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कैशलेस सोसाइटी यानी गुलामी के लिए तैयार रहें

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कैशलेस सोसाइटी यानी गुलामी के लिए तैयार रहें
कैशलेस सोसाइटी यानी गुलामी के लिए तैयार रहें
girish malviyaगिरीश मालवीय

देश में पहली बार किसी जननेता ने सीधे-सीधे नोटबंदी के लिए पीएम मोदी और बिल गेट्स की दुरभिसंधि को जिम्मेदार ठहराया है. पप्पू यादव ने कहा कि ‘देश में बिल गेट्स के इशारे पर नोटबंदी की गई और फिर बिल गेट्स के ही इशारे पर 2 हजार के नोट को भी बंद कर दिया गया.’

यह बड़ी बात है. हम जैसे लोगों के बोलने से बात दूर तक नहीं जा पाती लेकिन यदि कोई जनाधार वाला नेता इस तरह से सच्चाई को जनता के समक्ष प्रस्तुत करता है तो बड़ी संख्या में लोगों का ध्यान इस तरफ आकृष्ट होता है.

सितंबर, 2012 में दुनिया में ‘बेटर दैन कैश एलायंस’ लॉन्च किया गया. माइक्रोसॉफ्ट के बिल गेट्स इस एलाइंस के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हैं. नोटबंदी के ठीक एक साल पहले भारत 2015 में इसका सदस्य बना. यह अलाएंस कैश यानी नकदी को बुरा बताता है.

कैशलेस सोसायटी की स्थापना इसका मुख्य उद्देश्य है. यह कहता है कि कई कारणों से नकदी छापना, उसकी निगरानी, भंडारण, चलन को नियंत्रित करना महंगा है और इससे भी बढ़कर कैशलेस सोसायटी सरकारों को जनता पर और अधिक नियंत्रण का मौका देता है.

मजे की बात यह है कि भारत में जब बड़ी नोटबंदी हुई तो दिसम्बर 2016 में पीएम नरेंद्र मोदी ने एक खास तरह के नोटबुक में छपे अपने संदेश के द्वारा यह आह्वान किया कि ‘हर व्यक्ति को रोज एक से दो घंटे का समय कैशलेस समाज के बारे में सूचनाओं के प्रसार में देना चाहिए. हर दिन इस नई टेक्नोलॉजी के बारे में दस लोगों को शिक्षित किया जाना चाहिए.’

बिलकुल स्पष्ट है कि नरेंद्र मोदी किनके हाथो मे खेल रहे थे और हैं. दरअसल आज की दुनिया में कैश ही ऐसी ताकत बची है जिसे सरकारें नियंत्रित नहीं कर सकतीं, इसलिए वे इसका खात्मा करना जरूरी समझती है.

दिसम्बर 2015 में अमेरिकी ट्रेजरी विभाग और यूएसएआईडी ने संयुक्त रूप से वाशिंगटन में एक वित्तीय समावेशन फ़ोरम आयोजित किया. इस फोरम में बिल गेट्स ने कहा – ‘अर्थव्यवस्था का पूरी तरह डिजिटाइजेशन विकासशील देशों में अन्य जगहों के मुकाबले तेज रफ़्तार से हो सकता है. निश्चित रूप से यह हमारा लक्ष्य है कि हम आने वाले तीन सालों में बड़े विकासशील देशों में इसे सम्भव बनाएं.’

भारत ने 01 सितम्बर 2015 को ‘बेटर दैन कैश एलायंस’ संगठन की सदस्यता ली. तब तक वित्तीय समावेशन के लिए मोदी की प्रधानमंत्री जन-धन योजना की शुरुआत हुए एक साल हो चुका था. भारत में बैंक नोट को माता लक्ष्मी की संज्ञा दी जाती है लेकिन बाकी दुनियां में ऐसी कोई मान्यता नहीं है.

युरोप अमेरिका में प्लास्टिक मनी बहुत पहले से प्रचलन में आ चुकी है. वहां तो आज काफ़ी हद तक कैश के चलन पर लगाम भी लगा दी गईं हैं लेकिन भारत में आज भी बड़े पैमाने पर नकद का इस्तेमाल होता है.

नकद का इस्तेमाल बैंकों को भी भारी पड़ता है. बैंक पैसा कमाने की बजाय नगद का प्रबंधन करने में लग जाते हैं जबकि डिजिटल लेन-देन उनके लिए ब्रेड बटर के समान है. स्वीडन नॉर्वे जैसे देशों में तो आज यह हालत है कि वहा नकदी संभालने वाली कुछ ही बैंक शाखाएं रह गई हैं. सब कुछ डिजीटल हो चुका है.

एक खास बात और है कि बैंक डूबने की हालत में लोग उस बैंक से अपना पैसा कैश के रुप में निकाल सकते हैं लेकिन यदि समाज ही कैशलैस हो जाए तो उन्हें इस तरह से कैश निकालना फिजूल ही लगने लगेगा, लिहाजा वो इस व्यवस्था के साथ बंधकर रह जाएंगे…!

बहुत सोच समझ कर यह परिवर्तन लाया जा रहा है. यदि आज भी हम नहीं चेते तो 2030 तक इनके हम पूरी तरह से गुलाम बन चुके होंगे.

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