी तथ्य समझ लेना चाहिए कि रुस को जिस तरह यूक्रेन में हमलावर के तौर पर पश्चिमी मीडिया प्रोपेगैंडा चला रही है, असलियत यह है कि रुस यूक्रेन से अमेरिकी साम्राज्यवाद को दूर रखना चाहता है लेकिन जेलेंस्की यह मानने के लिए तैयार नहीं है. वह रुस के खिलाफ अपने ही नागरिकों को मानव ढ़ाल के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है. यहां तक कि उनकी हत्या भी कर रहा है. उनके बच्चों को मार रहा है और ढ़िंढ़ोरा पीट रहा है कि ‘रुस ने मारा है.’
रुस-यूक्रेन युद्ध की खबरों को कैसे पढ़े ?
यूक्रेन के अमेरिकी टट्टू जेलेंस्की के फासिस्ट तौर तरीकों पर मीडिया में आ रही खबरों को कैसे पढ़े या समझने ताकि सच्चाई सामने आ सके, यह एक जरूरी टास्क है, वरना हम भी अमेरिकी प्रोपेगैंडा का झांसे में आकर गलत समझ बैठेंगे. किसी भी खबर को देखने के बाद उसके स्त्रोत को देखें, फिर उस खबर से पीछे कम से कम 100 साल के इतिहास में चले जायें. वहां जाकर आप देख पायेंगे की किसका चरित्र कैसा है.
मसलन, जेलेंस्की ने दावा किया है कि रुसी सैनिकों ने यूक्रेन के मासूम बच्चों को गोलियों से भून दिया है. आप सौ साल पीछे जाकर जब यह देखेंगे तो पायेंगे कि रुसियों का ऐसा कोई इतिहास ही नहीं है. बल्कि जब रुस अपने सीमा का विस्तार कर रहा था तब भी उसने बिना किसी युद्व के दुनिया का सबसे विशाल देश बनाया था.
अब हम जेलेंस्की के इतिहास को खंगालते हुए जब 100 साल पीछे जाते हैं तब पाते हैं जेलेंस्की के पूर्वज हिटलर के नाजियों की फौज में शामिल थे. नाजियों की क्रूरता, मक्कारी से सारी दुनिया वाकिफ है. सारी दुनिया जानती है कि नाजियों ने औरतों-बच्चों पर किस कदर जुल्म ढ़ाया, किस तरह उसके जलती आग की भट्ठी में धकेल दिया जाता.
बस, अगर आप इतना जान लेते हैं तो आपके पास खबरों में आ रही बच्चों के खिलाफ क्रूरता की कहानी का असली दोषी को सरपट पहचान लेंगे. फिर आप पायेंगे कि नवनाजी जेलेंस्की की वह अपराधी है, जिसने बच्चों की हत्या की है ताकि इसका ठीकरा रुसी सैनिकों के मत्थे फोड़कर उसे बदनाम किया जा सके. लेकिन अब जब आप समझ गये कि खबरों से सच्चाई कैसे निकाली जाती है तो बताने की जरूरत नहीं रह जाती कि जेलेंस्की कितना क्रूर और मक्कार है, कि उस पर विश्वास करने की कोई जरूरत नहीं है. कि भारत को भी रुस के खिलाफ खड़ा करने के लिए जेलेंस्की ने भारतीय छात्रों को न केवल जलील ही किया अपितु दो छात्र की गोली मारकर हत्या भी कर दी.
जेलेंस्की के खिलाफ रुसी कार्रवाई को कैसे देखें ?
पश्चिमी मीडिया शुरुआत से ही एक दुश्प्रचार चला रही है कि जेलेंस्की के खिलाफ रुसी कार्रवाई यूक्रेन पर रुसियों का हमला है. यह सिरे से ही गलत प्रोपेगैंडा है. हिटलर का वंशज नवनाजी अमेरिकी टट्टू जेलेंस्की ने यूक्रेन के वास्तविक राष्ट्रपति के खिलाफ विद्रोह भड़काकर 14 हजार यूक्रेनी जनता को मौत के घाट उतार कर यूक्रेन की सत्ता पर जबर्दस्ती कब्जा कर लिया है. ऐसे में जेलेंस्की यूक्रेन का वास्तविक प्रतिनिधि हो ही नहीं सकता.
इसलिए रुसी सेना की इस कार्रवाई को यूक्रेन के खिलाफ नहीं अपितु नवनाजी फासिस्ट जेलेंस्की के खिलाफ एक छोटी सी कार्रवाई है ताकि 14 हजार यूकेनी जनता के हत्यारे जेलेंस्की को दंडित किया जा सके. इसे केवल और केवल इसी रुप में देखना होगा. अगर इसे रुस का यूक्रेन के खिलाफ युद्ध मानेंगे तो फिर आप गलती कर जायेंगे. यदि यह वास्तव में रुस का यूक्रेन के खिलाफ युद्ध होता, जैसा की अमेरिका और पश्चिमी मीडिया कहता है तो यह युद्व दो दिन में समाप्त हो जाता क्योंकि रुसी के सैन्य बल और उसके हथियारों की मारक क्षमता अमेरिकी हथियारों की मारक क्षमता से कई गुना अधिक तेज व घातक है, विगत एक महीने में यह साबित हो चुका है.
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