युद्ध भूमि में
फूलों की एक
बेतरतीब क्यारी
हरे भरे घास
भींगी, भीनी मिट्टी
और इनके बीच
औंधे मुंह गिरा
उस सैनिक की ताजा लाश
ये लाश भी
कालक्रम में बन जायेगा
महकते फूलों के लिये खाद
फिर किसे याद रहेगा
किसने और कैसे दी थी जान
उन महकते फूलों के लिये
नीले आसमान को थाम
चल पड़ेगी हवा
अदृश्य गंतव्य की ओर
भींगी मिट्टी पर
रह जायेंगे पीछे छूटते
पैरों के निशां
हम सब समा जायेंगे
समय के नये आभास में
नया साल
एक नई उम्मीद ही तो है
- सुब्रतो चटर्जी
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